हाईकोर्ट : मैट अध्यक्ष पद रिक्त होने पर नाराज, पत्नी को बांझ कहना क्रूरता नहीं

‌Bombay High Court : Calling wife infertile is not cruel
हाईकोर्ट : मैट अध्यक्ष पद रिक्त होने पर नाराज, पत्नी को बांझ कहना क्रूरता नहीं
हाईकोर्ट : मैट अध्यक्ष पद रिक्त होने पर नाराज, पत्नी को बांझ कहना क्रूरता नहीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र प्रशासकीय पंचाट (मैट) के चेयरमैन पद के रिक्त होने को लेकर नाराजगी जाहिर की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि आखिर केंद्र सरकार ने अब तक मैट के चेयरमैन पद पर नियुक्ति को लेकर भेजे गए प्रस्ताव पर कोई निर्णय क्यों नहीं लिया। जबकि मैट की  मुंबई, औरंगाबाद व नागपुर पीठ में लाखों सरकारी कर्मचारियों की सेवा से जुड़े मामले प्रलंबित हैं। न्यायमूर्ति ने कहा कि जब तक मैट के चेयरमैन की नियुक्ति नहीं की जाएगी तब तक वहा पर रिक्त प्रशासकीय व न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति का काम भी आगे नहीं बढ पाएगा। खंडपीठ ने कहा कि 15 जुलाई 2019 से मैट के चेयरमैन का पद रिक्त है। जिससे वहां पर स्थिति काफी खराब है। खंडपीठ ने अगली सुनवाई के दौरान इस मामले को लेकर केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग के सचिव को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। हलफनामे में स्पष्ट करने के लिए कहा गया है कि आखिर क्यों राज्य सरकार की ओर से चैयरमैन की नियुक्ति के संबंध में भेजे गए प्रस्ताव पर कार्रवाई करने में विलंब हुआ है। खंडपीठ ने कहा कि यदि हलफनामा नहीं दायर किया जाता है तो केंद्र सरकार के संबंधित विभाग के सचिव कोर्ट में उपस्थित रहें। खंडपीठ ने अगली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव को भी इस मामले में उठाए गए कदमो की जानकारी देने का निर्देश दिया है। खंडपीठ के सामने सामाजिक कार्यकर्ता कन्हैया महामुनी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है।  इससे पहले सरकारी वकील प्रियभूषण काकडे ने कहा कि चेयरमैन पद पर नियुक्ति को लेकर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के संबंधित विभाग को 5 अक्टूबर 2019 को ही प्रस्ताव भेज दिया था। वहीं इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील उदय वारुंजकर ने कहा कि मैट में करीब 6 माह से चेयरमैन का पद रिक्त है। इसके साथ ही वहां पर दो प्रशाकीय व दो न्यायिक सदस्यों के पद भी रिक्त हैं, जिसका असर वहां के कामकाज पर पड़ रहा है। मैट में मुख्य रुप से सरकारी कर्मचारियों कि सेवा से जुड़े मामले चलते हैं। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर 2019 को रखी है। 
 

पत्नी को बांझ कहना क्रूरता नहीं

बांबे हाईकोर्ट ने पत्नी को बांझ कहने, किसी से बात करने अथवा किसी के घर जाने से रोकने को सामान्य बात माना है। अदालत ने कहा  कि यह बाते भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए  के तहत  क्रूरता के लिए पर्याप्त नहीं है। हाईकोर्ट ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने व क्रुरता के आरोप में पति व उसके रिश्तेदारों के रिहाई के आदेश को बरकरार रखते हुए यह फैसला सुनाया है। निचली अदालत ने इस मामले में गवाहों के बयान में विरोधाभास को देखते हुए सारे आरोपियों को बरी कर दिया था। जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति के.आर श्रीराम ने मामले से मामले से जुड़े तथ्यों व गवाहों के बयानों पर गौर करने के बाद मामले से पति व उसके रिश्तेदारों को बरी करने के आदेश को कायम रखा और राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। इससे पहले अभियोजन पक्ष ने न्यायमूर्ति को सूचित किया कि मामले से जुड़े आरोपी हिरू मालसुरे का 18 मार्च 1998 को चंद्रा नाम की युवती से विवाह हुआ था। शादी के दो साल तक पति-पत्नी के संबंध मधुर रहे लेकिन बाद में दोनों के संबंधो में खटास आ गई। इसकी वजह चंद्रा को संतान न होना था। जिससे उसका पति उसे बांझ कहने लगा। यहीं नहीं उसने चंद्रा को किसी से बात करने व किसी के घर जाने से भी रोकता था। वह चंद्रा के चरित्र पर भी शक करने लगा। हालांकि चंद्रा को उसके रिश्तेदारों ने समझाया की बच्चा होने के बाद सब सामान्य हो जाएगा। लेकिन जब स्थिति नहीं सुधरी तो तंग आकर चंद्रा ने 12 मार्च 2001 को कुए में कूद कर आत्महत्या कर ली। इस घटना के बाद पुलिस ने चंद्रा के पति व उसके सास-ससूर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता धारा 498ए,306 व 34 के तहत मामला दर्ज किया गया। इस दौरान आरोपियों ने खुद को बेकसूर बताया और दावा किया कि चंद्रा कुए में पानी भरने गई थी। हो सकता है पानी भरते समय उसका पैर फिसल गया हो और दुर्घटनावश वह कुए में गिर गई हो और डूबने से उसकी मौत हुई हो। निचली अदालत ने गवाहों के बयान में विरोधाभास देखते हुए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया। लिहाजा राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की। न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े तथ्यों को देखने के बाद कहा कि इस मामले में मृतक (चंद्रा) के माता-पिता कोर्ट में गवाही के लिए नहीं गए हैं। इस मामले में 16 गवाह थे लेकिन चार गवाहों की गवाही हुई है। इसके साथ ही गवाहों के बयान में काफी विरोधाभास दिखाई देता है। मामले को लेकर आरोपी (पति) पर लगाए गए आरोप सामान्य कथन प्रतित होते हैं यह धारा 498 ए के तहत क्रूरता मानने के लिए पर्याप्त है। क्योंकि आरोपी पर कोई खास आरोप नहीं लगाया गया है। इसलिए इस मामले में हमे निचली अदालत के फैसले में कोई खामी नजर नहीं आती। यह बात कहते हुए न्यायमूर्ति ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। 

