शहर की सबसे कीमती जमीनों पर बनाए भारी भरकम बस स्टॉप ; खुद कमा रहे करोड़ों रुपए, नगर निगम को एक धेला  नहीं 

Bus stops built on precious lands; Crores of rupees are earning themselves, Municipal Corporation is not pushed
शहर की सबसे कीमती जमीनों पर बनाए भारी भरकम बस स्टॉप ; खुद कमा रहे करोड़ों रुपए, नगर निगम को एक धेला  नहीं 
शहर की सबसे कीमती जमीनों पर बनाए भारी भरकम बस स्टॉप ; खुद कमा रहे करोड़ों रुपए, नगर निगम को एक धेला  नहीं 

केवल विज्ञापन फलक चमकते हैं, जनता को नहीं मिल रहीं सुविधाएँ, बस स्टॉप की कुर्सियाँ टूटीं  हर तरफ गंदगी, असामाजिक तत्वों का डेरा , शर्तों का हो रहा उल्लंघन, टेंडर निरस्त करे निगम
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
जबलपुर सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड ने शहर की सबसे कीमती जमीनों पर तीन होर्डिंग एजेंसियों को बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर बीओटी स्कीम पर 20 से अधिक बस स्टॉप बनाने की अनुमति प्रदान कर दी। शर्त यह थी कि ये एजेंसियाँ बस स्टॉप बनाएँगी और उनका मेंटेनेंस करेंगी बदले में बस स्टॉप के ऊपर विज्ञापन दिखाए जाएँगे। अब देखिए, कमाई के लालच मेें  शहर के साथ कैसा मजाक किया जा रहा है। सबसे पहले तो 15 सालों के लिए ये कीमती जमीनें दे दी गईं, दूसरे बस स्टॉप के आकार का कोई निर्धारण नहीं  किया गया। इंदौर जैसे बड़े शहर में भी सबसे बड़ा बस स्टॉप 320 वर्गफीट का है, जबकि यहाँ 800 वर्गफीट का बस स्टॉप बना दिया, जैसे यात्रियों को कुछ देर रुकने का नहीं बारात को जनवासा देना हो। सबसे बड़ी बात तो यह कि एक बार दो-ढाई लाख रुपए खर्च कर होर्डिंग एजेंसियाँ 15 सालों तक करोड़ों रुपयों का वारा न्यारा करेंगी और निगम को कुछ भी नहीं मिलेगा। अब सबसे बड़ी बात तो यह है कि एजेंसियों को बस स्टॉप की देखरेख करनी है, लेकिन गंध मारते बस स्टॉप अपनी कहानी खुद कहते हैं। 
इंदौर में 320 वर्गफीट का सबसे बड़ा बस स्टॉप, यहाँ 800 वर्गफीट का
बस स्टैंड, नौदरा ब्रिज, शास्त्री ब्रिज, नर्मदा रोड, रानीताल जैसी कीमती लोकेशन पर वर्ष 2015 में जेसीटीएसएल  ने एसएस कम्युनिकेशन, सागरदीप और एसएस एडवरटाइजर्स को बस स्टॉप बनाने का ठेका दिया। यह ठेका बीओटी स्कीम पर था। इसके लिए कम्पनी को कोई राशि खर्च नहीं करनी पड़ी और बदले में बस स्टॉप तैयार हो गए। अब सवाल यह उठता है कि केवल इस बात पर ही खुश हो जाना बेहतर है कि निगम को कोई राशि खर्च नहीं करनी पड़ी और बस स्टॉप बन भी गए। अधिकारियों ने यहीं पर खेल कर दिया और होर्डिंग एजेंसियों को मनमानी करने की पूरी छूट दे दी गई। सबसे पहले तो एजेंसियों ने शहर की कीमती जमीनों की तलाश की और वहीं पर बस स्टॉप बनाए गए, कोई भी बस स्टॉप कितना बड़ा होना चाहिए यह किसी को नहीं बताया गया और एजेंसियों ने मनमानी करते हुए अधिक भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में भीमकाय बस स्टॉप बनाए, जबकि इतने बड़े की जरूरत नहीं थी। चूँकि एजेंसियों को तो विज्ञापन दिखाने और उससे होने वाली कमाई को टारगेट करना था, इसलिए 800 वर्गफीट तक के बस स्टॉप बनाए गए। 
नौदरा ब्रिज के मुख्य मार्ग पर बनाया गया विशाल बस स्टॉप जिसमें यात्रियों से जुड़ी सुविधाएँ नदारद है।
बाकी निगमों को मिल रही राशि 
 प्रदेश के बाकी नगर निगमों को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपयों का राजस्व बस स्टॉप से मिल रहा है। न तो उन्होंने बड़े स्टॉप बनवाए और न ही एजेंसियों की मनमानी चलने दी इसके बाद भी वे लाभ में हैं। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, उज्जैन और देवास में कलेक्टर गाइडलाइन का 4 फीसदी शुल्क प्रतिवर्ष एजेंसियों से वसूला जाता है, जबकि यहाँ एक पैसा नहीं मिल रहा है। इंदौर में 320 वर्गफीट का सबसे बड़ा बस स्टॉप है। 
मिल सकते हैं लाखों रुपए 
 नगर निगम चाहे तो ठेका निरस्त कर नए सिरे से ठेका दे और कलेक्टर गाइडलाइन के अनुसार 4 फीसदी भी टैक्स वसूल करे तो लाखों रुपए प्रतिवर्ष मिल सकते हैं। एजेंसियों ने पिछले 5 सालों में वैसे भी लाखों रुपए कमा लिए हैं। एक बस स्टॉप के निर्माण में मुश्किल से डेढ़ से दो लाख रुपयों का खर्च आया और 15 सालों तक इन्हें लाखों रुपए कमाने की छूट नहीं दी जा सकती है। 
 

Created On :   16 Feb 2021 2:35 PM IST

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