7वीं सदी में त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे था एक खूबसूरत शहर 

A beautiful city was behind the Tripura Sundari Temple in the 7th century
7वीं सदी में त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे था एक खूबसूरत शहर 
7वीं सदी में त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे था एक खूबसूरत शहर 

पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान मिले महल, मंदिर, बर्तन और अन्य कलाकृतियों के पुरावशेष 
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
जबलपुर के तेवर स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे कल्चुरी कालीन इतिहास से जुड़ीं बेहद रोमांचक जानकारियाँ सामने आई हैं। पुरातत्व विभाग की जबलपुर व नागपुर सर्किल की संयुक्त टीमों द्वारा मंदिर के पीछे की जा रही खुदाई में मिले अवशेषों से पता चला है कि यहाँ मध्य पाषाण काल से 12वीं-13वीं शताब्दी तक एक व्यवस्थित बसाहट थी। खुदाई में मिले पिलर, मूर्ति, बर्तन और अन्य कलाकृतियों को देखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि मंदिर के पीछे करीब 20 किलोमीटर के क्षेत्र में कल्चुरी वंश के राजाओं का एक खूबसूरत शहर बसा हुआ था। पुरातत्व विभाग का यह अनुसंधान अभी प्रारंभिक है, इसलिए पुरातत्वविदों का मानना है कि भविष्य में यहाँ पाँचवीं से पहली शताब्दी तक के जीवन काल के प्रमाण मिल सकते हैं। 
पुरातात्विक दृष्टि और पर्यटन के लिहाज से यह बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। भविष्य में इस खोज को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकती है। उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल ने जबलपुर में पर्यटन को प्रोत्साहित करने को लेकर हाल ही में जबलपुर सर्किल की स्थापना करते हुए, तेवर के त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे 16 जनवरी से खुदाई का काम शुरू कराया था। पुरातत्व विभाग ने यहाँ दो अलग-अलग जगहों पर कैम्प लगाकर खुदाई शुरू की है। शेष7पेज 8 पर
राजा भोज के बड़े भाई ने किया था विध्वंस 
कल्चुरीकाल को लेकर वर्षों से शोध कर रहे इतिहासकार राजकुमार गुप्ता के अनुसार पहले प्रमाण मिले थे कि त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे 8वीं से 12वीं शताब्दी तक कल्चुरी वंशजों का राज था। 1000 ईस्वी पूर्व राजा युवराज द्वितीय के शासन के दौरान राजा भोज के बड़े भाई राजा परमार ने यहाँ हमला करके बड़ा विध्वंस किया था,  लेकिन इसके बाद कुल्लारदेव द्वितीय का शासन आ गया और फिर नई नगरी बसाई गई थी। सन् 1867 से 1870 के बीच जबलपुर-बॉम्बे रेल लाइन के निर्माण के दौरान तेवर के मालगुजार शंकरराव पंडित ने निर्माण कार्य करने वाले ठेकेदारों को जमीन बेची थी, जिससे काफी अवशेष दूसरी जगहों पर चले गए थे, जिसे दूसरा विध्वंस माना जाता है। 
अब तक ये मिला 
 पुरातत्व विभाग ने दो अलग-अलग जगहों पर खुदाई का कार्य शुरू किया। इसमें त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे के इलाके को सर्किल वन और बगलामुखी मंदिर से लगी पहाड़ी को सर्किल 2 बनाया गया था। सर्किल 2 में बड़े भवनों के पिलर, मंदिर और बहुमूल्य मूर्तियों के अलावा विशाल पत्थरों में नक्कासी व पत्रावली की डिजाइनें मिलीं हैं। ये सभी चीजें कल्चुरीकाल के महत्व का प्रमाण मानी जाती हैं। पूर्व में हुए शोधों में भी इन बातों की जानकारी मिली थी, लेकिन उस समय किसी तरह का शोध पूरा नहीं हो सका था। इसी तरह सर्किल 1 में 7वीं शताब्दी के बर्तन (हांडी, कटोरियाँ), मिट्टी के रिंग बेल (पानी सोखने वाले टैंक) के अलावा बलुआ पत्थर से बनाई गईं मूर्तियाँ मिली हैं। कुछ मूर्तियों की नक्कासी देखकर पुरातत्वविद भी हैरान हैं। इसके अलावा टीम के कुछ सदस्यों ने आसपास के 15 से 20 गाँवों में भ्रमण करके पुरानी मूर्तियाँ भी खोजी हैं, जो पुरातत्व के लिहाज से बहुमूल्य हैं। 
इनका कहना है
 त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे पुरातात्विक उत्खनन में कल्चुरी कालीन इतिहास से जुड़ी बेहद रोमांचक और चौंकाने वालीं जानकारियाँ मिल रही हैं। अभी तक हुई खुदाई में मिले प्रमाणों से ऐसा लगता है कि यहाँ कभी खूबसूरत शहर था, जिसमें बौद्ध, जैन व हिन्दू संस्कृति की एकजुटता के साथ भारतीय संस्कृति के जीवनकाल की कलाकृतियाँ थीं। आने वाले समय में यहाँ 7वीं शताब्दी से पहले तक के जीवन काल की जानकारियाँ मिलने का अनुमान है। 
-डॉ. सुजीत नयन, उपअधीक्षण व पुरातत्वविद, जबलपुर सर्किल

Created On :   16 Feb 2021 2:21 PM IST

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