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वैवाहिक विवाद आपसी समझौते से सुलझाने कानून में हो संशोधन

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को वैवाहिक विवाद पैदा होने के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (दहेज उत्पीडन व क्रूरता) के तहत दर्ज किए जानेवाले अपराध को आपसी समझौते के तहत सुलझाने की छूट देने के लिए कानून में जरुरी संशोधन करने पर विचार करने को कहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि आंध्रप्रदेश में पहले से ही इस विषय पर सकारात्मक कदम उठाकर धारा 498ए को कंपाउंडेबेल अफेंस (ऐसा अपराध जिसे आपसी समझौते से सुलझाया जा सके) की सूची में शामिल कर लिया है। ऐसे में हम अपेक्षा करते हैं कि महाराष्ट्र सरकार भी आंध्रप्रदेश की तर्ज पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 320 में जरुरी निर्बधों के साथ संसोधन करने पर विचार करे। और पक्षकारों को अदालत (मैजिस्ट्रेट कोर्ट) की अनुमति से समझौते के तहत 498ए के तहत मामले को सुलझाने की छूट दे।
राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने कोर्ट को भरोसा दिलाया है कि वे इस विषय को सरकार के समक्ष विचार के लिए रखेंगे। हाईकोर्ट ने कहा कि इससे न सिर्फ उच्च न्यायालय में इस तरह के आनेवाले मामलों का बोझ कम होगा बल्कि पक्षकारों को भी मुकदमे के खर्च से राहत मिलेगी। हाईकोर्ट में बड़ी संख्या में 498ए के तहत दर्ज मामलों को आपसी सहमति से रद्द करने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर होती हैं। इसके मद्देनजर कोर्ट ने उपरोक्त बात कही है।
इससे पहले न्यायमूर्ति ने नीतिन जामदार व न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ ने एक दूसरे अलग रह रहे पति-पत्नी की ओर से 498ए व घरेलू हिंसा के तहत दर्ज मामले को रद्द किया और कहा कि राज्य सरकार 498ए को कंपाउंडेबल अपराध की सूची में शामिल करने पर विचार करे। खंडपीठ ने कहा कि वैवाहिक विवाद के बाद अक्सर 498ए के तहत, फिर घरेलू हिंसा व पारिवारिक अदालत में मामले दायर किए जाते हैं। इन मुकदमे में पक्षकारों का काफी समय व उर्जा नष्ट होती है। ऐसे में यदि इस 498ए के अपराध को मजिस्ट्रेट कोर्ट की अनुतमि से सुलझाने की इजाजत मिलती है तो इससे हाईकोर्ट में आपसी सहमति के तहत 498ए के तहत दर्ज मामले को रद्द करने की मांग को लेकर दायर की जानेवाली याचिकाओं में कमी आएगी। और हाईकोर्ट का समय भी बचेगा।
Created On :   29 Dec 2021 9:00 PM IST