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महाराष्ट्र में स्थाई डीजीपी की नियुक्ति वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित
डिजिटल डेस्क, मुंबई। यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) की अनुशंसा के आधार पर राज्य में स्थायी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति से जुड़ी याचिका पर सुनवाई पूरी करने के बाद बांबे हाईकोर्ट ने मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इससे पहले अदालत ने कार्यवाहक डीजीपी संजय पांडे की ओर से पक्षकार बनाने के लिए दायर अर्जी भी अस्वीकार कर दी और कहा कि अगर उन्हें पद से हटाया गया होता तो ही वे संविधान की धारा 311 के तहत इसके लिए अर्जी दे सकते थे। अदालत ने सवाल उठाया कि पांडे को नियमों के खिलाफ कार्यवाहक डीजीपी के रुप में काम करने का क्या अधिकार हैॽ मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव सीताराम कुंटे पर एक बार फिर सवाल उठाए और पूछा कि क्या राज्य के सर्वोच्च पद मुख्य सचिव के पद पर बैठे अधिकारी इस तरह के काम करते हैं। वकील दत्ता माने की ओर से दाखिल जनहित याचिका में मांग की गई है कि अदालत राज्य सरकार को निर्देश दे कि यूपीएससी ने डीजीपी के पद के लिए जिन तीन मानों की अनुशंसा की है उनमें से किसी एक को इस पद पर नियुक्त करें और कार्यवाहक डीजीपी के रुप में काम कर रहे संजय पांडे का कार्यकाल न बढ़ाया जाए।
माने के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने अदालत में कहा कि पांडे का नाम यूपीएससी की अनुशंसा सूची में नहीं था। राज्य पुलिस के सबसे बड़े पद का इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं किया जाना चाहिए। कई बार राजनीतिक लाभ के लिए इस तरह के फैसले लिए जाते हैं। शायद इसी तरह कार्यवाहक डीजीपी बनाए गए पांडे को इस पद पर ज्यादा समय तक रखा जा रहा है।
संजय पांडे के साथ अन्याय
पांडे की ओर से वकील नवरोज शीरवाई ने कहा कि कहा कि उनके मुवक्किल पर बड़ा अन्याय हो रहा है क्योंकि यूपीएससी ने उनकी सेवा वरिष्ठता का सही मूल्यांकन नहीं किया। इस पर खंडपीठ ने सवाल किया है अगर ऐसा था तो उन्होंने अदालत में इसे चुनौती क्यों नहीं दी। अदालत ने एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोणी से सवाल किया कि मुख्य सचिव ने कार्यवाही पर हस्ताक्षर करने से पहले इसकी कमियों को क्यों नहीं देखा और फिर एक सप्ताह में ही समिति ने कहा कि गलती हो गई। क्या पूर्व मुख्य सचिव से इस तरह की उम्मीद की जाती है।
पांडे सबसे वरिष्ठः महाधिवक्ता
इस पर राज्य के महाधिवक्ता कुंभकोणी ने कहा कि पांडे सबसे वरिष्ठ थे और उन्हें गलत और गैरकानूनी तरीके से सूची से बाहर रखा गया इसलिए यूपीएससी को सूची पर फिर से विचार करना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि क्या यूपीएससी इस तरह अपने फैसलों पर पुनर्विचार कर सकती हैॽ न्यायमूर्ति कार्णिक ने कहा कि अगर अनुशंसा से राज्य सरकार खुश नहीं हो तो क्या होता है। क्या यूपीएससी के फैसले राज्य सरकार के लिए बाध्यकारी होते हैं। अगर राज्य को कोई गलती दिखाई देती है तो क्या वह यूपीएससी को पुनर्विचार के लिए कह सकती है
Created On :   25 Jan 2022 11:10 PM IST