चार बेटियों के जन्म के बाद महिला को पत्नी बताने से किया इनकार, नहीं मिली राहत

After the birth of four daughters, the woman refused to be called wife, did not get relief
चार बेटियों के जन्म के बाद महिला को पत्नी बताने से किया इनकार, नहीं मिली राहत
हाईकोर्ट चार बेटियों के जन्म के बाद महिला को पत्नी बताने से किया इनकार, नहीं मिली राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। चार बेटियों के जन्म के बाद महिला को अपनी पत्नी बताने से इनकार करनेवाले पति को बांबे हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को कायम रखा है जिसके तहत न्यायालय ने पति को अपनी पत्नी को 20 हजार रुपए प्रति माह अंतरिम गुजाराभत्ता देने का निर्देश दिया था। निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी जिसे न्यायमूर्ति अमित बोरकर ने खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति ने कहा कि  याचिकाकर्ता(पति) व महिला के बीच पति -पत्नी का संबंध है। शादी का निमंत्रण कार्ड व मदताता पहचान पत्र  फिलहाल यह दर्शाने के लिए पर्याप्त नजर आ रहे है। महिला ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में बच्चियों का सत्यापित जन्म प्रमाणपत्र, अपना आधारकार्ड, जाति वैधता प्रमाणपत्र,शादी के निमंत्रण कार्ड व मतदाता पहचान पत्र के जरिए यह साबित किया था कि याचिकाकर्ता ही उसका पति है। याचिकाकर्ता(पति) के साथ उसका विवाह 1995 में हुआ था। महिला के मुताबिक जब उसने 2003 में चौथी बेटी को जन्म दिया तो उसका पति उसे व बेटियों बेसहारा छोड़कर चला गया। इसके बाद उसे मजबूरन मजिस्ट्रेट कोर्ट में गुजारे भत्ते के लिए आवेदन करना पड़ा। मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने मामले से जुड़े दस्तावेज पर गौर करने के बाद महिला के पति को पत्नी व बेटियों के भरण-पोषण के लिए गुजारे भत्ते के रुप में 20 हजार रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया। इसके साथ ही मजिस्ट्रेट कोर्ट ने कहा कि अंतरिम गुजारे भत्ते के पडाव पर विवाह को लेकर पक्के सबूत पेश करना आवश्यक नहीं है। सत्र न्यायालय ने भी मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को न्यायसंगत मानते हुए उसे कायम रखा । जिसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में पति ने कहा कि गुजारे भत्ते की रकम काफी ज्यादा है। इसके अलावा गुजारे भत्ते के लिए काफी विलंब से आवेदन किया गया था। विवाह को लेकर महिला ने जो दस्तावेज दिए है वे भरोसे लायक प्रतीत नहीं होते है। 

वहीं महिला की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि निचली अदालत के आदेश को अनुचित नहीं माना जा सकता है। इसलिए निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप की जरुरत नहीं है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि याचिकाककर्ता की सालाना कमाई 20 लाख रुपए है। ऐसे में अंतरिम गुजारे भत्ते के रुप में 20 हजार रुपए की रकम अतार्किक नहीं है। न्यायमूर्ति ने साफ किया कि उन्हें निचली अदालत का आदेश बिल्कुल भी अनुचित नहीं लग रहा है। इसलिए उसे कायम रखा जाता है और पति की याचिका को खारिज किया जाता है। 

 

Created On :   14 Dec 2022 7:11 PM IST

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