क्लास से छात्र को बाहर जाने को कहा था, कार्रवाई का सामना कर रहे शिक्षक को कोर्ट ने दी राहत

Bombay High Court gives relief to a teacher facing action
क्लास से छात्र को बाहर जाने को कहा था, कार्रवाई का सामना कर रहे शिक्षक को कोर्ट ने दी राहत
क्लास से छात्र को बाहर जाने को कहा था, कार्रवाई का सामना कर रहे शिक्षक को कोर्ट ने दी राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। क्लास से छात्र को बाहर जाने के लिए कहने के कारण आपराधिक कार्रवाई का सामना कर रहे संगीत के एक शिक्षक को बांबे हाईकोर्ट ने राहत प्रदान की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि पुलिस शिक्षक के खिलाफ कोर्ट में न तो आरोपपत्र दायर करे और न ही उसके खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई करे।  न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने यह निर्देश संगीत के शिक्षक विभास शुक्ला की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। दस साल के छात्र के पिता ने अपने बेटे से मिली जानकारी के आधार पर शिक्षक शुक्ला पर बच्चे को अपशब्द कहने,गाली देने व प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था। बच्चे के पिता की ओर से की गई शिकायत के आधार पर पुणे के हडप्सर पुलिस ने  शुक्ला के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 323 व बाल न्याय कानून की धारा 75 के तहत सात नवंबर 2019 को आपराधिक मामला दर्ज किया था। पुणे के कल्याणी स्कूल में पढानेवाले शिक्षक शुक्ला ने छात्र के  पिता के आरोपों को निराधार बताते हुए अधिवक्ता आदित्य प्रताप के माध्यम से खुद के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस दौरान अधिवक्ता आदित्य प्रताप ने कहा कि मेरे मुवक्किल स्कूल में संगीत के शिक्षक थे। चूंकी शिकायतकर्ता का बेटा दूसरे छात्रों के साथ झगड़ा व मारपीट कर रहा था। इसलिए उसे क्लास से जाने के लिए कहा था और हल्का धक्का दिया था। इस आधार पर बाल न्याय कानून की धारा 75 के तहत मामला नहीं दर्ज किया जा सकता है। धक्का देना व क्लास बाहर जाने के लिए कहना कानून रुप से गाली अथवा प्रताड़ना के दायरे में नहीं आता है। मेरे मुवक्किल ने छात्र के साथ जो किया वह उसे अनुशासित  करने के लिए किया। इसके अलावा मेरे मुवक्किल को स्कूल ने पहले ही नौकरी से निलंबित कर दिया है। ऐसे में इस घटना को लेकर आपराधिक मामला दर्ज करना सिर्फ कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने शिक्षक शुक्ला को अंतरिम राहत प्रदान की और पुलिस को शुक्ला के खिलाफ आरोपपत्र  दायर  न करने व किसी प्रकार की कड़ी कार्रवाई न करने का निर्देश दिया। 


सरकार की मंजूरी के बगैर सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करने का मामला

बांबे हाईकोर्ट ने सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मैजिस्ट्रेट को राज्य सरकार की मंजूरी के बिना एफआईआर दर्ज करने से रोकनेवाले कानून में संशोधन के विरोध में दायर याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है।  सोमवार  को हाईकोर्ट ने राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी को नौ दिसंबर को पैरवी के लिए कोर्ट में आने को कहा। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने यह निर्देश अधिवक्ता आभा सिंह की ओर से दायर  याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। याचिका के मुताबिक राज्य सरकार ने 30 अगस्त 2016 को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) में संसोधन किया था। इसके तहत मैजिस्ट्रेट को सरकारी कर्मचारी व अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने से पहले राज्य सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य होगा। याचिका में इस संसोधन को असंवैधानिक व भेदभावपूर्ण बताया गया है। कानून के तहत किसी भी आरोपी को इस तरह का संरक्षण नहीं दिया सकता है। सोमवार को न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। अधिवक्ता आदित्य प्रताप ने याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखा। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 9 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी और सरकार को अपना जवाब दायर करने का निर्देश दिया। 

Created On :   18 Nov 2019 7:46 PM IST

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