 

बच्चे की हत्या करनेवाले पिता को जमानत देने से किया इंकार

बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक साल के बेटे की पिटकर हत्या करनेवाले पिता को जमानत देने से इंकार कर दिया है। निचली अदालत ने आरोपी  पिता जलालुद्दीन मोहम्मद अंसारी को इस मामले में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद अंसारी ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन दायर किया था। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति सुरेंद्र तावडे के सामने अंसारी के जमानत आवेदन पर सुनवाई हुई। इस दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल ने सजा के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है।  अपील की सुनवाई में अभी विलंब होगा, इसलिए अपील पर सुनवाई पूरी होने तक मेरे मुवक्किल को जमानत प्रदान की जाए। निचली अदालत ने ठोस सबूत न होने के बावजूद मेरे मुवक्किल को सजा सुनाई है। वहीं अतिरिक्त सरकारी वकील जेपी याज्ञनिक ने कहा कि इस मामले में आरोपी की पत्नी और एक सात साल के बच्चे ने गवाही दी है। जिसके आधार पर आरोपी को दोषी ठहाराया गया है। जांच के दौरान पता चला है कि आरोपी घर आने के बाद अपने एक साल के बच्चे को अलग कमरे में ले गया था। जहां उसने दरवाजा बंद करके उसकी निर्ममता से पिटाई की। जिसके चलते बच्चे की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी बच्चे के शरीर पर चोट की बात कही गई है। इसलिए इस मामले में आरोपी को जमानत प्रदान न किया जाए। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश का उपलब्ध सबूतो के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराने का निर्णय सही नजर आ रहा है। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने आरोपी को किसी प्रकार की राहत देने से इंकार करते हुए उसके जमानत आवेदन को खारिज कर दिया। 

 

अवैध निर्माण गिराने के लिए अधिकारी को मिले पुलिस सुरक्षा

बांबे हाईकोर्ट ने कोकण के विभागीय आयुक्त को निर्देश दिया है कि अलीबाग में अवैध निर्माण को गिराने में लगे अधिकारियों को पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए। इससे पहले सरकारी वकील प्रियभूषण काकडे ने न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी की खंडपीठ को बताया कि 5 अवैध बंगले गिराए गए हैं। जबकि 16 अवैध निर्माण कार्यों की विभागीय आयुक्त समीक्षा करनेवाले है। पर्याप्त पुलिस सुरक्षा मिलने के बाद अवैध रुप से बने मंदिर व जिम के खिलाफ भी तोड़क कार्रवाई की जाएगी। इस बात को जानने के बाद खंडपीठ ने विभागीय आयुक्त को निर्देश दिया कि तोड़क कार्रवाई में जुड़े अधिकारियों को पर्याप्त पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए। अलीबाग में बने अवैध बंगलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर एक गैर सरकारी संस्था ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। खंडपीठ ने रायगढ के जिलाधिकारी को इस मामले को लेकर 16 जनवरी तक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया गया है। गौरतलब है कि यहां पर पीएनबी घोटाले के आरोपी नीरव मोदी का भी अवैध बंगला था जिसे गिरा दिया गया है। 

 

कोर्ट ने समाज कल्याण उपायुक्त को दिया एक और मौका

बॉम्बे हाईकार्ट की नागपुर खंडपीठ ने अवमानना प्रकरण में वर्धा के समाज कल्याण उपायुक्त को एक आखरी मौका दिया है। दरअसल, शिक्षक पुनल यादवराव येसांबरे ने हाईकोर्ट मंे याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने 1 जुलाई 2019 को आदेश जारी किया था, जिसमंे वर्धा के समाजकल्याण उपायुक्त को आदेश दिए थे कि, वे याचिकाकर्ता के चयन श्रेणी के दावे पर 8 सप्ताह में निर्णय लें। 15 सितंबर को यह अवधि समाप्त हुई, लेकिन समाज कल्याण विभाग ने हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार याचिकाकर्ता काे चयन श्रेणी देने पर निर्णय नहीं लिया। ऐसे में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट मंे अवमानना याचिका दायर की। याचिकाकर्ता का पक्ष सुनकर हाईकोर्ट ने समाज कल्याण उपायुक्त को एक और मौका देते हुए कहा कि, यदि इस प्रकरण पर 6 फरवरी-2019 तक फैसला लेते हैं, तो वे अवमानना की कार्रवाई से बच सकते हैं। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड. सोनिया गजभिए ने पक्ष रखा। 

Created On :   14 Dec 2019 9:02 AM GMT

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