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स्वच्छ सर्वेक्षण - नगर निगम की आर्थिक तंगी भी बन रही राह का रोड़ा, सजग नहीं दिख रहा अमला
कभी भी आ सकती है स्टार रेटिंग की टीम, हर तरफ दिख रही बदहाली
डिजिटल डेस्क जबलपुर । स्वच्छ सर्वेक्षण की तैयारी तो चल रही है लेकिन यहाँ ठीक उस घर के जैसे माहौल में काम हो रहा है जहाँ बेटी की विदाई तो होनी है लेकिन बाप के पास रुपए नहीं हैं। परिजन, रिश्तेदार और अन्य लोग तरह-तरह की योजनाएँ बना रहे हैं कि बारात और बारातियों का जोरदार स्वागत हो लेकिन खाली जेबों से यह कैसे संभव होगा। पूर्व के स्वच्छ सर्वेक्षणों में एक अलग सा उत्साह, उमंग और माहौल नजर आता था। रंगाई पुताई से लेकर विभिन्न आयोजन होते थे जिससे लोगों को पता चल जाता था िक स्वच्छ सर्वेक्षण की टीम आ रही है। इस बार तो ऐसा कुछ दिखाई ही नहीं पड़ रहा है। रही बात शहर के आम लोगों की तो उन्हें कोई तामझाम नहीं चाहिए बल्कि हकीकत के धरातल पर निगम बेहतर सफाई करवा दे, समय पर कचरा उठवा दे, टॉयलेट साफ रखे तो हर दिल यही कहेगा सबसे प्यारा हमारा जबलपुर। नगर निगम अपनी वार्षिक परीक्षा की तैयारी कर रहा है, चूँकि साल भर ठीक से पढ़ाई नहीं की गई इसलिए आखिरी में तो दिन-रात रट्टा मारना ही पड़ेगा लेकिन लगता है इसमें भी निगम फेल साबित हो रहा है। अंतिम क्षणों की जो तैयारी की जाती है उसमें पूरी जान लगाई जाती है, हर तरफ माहौल बनाना पड़ता है, कर्मचारियों और अधिकारियों की नींद गायब हो जाती है परन्तु यहाँ तो सब मजे में हैं। अब इन सबके बाद भी यदि हमें सर्वेक्षण में कोई अच्छी रैंकिंग हासिल हो जाए तो इसे चमत्कार या कुछ और ही कहा जाएगा।
न कचरा उठ रहा, न टॉयलेट हो रहे साफ
डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन की हकीकत से पूरा शहर वाकिफ है, शहर के बहुत से क्षेत्रों में अभी भी कचरा गाड़ी नहीं पहुँचती है और जहाँ पहुँचती भी है तो रोजाना नहीं। घरों में जब दो-तीन दिनों तक कचरा डस्टबिन में ही भरा रहता है तो परेशान होकर लोग उसे आसपास ही फेंक देते हैं। जिन टॉयलेट के दम पर निगम ओडीएफ प्लसप्लस का दर्जा हासिल कर लेता है उनकी हालत टीम के जाने के बाद देखी जाए तो चक्कर आ जाते हैं। सामान्य आदमी सरकारी टॉयलेट में घुसने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है।
अब तक तो पहले 10 शहरों में भी नम्बर नहीं रहा
वर्ष 2017 में स्वच्छ सर्वेक्षण शुरू हुआ। पहली बार में ही शहर ने देश भर के शहरों के बीच 21वीं रैंक हासिल की थी। इससे उम्मीद जगी थी कि आने वाले वर्षों में शहर निश्चित ही देश के टॉप 10 शहरों में शामिल हो जाएगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और अगले दो सालों तक शहर की रैंिकंग 25वें स्थान पर रही। यह अलग बात है कि वर्ष 2020 की रैंकिंग में थोड़ा सुधार हुआ और शहर ने 17 वीं पोजीशन पाई, सवाल यह उठता है कि जब हमारे ही प्रदेश के इंदौर और भोपाल सर्वेक्षण में डंका पीट रहे हों और उनमें पहले और दूसरे स्थान की लड़ाई चल रही हो तो हम इतना पीछे क्यों।
Created On :   15 March 2021 3:37 PM IST