बस स्टॉप - कहीं छप्पर गायब तो कहीं चेयर ही ले गए चोर

Bus Stop - Somewhere the shed was missing and the thieves took away the chair
बस स्टॉप - कहीं छप्पर गायब तो कहीं चेयर ही ले गए चोर
बस स्टॉप - कहीं छप्पर गायब तो कहीं चेयर ही ले गए चोर

 सिर छिपाने लायक भी नहीं बचे मेट्रो बस के कई स्टॉपेज, आईएसबीटी में बचा मात्र स्ट्रक्चर, नींद में है पूरी व्यवस्था
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
शहर को स्मार्ट बनाने की बातें हो रही हैं। कागजी योजनाएँ बनाकर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। अंतत: शहर की जनता के हिस्से में क्या आ रहा है... शहर के मेट्रो के बस स्टॉपेज इसका जीवंत उदाहरण हो सकते हैं। लाखों रुपए फूँककर बनाए गए अधिकांश बस स्टॉपेज खस्ताहाल हो गए हैं। नए शहर के कथित सपने में शुमार विजय नगर रोड, आईएसबीटी के समीप बने स्टॉपेज की तो छप्पर ही गायब है। नीचे दलदल और झाडिय़ाँ जिम्मेदारों की बड़ी-बड़ी बातों को आइना दिखाती नजर आ रही हैं। कुछ ऐसे भी स्टॉपेज हैं जिनके ऊपर लगा विज्ञापन तो चमक रहा है, लेकिन कुर्सियों के पाए तक चोर ले जा चुके हैं। हकीकत ये है कि करीब 12 साल पहले बनवाए गए 90 से अधिक बस स्टॉपेज का अस्तित्व ही खतरे में है, इनमें लगा लोहा भी सड़कर गिर रहा है, जो सही सलामत हैं उनमें किसी ने दुकान खोल ली है तो किसी में झाडिय़ाँ उग आई हैं।  उल्लेखनीय है कि नगर निगम ने वर्ष 2008 में शहर के 90 से अधिक स्थानों पर छोटे बस स्टॉप बनवाए थे। ये बस स्टॉप बीओटी स्कीम के तहत बनवाए गए थे और इनका ठेका समाप्त हुए 4 साल से अधिक हो गया है। अब इनका कोई धनी-धोरी नहीं है। यहाँ बैठने के लिए तो पहले ही कोई व्यवस्था नहीं थी लेकिन कुछ जगह सीमेंट की कुर्सियाँ रखी गई थीं जो अब गायब हैं। वर्ष 2016-17 में स्मार्ट सिटी योजना से 18 बस स्टॉप बनवाए गए। ये भी बीओटी स्कीम के तहत बनाए गए और इनका ठेका दिया गया होर्डिंग एजेंसियों को। चूँकि ये भारी भरकम बस स्टॉप हैं और कुछ का ऐरिया तो 800 वर्गफीट तक का है। इसका एकमात्र मकसद एजेंसियों के जरिए कमाई करना था। हालाँकि निगम को तो इससे कोई खास आमदनी नहीं हुई लेकिन एजेंसियों ने जमकर कमाई की और कर रही हैं। बस यात्रियों को कुछ नहीं मिला। टूटी कुर्सियाँ, बंद पड़े डिस्प्ले बोर्ड, गंदगी और टूटी टाइल्स के कारण यात्री इनमें रुकना ही पसंद नहीं करते हैं। 
सुविधाओं की एवज में ही मिला था टेंडर
 जबलपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड ने जो बस स्टॉप बनवाए थे उनकी टेंडर की मुख्य शर्त ही यही थी कि एजेंसियों को हर दिन बस स्टॉप चाक चौबंद रखना होगा, उनमें कुर्सियाँ, रेलिंग, बिजली, सफाई आदि की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन अधिकांश बस स्टॉप की हालत बेहद खराब है।  कुर्सियाँ टूटी-फूटी हैं, रात में नीचे अँधेरा रहता है और ऊपर विज्ञापन चमकता रहता है। सफाई के लिए तो कुछ किया ही नहीं जाता है। हर तरफ पान की पीक नजर आती है। अब सवाल उठता है कि लोगों को सुविधाएँ देने ही टेंडर जारी किया गया था और यदि सुविधाएँ नहीं मिल रहीं हैं तो टेंडर निरस्त क्यों नहीं किया जा रहा है। 
 

Created On :   31 July 2021 4:23 PM IST

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