जेब में डेबिट कार्ड और गुड़गांव के एटीएम बूथ से निकल गए 25 हजार  

20 thousands rupees ATM card fraud with Satna resident in Gurgaon
जेब में डेबिट कार्ड और गुड़गांव के एटीएम बूथ से निकल गए 25 हजार  
जेब में डेबिट कार्ड और गुड़गांव के एटीएम बूथ से निकल गए 25 हजार  

डिजिटल डेस्क, सतना। कोलगवां थाना क्षेत्र के हनुमान नगर नई बस्ती निवासी रमाकांत सिंह पुत्र रामशिरोमणि सिंह का एसबीआई की सिटी ब्रांच में सेलेरी अकाउंट है। हाल ही में रामकांत ये देख कर दंग रह गए कि उनके इसी बैंक अकाउंट से 26 अप्रैल को गुड़गांव स्थित रेलवे स्टेशन के एक एटीएम बूथ के जरिए 20 हजार रुपए की रकम तब निकल गई, जब उनका डेबिट कार्ड उन्हीं की जेब में था। सवाल ये है कि ऐसा कैसे संभव है? ये सिलसिला यहीं नहीं थमा। इसी दिन रामकांत सिंह के इसी बैंक अकाउंट से किसी अज्ञात शख्स ने 5 हजार रुपए की राशि किसी प्रभा पत्नी जानकी के खाते में भी ट्रान्सफर कर दी। 

अब कहां जाए खातेदार 
मामला संज्ञान में आने पर खातेदार ने जब एसबीआई की सिटी ब्रांच को अपनी व्यथा बताई तो बैंक ने उन्हें सिटी कोतवाली का रास्ता पकड़ा दिया। सिटी कोतवाली ने बैंक को चिट्ठी लिख दी और एफआईआर से इंकार कर दिया। खातेदार को एक और सलाह दी गई कि चूंकि उनके निवास क्षेत्र का थाना कोलगवां है। लिहाजा वो कोलगवां थाने जा कर अपना रोना रोएं। कोलगवां थाना एक कदम आगे निकला। थाने के मुंशी ने खातेदार को गुड़गांव जा कर एफआईआर कराने की सलाह दी। बैंक और दो थानों के बीच फंसा खातेदार अंतत:  एसपी रियाज इकबाल के पास पहुंचा। एसपी ने मामले की जांच साइबर सेल को सौंप दी है। 

जानकारों की मानें तो चाहे बैंक हो या फिर पुलिस अगर इनमें से कोई एक भी चाह ले तो जालसाज को पकड़ना कठिन नहीं है। गुड़गांव स्थित संबंधित एटीएम बूथ के सीसीटीवी फुटेज इस मामले में बड़े मददगार हो सकते हैं। अगर, इससे भी संभव न हो तो बैंक के लिए ये पता लगाना कठिन नहीं है कि जालसाज ने जिस खाते में 5 हजार ट्रांसफर किए, वो खाता असल में किसका है। अब तक बैंकों में नगदी जमा करना बचत का सबसे अच्छा और सुरक्षित माध्यम माना जाता था।

समय के साथ बैंकों के लेन-देन में कई सुधार भी किए गए पर समय के साथ कुछ ऐसी जालसाजियां सामने आई हैं, जिससे ये स्वाभाविक सवाल उठे हैं कि क्या आमआदमी की गाढ़ी कमाई अब बैंकों में भी सुरक्षित नहीं है। मुश्किल इस बात की है कि जब-जब ठगी के ऐसे मामले सामने आते हैं। तब-तब न तो बैंक चोट खाए खातेदार की मदद करते हैं और न ही पुलिस को इसमें कोई रुचि होती है। बैंक और पुलिस के बीच खातेदार फुटबाल बन कर रह जाता है और अंतत: थक कर घर बैठ जाता है। 
 

Created On :   17 May 2019 7:56 AM GMT

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