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हाईकाेर्ट में 12 साल बाद मुकदमा दायर कराया को कर दी याचिका खारिज
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डिजिटल डेस्क, नागपुर। कोर्ट में वर्षों तक लंबित रहने वाले मुकदमे यूं तो चर्चा का विषय बने ही रहते हैं, लेकिन कई बार देरी की ऐसी-ऐसी वजहें सामने आती हैं, जो अचंभित कर देती हैं। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में एक ऐसा मामला सुनवाई के लिए आया, जिसमें याचिकाकर्ता ने संबंधित अदालत में तय समय से करीब 12 वर्ष बाद मुकदमा दायर किया। उसने इस देरी की वजह बताई कि नौकरी से निकाले जाने के बाद उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई थी, लेकिन मामले में जुड़े सभी तथ्यों और पक्षों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की खंडपीठ का निरीक्षण था कि ऐसे प्रकरणों को महत्व देने से समाज को एक गलत संदेश जाएगा। अंतत: कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी।
ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाया
वर्ष 1997 में नागपुर महानगरपालिका ने क्लर्क की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया। याचिकाकर्ता के अनुसार उसने टाइपिस्ट पद के लिए आवेदन किया और वर्ष 1998 में उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। बाद में यह भी दावा किया कि मनपा ने उसे 1 फरवरी 2000 में जूनियर क्लर्क और वर्ष 2004 में गार्ड पद पर नियुक्ति के लिए कॉल लेटर जारी किया। अंतत: उसे मनपा के टैक्स विभाग में नियुक्ति दी गई, जहां उसने एक माह काम किया और फिर उसे निष्कासित कर दिया गया। उसने निष्कासन के खिलाफ महापौर से विनती की, तो उन्होंने उसे आश्वासन देकर लौटा दिया और फिर उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई।
12 साल बाद ठीक होने पर उसने वर्ष 2010 में लेबर कोर्ट में निलंबन को चुनौती दी। नियमानुसार नौकरी से निकाले जाने के 90 दिनों के भीतर कर्मचारी को अपील दायर करनी होती है। याचिकाकर्ता ने अपनी 12 साल लंबी मानसिक बीमारी का हवाला तो दिया, लेकिन नौकरी से जुड़ा कोई दस्तावेज या ठोस तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाया। लेबर कोर्ट ने उसकी याचिका रद्द कर दी। उसके बाद वह इंडस्ट्रियल कोर्ट पहुंचा, यहां भी उसकी अर्जी खारिज कर दी गई। हाईकोर्ट ने भी निचली अदालतों के निर्णय को कायम रखा और याचिका खारिज कर दी।
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