हाईकोर्ट : निलंबित डीआईजी मोरे को से मिली राहत, 29 साल चला 300 रुपए की रिश्वत का मुकदमा, ट्राई की नई टैरिफ नीति

Bombay High Court give Relief to suspended DIG More
हाईकोर्ट : निलंबित डीआईजी मोरे को से मिली राहत, 29 साल चला 300 रुपए की रिश्वत का मुकदमा, ट्राई की नई टैरिफ नीति
हाईकोर्ट : निलंबित डीआईजी मोरे को से मिली राहत, 29 साल चला 300 रुपए की रिश्वत का मुकदमा, ट्राई की नई टैरिफ नीति

डिजिटल डेस्क, मुंबई। नाबालिग से छेड़छाड के मामले में आरोपी निलंबित डीआईजी निशिकांत मोरे को बांबे हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी से अंतरिम राहत प्रदान की है। मोरे पर एक 17 साल की लड़की ने छेड़छाड का आरोप लगाया है। बुधवार को न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद डीआईजी मोरे को अंतरिम राहत प्रदान की पर उन्हें 29, 30 व 31 जनवरी 2020 को सुबह 11 से दो बजे के बीच पुलिस स्टेशन में उपस्थित रहने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही अदालत ने जांच में सहयोग करने को कहा। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने पाया कि आरोपी व शिकायतकर्ता के परिवार के बीच पहले संबंध अच्छे थे लेकिन पैसों के लेन-देन को लेकर आरोपी व शिकायतकर्ता के रिश्तों में कड़वाहट आ गई। शिकायतकर्ता ने आरोपी पर 5 जून 2019 को अपने जन्मदिन के समारोह के दौरान छेड़छाड करने का आरोप लगाया था। न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े वीडियो के संदर्भ में कहा कि इस वीडियों में शिकायतकर्ता का कृत्य संदेह पैदा करता है। यह बात कहते हुए न्यायमूर्ति ने आरोपी को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत प्रदान की और जमानत आवेदन पर सुनवाई 17 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया। गौरतलब है कि पनवेल सत्र न्यायालय ने इससे पहले मोरे को जमानत देने से इंकार कर दिया था। इसलिए मोरे ने हाईकोर्ट में जमानत के लिए आवेदन दायर किया है। 

29 साल चला 300 रुपए की रिश्वत का मुकदमा, रिहाई के आदेश पर लगाई मुहर

गाय का मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने के लिए 300 रुपए रिश्वत लेने के आरोप से बांबे हाईकोर्ट ने प्राणियों के एक डाक्टर को सबूत के अभाव में बरी कर दिया है। इस बीच डा मधुकर सोनावणे को 29 साल तक कोर्ट में मुकदमे का सामना करना पडा। मूल रुप से इस मामले में जानवरों के दो डाक्टरों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया था। लेकिन एक डाक्टर की अपील पर सुनवाई के दौरान मौत हो गई। जिसके चलते हाईकोर्ट ने सिर्फ एक ही आरोपी प्राणी विकास अधिकारी डा मधुकर सोनावणे की अपील पर सुनवाई हुई। 
दरअसल सोलापुर जिला निवासी नागनाथ कदम ने एक जर्सी गाय खरीदी थी। कदम ने इस गाय का चार हजार रुपए का बीमा भी कराया था। दो नवंबर 1991 को कदम की गाय बीमार हो गई इसलिए उसने उपचार के लिए डाक्टर विजय चौगुले व मधुकर सोनावणे से संपर्क किया। सोनावणे इलाज के लिए कदम के यहां आए और गाय को सलाइन के जरिए इंजेक्शन और दवाई दी। उपचार के लिए कदम को 350 रुपए देने के लिए कहा गया लेकिन दो दिन बाद गाय की मौत हो गई। इसके बाद कदम ने बीमा कंपनी के एजेंट से बीमा की रकम के लिए संपर्क किया तो उसे गाय का मृत्युप्रमाणपत्र पेश करने को कहा गया। इस पर कदम ने सोनावणे से संपर्क किया। सोनावणे ने मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए 500 रुपए की मांग की लेकिन बाद में बात 300 रुपए में तय हो गई। किंतु कदम को यह रकम देना नागवार गुजरा इसलिए उसने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) से शिकायत कर दी। एसीबी के अधिकारियों ने जाल बिछाकर सोनवाणे को तीन सौ रुपए रिश्वत लेते रंगेहाथ गिरफ्तार कर लिया। जांच में पता चला कि सोनावणे ने अपने लिए सौ रुपए और दो सौ रुपए चौगुले के लिए लिए थे। दोनों आरोपियों के खिलाफ एसीबी कोर्ट में भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धाराओं के तहत आरोपपत्र दायर किया। कोर्ट ने गवाहों के बयानों में विरोधाभास देखते हुए दोनों आरोपियों को मामले से 31 जनवरी 2002 को बरी कर दिया। निचली अदालत के आरोपियों के रिहाई के इस निर्णय के खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की। न्यायमूर्ति के.आर.श्रीराम के सामने मामले की सुनावाई हुई। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति को बताया गया कि चौगुले की मौत हो गई है। इसके बाद न्यायमूर्ति ने चौगुले के खिलाफ अपील पर सुनवाई से मना कर दिया। न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि जब सोनावणे ने रिश्वत की रकम ली थी उस दौरान चौगुले मौजूद नहीं था। इसके अलावा सोनावणे ने यह रकम इलाज के बकाए रकम के तौर पर ली थी। मामले से जुड़े एक गवाह ने कहा कि गाय का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया था तो मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने का सवाल ही नहीं पैदा होता। न्यायमूर्ति ने कहा कि हमे मामले से जुड़े गवाहों के बयान विश्वसनीय नजर नहीं आते हैं। इसलिए निचली अदालत द्वारा सुनाए गए आदेश को कायम रखा जाता है। क्योंकि इसमें कुछ भी अवैध नहीं है। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। सोलापुर की विशेष अदालत ने इस मामले में सोनावने व दूसरे आरोपी डाक्टर विजय चौगुले को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। 

