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आनलाइन दवा बिक्री मामले में केन्द्र ने मांगा समय, चुनावी विज्ञापनों पर फेसबुक ने दी दलील, सामान्य के कमजोर वर्ग आरक्षण का हुआ विरोध

डिजिटल डेस्क, मुंबई। केंद्र सरकार ने बांबे हाईकोर्ट से आनलाइन दवाओं की बिक्री के नियमन के लिए नियम तैयार करने के खातिर 6 महीने का और समय मांगा है। इससे पहले केंद्र ने हाईकोर्ट को आश्वस्त किया था कि 31 जनवरी तक नियमों को तैयार कर लिया जाएगा। सोमवार को अधिवक्ता डीपी सिंह ने मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने कहा कि अभी नियम पूरी तरह से तैयार नहीं हुए है। नियम तैयार करने के लिए 6 महीने का और समय दिया जाए। हमने दवाओं की बिक्री के नियमन से जुड़ा मसौदा तैयार कर लिया है। जल्द ही इसे अंतिम रुप दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अतिरिक्त समय की मांग के लिए हम अन्य अदालतों में भी आवेदन दायर करेगे। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई एक सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी। आनलाइन दवाओं की बिक्री के नियमन को मुंबई की प्रोफेसर मयूरी पाटील ने साल 2015 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में मांग की गई थी। शेड्यूल्ड एच के तहत आनेवाली दवाओं को डाक्टरों की पर्ची के बिना उपलब्ध कराने पर भी रोक लगाई जाए। याचिका में कहा गया था कि गर्भपात की दवाएं भी आनलाइन तरीके से बिना डाक्टर की पर्ची के बेची जा रही है।

मराठा आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर करनेवाले अधिवक्ता गुणरत्ने सदाव्रते ने समान्वय वर्ग के आर्थिक रुप से कमजोर लोगों को दस प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय का बांबे हाईकोर्ट में विरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह आरक्षण संविधान के प्रावधानों व सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि फिलहाल हम मराठा आरक्षण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहे है। यदि राज्य सरकार सामान्य वर्ग के आरक्षण से जुड़े आरक्षण को लागू करती है तो हम याचिकाकर्ता को सामान्य वर्ग के आरक्षण को अपनी याचिका में चुनौती देने की अनुमति देगे। सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमजोर तबके के लोगों को शिक्षा व नौकरी में दस प्रतिशत आरक्षण दिया है। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता वीए थोरात ने याचिकाकर्ताओं को पैनड्राइव में मराठा आरक्षण को लेकर राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के साथ संलग्न किए गए परिशिष्ट(एनेक्सचर) की प्रति प्रदान की। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई स्थगित कर दी।

सोशल मीडिया के सबसे लोकप्रिय माध्यम फेसबुक की ओर से बांबे हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डी.खबाटा ने कहा कि चुनाव आयोग कि अधिसूचना के बिना फेसबुक पर दिखाई देनेवाले विज्ञापनों पर खुद से सेंसरसिप कर पाना संभव नहीं है। खंटाबा ने कहा कि आयोग की अधिसूचना के बगैर फेसबुक की ओर से विज्ञापनों पर नियंत्रण की दिशा में कदम उठाने का असर ठीक नहीं होगा। हाईकोर्ट में चुनाव के 48 घंटे पहले सोशल मीडिया के प्रचार प्रसार पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। यह याचिका पेशे से वकील सागर सुर्यवंशी ने दायर की है। सुनवाई के दौरान खंबाटा ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून में फेसबुक को शामिल नहीं किया गया है। इसलिए उस पर दिखनेवाले विज्ञापनों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। इन दलीलों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ ने कहा कि आखिर फेसबुक पर नियंत्रण क्यों नहीं किया जा सकता है? फेसबुक को भी जिम्मेदारी भरा रुख अपनाना होगा और यह आश्वस्त करना होगा कि देश में चुनाव निष्पक्ष व पारदर्शी हो। इस पर फेसबुक की ओर से पैरवी कर रहे खंबाटा ने कहा कि उन्हें इस मामले में विस्तार से जवाब देने के लिए वक्त दिया जाए। उन्होंने कहा कि फेसबुक ऐसा मंच है जिस पर दुनिया के किसी भी कोने से लोग पोस्ट करते है। ऐसे में वे देखेगे की कैसे फेसबुक पर विज्ञापन पर नियंत्रण किया जा सकता है? हाईकोर्ट ने फिलहाल मामले की सुनवाई 18 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है। इससे पहले खंडपीठ ने युट्यूब,गूगल इंडिया व टिविटर को नोटिस जारी किया।
Created On :   4 Feb 2019 9:38 PM IST