चरित्र पर संदेह के चलते पत्नी और दो बच्चों की हत्या करने वाले पिता को नहीं मिली राहत 

Accused killed wife and two children due to doubts about her character did not get any relief
चरित्र पर संदेह के चलते पत्नी और दो बच्चों की हत्या करने वाले पिता को नहीं मिली राहत 
हाईकोर्ट चरित्र पर संदेह के चलते पत्नी और दो बच्चों की हत्या करने वाले पिता को नहीं मिली राहत 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने पत्नी के चरित्र पर संदेह के चलते पत्नी और दो बेटो की हत्या करनेवाले शख्स की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। नाशिक में रहनेवाले शेषमणि पाल ने साल 2012 में पत्नी के चरित्र पर संदेह के चलते उसकी और अपने दो नाबालिग बेटों की हत्या कर दी थी। उनके शवों को बैग में भरकर गोदावरी नदी से जुड़े नाले में फेक दिया था। नाशिक कोर्ट ने साल 2015 में पाल को अपनी पत्नी व दो बेटो की हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ पाल ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति अजय गडकरी व न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की खंडपीठ के सामने पाल की अपील पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने पाया कि शेषमणि व संगीता का विवाह साल 2009 में हुआ था। इसके बाद दोनों उत्तर प्रदेश स्थित अपने पैतृक गांव से नाशिक आ गए किंतु कुछ समय बाद पाल ने संगीता के साथ बदसलूकी की और उसे उत्तर प्रदेश स्थित फतेहपुर भेज दिया। इसके बाद संगीत के भाई ने उत्तर प्रदेश पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। कुछ समय बाद दोनों के बीच मामला सुलझ गया तो पाल फिर संगीता को लेकर नाशिक आ गया। कुछ समय बाद जब संगीता की कुशलता जानने के लिए उसके चचेरे भाई ने पाल को फोन किया तो उसने बताया संगीता घर से भाग गई है। इसके बाद प्रकरण को लेकर नाशिक के पंचवटी पुलिस स्टेशन में संगीता की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई गई। पुलिस ने जब पाल से संगीता के बारे में पूछताछ शुरु की तो उसने टालमटोल वाले जवाब दिए। इससे पुलिस का उस पर संदेह बढ़ गया और कडाई से पूछताछ के बाद उसने संगीता व अपने दोनों बेटे की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया। पाल ने बताया कि उसने गाल घोटकर पत्नी व बच्चों की हत्या की फिर उनके शवो को गोदावरी नदीं के पास फेंक दिया। आरोपी संगीता के चरित्र पर संदेह करता था इसलिए उसके साथ बदसलूकी करता था और अपने मायके से पैसे लाने के लिए कहता था। 

पाल के वकील ने खंडपीठ के सामने कहा कि उनके मुवक्किल को संगीता के घरवालों ने रंजिश के चलते झूठे मामले में फंसाया है। इसके अलावा बच्चों के जो शव मिले है उनका डीएनए मेरे मुवक्किल से नहीं मिलता है। इसलिए मेरा मुवक्किल उनका जैविक पिता नहीं था। इस मामले में शवों का पोस्टमार्टम नहीं किया गया। इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। किंतु खंडपीठ ने कहा कि मृतकों के शव 51 दिनों बाद मिले थे। इस लिए पोस्टमार्टम के लिए उपयुक्त नहीं थे, किंतु पुलिस ने संगीता के घरवालों से उनकी पहचान कराई थी। अभियोजन पक्ष ने आरोपी पर लगे आरोपों को संदेह के परे जाकर साबित किया है। खंडपीठ ने इस दौरान संगीता के भाई की गवाही पर भी गौर किया। आरोपी ने अपनी पत्नी व बच्चों के गायब होने को लेकर अपनी ओर से कुछ नहीं किया। आरोपी का यह आचरण उसके इरादे के बारे में काफी कुछ कहता है। इस तरह खंडपीठ ने आरोपी की अपील को खारिज कर दिया।

 

Created On :   8 Sept 2022 9:33 PM IST

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