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बॉम्बे हाई कोर्ट: सार्वजनिक परियोजना को रोकने के लिए कोई राहत नहीं, गारंटर को शर्तें तय करने का अधिकार नहीं

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कल्याण डोंबिवली महानगरपालिका (केडीएमसी) को सड़क चौड़ीकरण करने के लिए भूमि अधिग्रहण पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि सार्वजनिक परियोजना को रोकने के लिए कोई राहत नहीं दी जा सकती है, जिससे सार्वजनिक हित को गंभीर नुकसान हो। न्यायमूर्ति जी. एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति आरती साठे की पीठ ने अजीत ज्ञानदेव म्हात्रे एवं अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं को खारिज कर दिया। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हम याचिकाकर्ताओं के इस दलील को स्वीकार करने के लिए सहमत नहीं हैं कि केडीएमसी ने सड़क चौड़ीकरण और विशेष रूप से याचिकाकर्ताओं की भूमि से संबंधित सार्वजनिक कार्यों को करने में कोई मनमानी की है। यदि याचिकाकर्ताओं की भूमि का कुछ हिस्सा प्रभावित होता है, तो उनको को निश्चित रूप से कानून द्वारा मुआवजा दिया जाएगा। पीठ ने कहा कि केडीएमसी स्वीकृत योजना में किसी भी तरह से सड़क की चौड़ाई में परिवर्तन नहीं करती है। इसे 30 मीटर चौड़ी डीपी सड़क पर बनाए रखा गया है।याचिकाकर्ताओं के वकील ने सड़क के चौड़ीकरण करने के कार्यों पर अंतरिम आदेशों को जारी रखने का अनुरोध किया है। हालांकि पहले से ही सार्वजनिक कार्यों में देरी हो रही है। इसलिए याचिका के लंबित रहने के कारण उनका अनुरोध स्वीकार नहीं किया जाता है। पीठ ने कहा कि केडीएमसी की ओर से पेश वकील ए. एस. राव के इस दलील से सहमत हैं कि याचिकाकर्ताओं को सड़क चौड़ीकरण कार्य में बाधा नहीं डालनी चाहिए, जो काफी प्रगति पर है। उनके द्वारा इस तरह के मुकदमे के कारण सड़क चौड़ीकरण कार्य रुकने से जनहित को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है। हमारा यह भी स्पष्ट मत है कि सड़क चौड़ीकरण परियोजना एक बुनियादी ढांचा परियोजना है।
क्या है पूरा मामला
ठाणे के अंबरनाथ तहसील स्थित चिंचपाड़ा गांव में केडीएमसी के अधिकार क्षेत्र में याचिकाकर्ताओं की भूमि 520 वर्ग मीटर क्षेत्र सड़क के विकास योजना आरक्षण (डीपी आरक्षण) और केडीएमसी द्वारा किए गए सड़क चौड़ीकरण से प्रभावित है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम 1966 की धारा 31 के तहत राज्य सरकार द्वारा एक बार विकास योजना (डीपी) स्वीकृत हो जाने के बाद केडीएमसी को डीपी सड़क में परिवर्तन करने का कोई अधिकार नहीं है।
गारंटर को शर्तें तय करने का अधिकार नहीं...बॉम्बे हाई कोर्ट
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि गारंटर को अपने खिलाफ कार्यवाही करने के लिए रोकने का कोई अधिकार नहीं है। गारंटर का यह काम है कि वह देखे कि कर्ज लेने वाले ने कर्ज का भुगतान किया है या नहीं। गारंटर को शर्तें तय करने का अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति सुमन श्याम और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने अविनाश राजाराम गावड़े की दायर याचिका पर अपने फैसले में कहा कि कानून के इस स्थापित प्रस्ताव पर कोई विवाद नहीं हो सकता है कि भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 128 के प्रावधानों के अनुसार गारंटर का दायित्व कर्ज लेने वाले के दायित्व के साथ-साथ है। बैंक का गारंटर और कर्ज लेने वाले के खिलाफ कर्ज की वसूली करने का अधिकार है। पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का हवाला दिया, जिसमें से यह स्पष्ट है कि गारंटर का दायित्व कर्ज लेने वाले के समान ही है। इसलिए राशि की वसूली की कार्यवाही के मामले में दोनों समान स्तर पर होंगे। यदि ऐसा है, तो हमें याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित वकील अनिल लुल्ला के इस दलील में कोई दम नहीं दिखता कि बैंक को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह पहले फर्म के साझेदार और कर्ज लेने वाले की संपत्तियों के खिलाफ कार्यवाही करे और उसके बाद ही याचिकाकर्ता (गारंटर) की संपत्ति के खिलाफ कार्यवाही करे। गोरेगांव निवासी अविनाश राजाराम गावड़े दादर स्थित कॉसमॉस कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड से कर्ज लेने वाले लिए गए कर्ज में गारंटर था। बैंक ने कर्ज खाता एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) में बदल जाने के बाद 20 लाख रुपए के कर्ज की वसूली के लिए कर्ज लेने वाले और गारंटर की संपत्तियों को कुर्क करके राशि की वसूली के लिए कार्यवाही शुरू की है। बैंक ने याचिकाकर्ता गावड़े के स्वामित्व वाली दुकान को भी अपने कब्जे में लेने की कार्यवाही शुरू की है। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
Created On :   28 Sept 2025 9:55 PM IST