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SNCU में 3 महीने में 97 नवजातों की मौत, मृतकों का वजन डेढ़ किलो से भी कम

डिजिटल डेस्क, सतना। चालू साल के महज 3 माह यानि अप्रैल से जून के बीच यहां के जिला अस्पताल की नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (SNCU) में 97 नवजातों की मौत हो चुकी है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में इस तथ्य की स्वीकारोक्ति की गई है कि मृतकों में ज्यादातर का वजन डेढ़ किलो से भी कम था। इन आंकड़ों से जुड़े सवाल के जवाब में शिशुरोग विशेषज्ञों का भी दावा है कि लाइट वेट और बीमार बच्चों को बचा पाना मुश्किल होता है। इसी बीच SNCU का रिकार्ड बताता है कि भर्ती के लिए आने वाले औसतन 25 से 30 फीसदी बच्चों का वजन कम होता है। अप्रैल से जून माह के बीच SNCU की इनबॉर्न और आउटबॉर्न में कुल 706 नवजात भर्ती कराए गए थे। रोज तकरीबन 30 नवजात भर्ती कराने के लिए लाए जाते हैं।
सिर्फ 3 वेंटीलेटर
जानकारों की मानें तो जिला अस्पताल की नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई में वेन्टीलेटरों की कमी भी नवजातों की मौत और उन्हें रेफर करने की एक बड़ी वजह है। SNCU में मौजूदा समय में सिर्फ 3 वेन्टीलेटर ही उपलब्ध हैं। इनमें भी किसी एक में आए दिन खराबी ही बनी रहती है। जानकारों का कहना है कि लाइटवेट बच्चे इतने गंभीर और नाजुक होते हैं कि उनका सिर्फ वेन्टीलेटर पर ही इलाज संभव है। एक वेंटीलेटर पर इलाज के लिए सिर्फ एक ही बच्चे को रखा जा सकता है। इस वजह से भी रेफरल केस बढ़ रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि 3 महीने में 53 नवजातों को मेडिकल कॉलेज रीवा या फिर जबलपुर के लिए रेफर किया गया है।
बर्थ इस्पेसिया ने बढ़ाई चिंता
सरकारी अस्पतालों में पैदा होने के बाद नवजातों में बढ़ रही बर्थ इस्पेसिया भी मौत की बड़ी वजह बनती जा रही है। SNCU सूत्रों ने एक और सनसनीखेज खुलासा करते हुए बताया कि अस्पताल में पैदा होने के बाद 20 से 25 फीसदी नवजात बर्थ इस्पेसिया का शिकार हो जाते हैं। नवजात बर्थ इस्पेसिया का शिकार उस समय बनते हैं जब डिलेवरी के दौरान लापरवाही होती है और गंदा पानी मुंह में चला जाता है। जिला अस्पताल के आंकड़ों से साफ होता है कि लेबर रूम में प्रसव के दौरान बच्चों को संक्रमण से बचाने के पुख्ता इंजताम नहीं किए जा रहे हैं।
पीडियाट्रिक सर्जन भी नहीं
पैदा होने के साथ कुछ नवजातों में कटे-फटे होठ, टेढ़े हाथ-पैर की परेशानी होती है। ऐसे नवजातों को पैदा होने के साथ ही SNCU में भर्ती कराया जाता है। जिला अस्पताल में पीडियाट्रिक सर्जन नहीं होने के कारण ऐसे नवजातों को हायर सेंटर रेफर करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं रहता। SNCU के रेफर के आंकड़ों की बात करें तो 5 फीसदी नवजात पीडियाट्रिक सर्जन नहीं होने के बाद रेफर किए जा रहे हैं।
Created On :   27 Aug 2018 1:57 PM IST