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बुढ़ापे की लाठी छीन ले गया कोरोना... बुजुर्ग माता-पिता ने खोए दो बेटे, बच्चों के सिर से उठा पिता का साया
डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा। कोरोनाकाल में कई परिवारों से बड़े-बुजुर्गों का हाथ उठ गया। किसका दु:ख कितना बड़ा यह आंकना कठिन हो गया। परासिया के एक बुजुर्ग दंपती ने तो अपने दो जवान बेटे खो दिए। सहारा छिनने के बाद बुजुर्ग तो जैसे तैसे अपना जीवन गुजार लेंगे, लेकिन प्रश्न उन बच्चों के भविष्य को लेकर है जो अपने पापा के हमेशा के लिए चले जाने की बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। परासिया के आदर्श स्कूल के सामने क्लब के पास निवासी वेकोलि से रिटायर दिनेश मिश्रा (74) और गीता मिश्रा (66) के हंसते खेलते परिवार में कोरोना के कहर ने सारी खुशियां तहस नहस कर दीं। उनके दो बेटे रूचिर (42) और पुष्पक (41) का कोरोना संक्रमण के चलते निधन हो गया। पेशे से जर्नलिस्ट रूचिर मिश्रा की 4 मई को नागपुर में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। वहीं छोटा भाई बैंक कर्मचारी पुष्पक भी इसी बीच कोरोना की चपेट में आ गया। पुष्पक ने करीब 38 दिन कोरोना से जंग लड़ी, लेकिन जीत नहीं सका। 29 मई को पुष्पक की भी डेथ हो गई। मृतक दोनों भाई विवाहित थे। परिवार में अब बुजुर्ग माता-पिता, एक छोटा भाई और दोनों की पत्नियां और दो-दो बच्चे हैं।
छोटे भाई को आखिर तक पता नहीं चला कि उसका बड़ा भाई नहीं रहा
कोरोना संक्रमण के बाद दोनों भाई रूचिर मिश्रा और पुष्पक मिश्रा नागपुर के दो अलग-अलग निजी अस्पतालों में भर्ती थे। रूचिर की 4 मई को मृत्यु हो गई। मनोबल न टूटे इसलिए परिवार के लोगों ने छोटे भाई पुष्पक की क्रिटिकल कंडीशन को देखते हुए नहीं बताया। नियति ऐसी कि भाई की मौत की खबर आखिर तक उसे नहीं मिल पाई। 29 मई को पुष्पक की सांसें भी टूट गई।
बच्चों को भरोसा नहीं, पापा की फोटो साथ में लेकर सोते हैं:
रूचिर की बेटी नित्या (12) व बेटा कबीर (07) और पुष्पक का बेटा विधान (09) अपने पापा की मौत को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। दादी गीता मिश्रा के मुताबिक नित्या थोड़ी समझदार है, वह बड़ों के सामने हिम्मत दिखाती है, जबकि कमरे में पापा की फोटो गोद में लेकर रोती है। बच्चे अपने पापा की फोटो साथ में लेकर सोते हैं। खुद ओढऩे के साथ फोटो को भी ढंक लेते हैं। पापा की याद आने पर रो पड़ते हैं।
मां की हिम्मत और पिता को था नाज
बुजुर्ग माता-पिता का बुरा हाल है। बहू व बच्चों के लिए वे हिम्मत तो दिखा रहे हैं, लेकिन बेटों की चर्चा होते ही वे फफक कर रो पड़ते हैं। मां गीता कहती हैं कि मेरी तो हिम्मत ही चली गई। घर के एक-एक कोने में उनकी याद आती है। बेटों ने कोई चीज की कमी नहीं होने दी। उम्मीद थी बेटे ठीक होकर आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिता दिनेश मिश्रा कहते हैं कि दोनों दिल के करीब थे। हमने हमेशा दूसरों की मदद की वही संस्कार दिए। उसके मुताबिक ही वे लोगों की मदद करते थे। हमें इसी बात का गर्व था।
Created On :   5 Jun 2021 2:16 PM IST