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जिम्मेदार संस्थाओं की सलाह रद्दी की टोकरी में, हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियाँ बेलगाम
लंबित केसों की संख्या बताती है कि कंपनियाँ सिर्फ अपनी शर्तों के अनुसार चल रही हैं, मन मुताबिड्डक क्लेम को सेटल किया जा रहा, प्रमाणिक दस्तावेज भी दरकिनार
डिजिटल डेस्क जबलपुर । कोरोना काल में हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों की मूल सोच सामने आ चुकी है। ग्राहकों को लुभावने दावों के साथ पॉलिसी बेचना और जब पॉलिसी लेने वाला स्वास्थ्य संबंधी परेशानी में फँसे, तो उसकी मदद करने से इनकार कर देना कंपनियों की प्रवृत्ति बन चुकी है। इसमें विशेष बात जो उभरकर सामने आ रही है वह यह है कि कंपनियाँ इंश्योरेंस रेगुलेटरी एण्ड डेवलमेंट अथॉरिटी, बीमा लोकपाल और थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर यानी टीपीए की भी सुनने तैयार नहीं हैं। देश में इंश्योरेंस खासकर स्वास्थ्य बीमा के लंबित मामलों की संख्या यही दर्शा रही है कि सब कुछ अपनी शर्तों के अनुसार किया जा रहा है। जो सेटलमेंट होगा वह कंपनी की शर्त के अनुसार होगा। यदि इसमें आईआरडीएआई की गाइडलाइन, बीमा लोकपाल जो आदेश पारित करता है वो और टीपीए जो सजेशन देता है वह उतना मायने नहीं रखता। कोरोना काल में तीन जिम्मेदार इकाइयों की भूमिका को कपंनियों ने पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है। इसको लेकर उपभोक्ता जिला स्तर से लेकर राज्य और बीमा नियामक तक शिकायत कर रहे हैं।
Created On :   12 Jun 2021 7:42 PM IST