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राणा दंपति पर राजद्रोह का मामला दर्ज करने पर कोर्ट ने सरकार को फटकारा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। विशेष अदालत ने निर्दलीय सांसद नवनीत कौर राणा व विधायक रवि राणा की जमानत को लेकर दिए गए विस्तृत आदेश में राणा दंपति पर राजद्रोह का आरोप लगाने पर फटकार लगाई है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राणा दंपति ने बोलने की आजादी की सीमा रेखा को पार किया है लेकिन सिर्फ आपत्तिजनक व अपमानजनक शब्द राजद्रोह (भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए) का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
राणा दंपति के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर इस्तेमाल किए गए शब्दों के मद्देनजर कोर्ट ने कहा कि उन्होंने अपने बोलने की स्वतंत्रता की रेखा को पार किया है। पर यह राजद्रोह का आधार नहीं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राजनेता शांति व सौहार्द बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए उनकी जिम्मेदारी बड़ी है।
कोर्ट ने चार मई को राणा दंपति को जमानत प्रदान की थी जिसका 17 पन्नों का विस्तृत आदेश शुक्रवार को उपलब्ध हुआ। हनुमान चालीसा विवाद को लेकर पुलिस ने राणा दंपति को बीते 23 अप्रैल को गिरफ्तार किया था। राणा दंपति ने मुख्यमंत्री के निजी निवास स्थान मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा के पाठ की घोषणा की थी। पुलिस के मुताबिक राणा दंपति की इस घोषणा के पीछे कानून व्यवस्था को चुनौती देना था जिससे सरकार को अस्थिर किया जा सके। ताकि सरकार को भंग करने की सिफारिश की जा सके।
विशेष न्यायाधीश आरएन रोकडे ने मामले से जुडे तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि मामले में राजद्रोह का आरोप लगाने के घटक नजर नहीं आ रहे हैं। न्यायाधीश ने कहा कि एफआईआर देखने पर प्रतीत होता है कि हनुमान चालीसा के पाठ की घोषणा का आशय लोगों को हिंसा के लिए उत्तेजित करना नहीं था। यह घोषणा तोड़फोड करने की प्रवृत्ति के साथ सरकार के प्रति असंतोष भी व्यक्त नहीं करता। किंतु मीडिया के सामने दंपति की ओर से मुख्यमंत्री को लेकर कही गई बाते बेहद आपत्तिजनक हैं। राजनेता शांति व सौहार्द बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लोग इनकी बातों को मानते हैं। इसलिए उन पर बड़ी जिम्मेदारी होती है। क्योंकि राजनेताओं के भाषण का बड़ा महत्व होता है। हालांकि इस मामले में आरोपियों ने अपनी बोलने की आजादी की सीमा रेखा का उल्लंघन किया है किंतु सिर्फ आपत्तिजनक व अपमानजनक शब्द राजद्रोह (124ए) का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकते हैं। यह तभी हो सकता है जब लिखे व बोले गए शब्द उस प्रवृत्ति को बढाए जो हिंसा का रुप लेकर शांति को भंग करें। इसलिए इस मामले में आरोपियों का बयान सिर्फ निंदनीय नजर आता है।
इसे इतना नहीं खिजा जा सकता है कि इसे राजद्रोह के दायरे में लाया जा सके। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों ने एफआईआर दर्ज होने से पहले हुनमान चालीसा पाठ करने की घोषणा को वापस ले लिया था। न्यायाधीश ने कहा कि आरोपियो ने किसी को हथियार धारण करने के लिए नहीं कहा है। आरोपियों के भाषण ने किसी हिंसा को भी जन्म नहीं दिया है। इसलिए मेरी राय में इस मामले में आरोपियों पर राजद्रोह का अपराध दर्ज करने के घटक नजर नहीं आते हैं।
Created On :   6 May 2022 8:53 PM IST