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कसाइयों को बेचा गौवंश, अब गोबर खाद के लिए तरस रहे किसान
डिजिटल डेस्क, भंडारा. पर्यावरण रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले गौवंश को कसाइयों के हवाले करने के दुष्परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं। खेतों में ट्रैक्टर और रोटावेटर जैसी मशीनों का उपयोग करने के चक्कर में किसानों ने गौवंश के महत्व को भुला दिया। यही वजह है कि जो गोबरखाद उन्हें कभी मुफ्त में मिला करता था अब महंगे दामों में खरीदना पड़ रहा है। रासायनिक खाद से जमीन की उर्वरक क्षमता में कमी आयी है इसलिए किसान अब फिर से अपने पारंपारिक खेती के तरीकों की ओर मुड़ने लगे हैं। ऐसे में गोबरखाद की ओर उनका रुझान बढ़ा है। परंतु प्राकृतिक संसाधनों की बजाए अत्याधुनिक संसाधनों के उपयोग के चलते उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। गत कुछ वर्षों से खेती के अधिकांश कार्य ट्रैक्टर व रोटावेटर जैसी मशीनों के जरिए किए जा रहे हैं जिस कारण गौवंश की उपयोगिता काफी हद तक कम हो गई। जिससे किसानों ने गौवंश पर ध्यान देना छोड़ दिया। आम तौर पर खेती-किसानी में काम न आनेवाले और ऐसी गायें जो दूध नहीं देतीं उन्हें किसान बेचने लगे। इसी गौवंश को बूचड़खाने भेजा जाने लगा जिसका असर यह हुआ कि गौवंश की संख्या में भारी गिरावट आ गई है। किसानों के अनुसार चारा-पानी महंगा होने के कारण गौवंश पालना उनके लिए मुश्किल हो गया। किसानों की इसी सोच ने आज उन्हें इस कगार पर ला छोड़ा है कि अब मुफ्त में मिलनेवाला खाद भी उन्हें महंगे दामों में खरीदना पड़ रहा है। गौवंश नष्ट होने से गोबर खाद में भी कमी आयी है और गत वर्ष की तुलना में गोबर खाद की कीमतों में एक हजार रुपए तक की वृद्धि हुई है। हालांकि किसान यह राशि देने के लिए तैयार हैं फिर भी गोबरखाद नहीं मिल रही है। फिलहाल एक ट्राली गोबर खाद दो हजार रुपए में मिल रही है। रासायनिक खाद के अत्याधिक इस्तेमाल ने कृषि भूमि की उपजाऊ क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया है। रासायनिक खाद के कारण जमीन की उत्पादन में काफी कमी आयी है। यही वजह है किसान अब फिर से प्रकृत्ति प्रदत्त संसाधनों की ओर लौटने लगे हैं। जिससे अब गोबर खाद की मांग बढ़ गई है।
रासायनिक खाद के अनेक दुष्परिणाम
शरद भुते, खुटसावरी के मुताबिक गोबर खाद से जमीन उपजाऊ बनती है, इसके विपरीत रासायनिक खाद के अनेक दुषपरिणाम हैं। मैं मेरे खेत में गत अनेक वर्षों से जैविक खाद का ही उपयोग कर रहा हूं। लेकिन गत कुछ समय से गोबर खाद नहीं मिलने के कारण काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
मवेशियों की संख्या घटने से नहीं मिल रहा गोबर खाद
किशोर भोंगाडे के मुताबिक हमारे गांव में इससे पूर्व प्रत्येक किसान के तबेले में बैलजोड़ियां दिखाई देती थीं लेकिन आज हालात यह हैं कि गांव में केवल 10 से 15 बैल जोड़ियां ही रह गई हैं। साथ ही दूध देनेवाली गायों की संख्या में भी कमी आयी है। ऐसे में गोबर खाद मिलना मुश्किल हो गया है।
Created On :   7 Jun 2022 6:24 PM IST