ट्राई की नई टैरिफ नीति से उपभोक्ताओं को मिलेंगे विकल्प

भारतीय दूर संचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने बांबे हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि ट्राई की नई टैरिफ नीति से न सिर्फ उपभोक्ताओं के हित सुरक्षित होंगे बल्कि वह उपभोक्ताओं को सशक्त भी करेगा। इस नीति का उद्देश्य पारदर्शिता लाना व चैनल की दर से संबंधी भेदभाव को खत्म करना है। इससे उपभोक्ताओं को कई विकल्प मिलेंगे। ट्राई ने यह हलफनामा उसकी टैरिफ पॉलिसी के खिलाफ याचिका दायर करने वाले इंडियन ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन व अन्य लोगों की ओर से दायर की गई याचिका के जवाब में दायर किया है। याचिका में ट्राई की नई टैरिफ दर को मनमानीपूर्ण और अतार्किक बताया गया है। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी की खंडपीठ के सामने इस विषय से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। बुधवार को जब यह याचिका खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी तो ट्राई ने हलफनामा दायर किया। इसके बाद खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील के आग्रह पर मामले की सुनवाई 30 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी। 

वरिष्ठ नागरिकों की परेशानी न दूर करने के लिए हाईकोर्ट ने सामाजिक न्याय विभाग को लगाई फटकार 

बांबे हाईकोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों से जुड़ी परेशानियों को दूर करने की दिशा में पर्याप्त कदम न उठाने के लिए राज्य के सामाजिक न्याय विभाग को कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने कहा कि जीने को तो जानवर भी जिंदा रहता है। इसलिए सरकार वरिष्ठ नागरिकों को न सिर्फ जीवन जीने में सहयोग प्रदान करे बल्कि ऐसा माहौल दे जिसमे वे अर्थपूर्ण जीवन जी सके। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए सामाजिक न्याय विभाग को वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों व भलाई से जुड़े मुद्दे को लेकर जागरुकता फैलाने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने यह निर्देश मिशन जस्टिस नामक गैर सरकारी संस्था की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। खंडपीठ ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों की संख्या बढ रही है लेकिन उनसे जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। खंडपीठ ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण से जुड़ी योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है। खंडपीठ ने कहा कि जो अभी वरिष्ठ नागरिक नहीं हुए हैं वे वरिष्ठ नागरिकों के हित के लिए ज्यादा गंभीर हो। और उनके अधिकारों के प्रति व्यापक रुप से जागरुकता फैलाए साथ ही वरिष्ठ नागरिकों को सुविधाएं देने के लिए जरुरी कदम उठाए। 
 

Created On :   22 Jan 2020 8:10 PM IST

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