काया व माया से नहीं, समर्पण-आचरण से बड़ा होता है व्यक्ति -सुवीरसागर

A person is greater than dedication and conduct SuviSagar
काया व माया से नहीं, समर्पण-आचरण से बड़ा होता है व्यक्ति -सुवीरसागर
काया व माया से नहीं, समर्पण-आचरण से बड़ा होता है व्यक्ति -सुवीरसागर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। काया और माया से व्यक्ति बड़ा नहीं होता,  वह समर्पण और आचरण से बड़ा होता है। यह उद्गार आचार्य सुवीरसागर ने अपने उद्बोधन में अहिंसा भवन में आयोजित पिच्छी परिवर्तन समारोह में व्यक्त किए। हमारे लिए मात्र 22 परिषह है पर आपके लिए 22000 परिषह है। यदि सुखी होना है, तो वैरागी बनो। मोह से ढका हुआ ज्ञान आत्म स्वभाव को नहीं जान पाता। मनुष्य पर्याय की सार्थकता ज्ञानी होने में है। जीवन का सार ज्ञान, ज्ञान का सार चारित्र, चारित्र का सार केवलज्ञान  और केवलज्ञान का फल मोक्ष है। मोक्ष  प्राप्ति का लक्ष्य हो, तो सम्यक रत्नत्रय को प्राप्त करना होगा।

सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता ही मोक्ष है। इनके लिए परोपदेश की आवश्यकता नहीं होती है। साधु जीवन को बदल सकता है। वक्ता कितना अच्छा प्रतिपादन करता है इसका महत्व नहीं है, वह आचरण में कितना उतारता है, यह महात्वपूर्ण है। पंचम काल की साधना से आत्मा संस्कारवान हो जाती है। मोक्ष मार्ग विकल्प का नही निर्विकल्प का है। गुरु पूजन जिनवाणी महिला मंडल, एवं विद्यासागर महिला मंडल ने किया। वस्त्र भेंट वैशाली नितिन नखाते, शिल्पा श्रावणे, सोनू-मोनू जैन, पेंढारी परिवार व चंद्रकुमार चौधरी परिवार ने किया। माला भेंट महेश नायक व  विवेक सोईतकर ने की। 

मुनीश्री के गृहस्थाश्रम के पिता शीलचंद जैन एवं परिवार का सम्मान चातुर्मास कमेटी ने किया। मुर्ति प्रदाताओं, सभी मंदिर ट्रस्टियों चातुर्मास कलश स्थापनकर्ताओं का सम्मान कमेटी ने किया। दीपप्रज्वलन चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष पवन जैन कान्हीवाडा, कार्याध्यक्ष  सतीश जैन पेंढारी, मंत्री जयमामू, प्रचार मंत्री हीराचंद मिश्रीकोटकर, उपमं़त्री दिनेश जैन व सुरेद्र जैन कलकत्तावाले, संतोष जैन, शीलचंद जैन, सुनील जैन, नरेंद्र जैन, अरुण श्रावणे, जितेंद्र तोरावत ने किया।   मंगलाचरण जिनवाणी महिला मंडल ने गाया। 

पिच्छी परिवर्तन समारोह 
 आचार्य सुवीर सागर ससंघ का पिच्छी परिवर्तन समारोह आयोजित किया गया। इसके साथ ही आर्चश्री का चातुर्मास पूर्ण हुआ। इस अवसर पर समाज को शिक्षा देते हुए उन्होंने कहा कि पिच्छी संयम का उपकरण है। सबके शिवाय साधु रह सकते हैं, पर पिच्छी, संयम के उपकरण के बिना नहीं रह सकते। पुरुषार्थ गलत रास्ते का नहीं करना चाहिए। पांचों उंगलियों का महत्व होता है। समाज का एक अंग भी नहीं रहा, तो समाज विकलांग हो जाता है। जिनेंद्र भगवान के वाणी में पंचम काल के अंत तक मुनि रहेंगे ऐसा कहा गया है। मत अलग हो सकता है, पर मन एक होना चाहिए। अगर कोई साधु आए और मंदिर में पूरी व्यवस्था है, तो भी साधु को ठहराने के लिए बैठक लेना पड़े, यह दुर्भाग्य है। साधु हमेशा ज्ञान, ध्यान और तप में लीन रहते है। आत्म कल्याण का मार्ग है समायिक व स्वाध्याय। इन्हें समय पर करना चाहिए। सकल दिगंबर जैन समाज ने मिलकर चातुर्मास किया। सभी समाज जुड़े रहे। समाज दिन-दूनी, रात-चैगुनी संपन्न हों। जो भी साधु आए उसका सकल दिगंबर जैन समाज द्वारा भक्ति होनी चाहिए। यही है मंगल आशीर्वाद।


 

Created On :   2 Dec 2019 1:42 PM IST

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