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बर्खास्तगी से बहाली के बीच का नहीं मिल सकता बकाया वेतन

डिजिटल डेस्क जबलपुर। एक अहम फैसले में हाईकोर्ट ने कहा है कि बर्खास्तगी से बहाली के बीच की अवधि का बकाया वेतन कर्मचारी को नहीं मिल सकता। एक हैड कांस्टेबल को उक्त अवधि का बकाया वेतनमान देने के संबंध में एकलपीठ द्वारा दिए गए आदेश को जस्टिस संजय यादव और जस्टिस अतुल श्रीधरन की युगलपीठ ने खारिज कर दिया। सरकार की ओर से दायर अपील सुनवाई के बाद मंजूर करते हुए युगलपीठ ने यह व्यवस्था दी।
प्रकरण के अनुसार मंडला जिले में हैड कांस्टेबल के पद पर पदस्थ शिव बाबू शुक्ला को दहेज के एक मामले में 27 फरवरी 2007 को 10 साल की सजा हुई थी। इस फैसले के कारण शिव बाबू को 27 फरवरी को ही नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। जिला सत्र न्यायालय द्वारा दी गई सजा को शिव बाबू शुक्ला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, जो 8 अक्टूबर 2013 को खारिज कर दी गई। आरोपों से बरी हो जाने को आधार बनाकर शिव बाबू शुक्ला ने बहाली के लिए आवेदन दिया। नौकरी पर फिर से बहाल होने के बाद उसने सजा के आधार पर हुई बर्खास्तगी से लेकर वर्ष 2013 में हुई बहाली के बीच की अवधि का बकाया वेतन पाने विभाग को आवेदन दिया। 28 जून 2014 और 12 जून 2015 को आवेदक द्वारा दिए गए आवेदन निरस्त होने पर एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी। एकलपीठ ने 17 अप्रैल 2017 को मामले पर फैसला देते हुए शिव बाबू को बकाया वेतनमान देने के आदेश दिए थे। इसी फैसले को चुनौती देकर यह अपील राज्य सरकार की ओर से दायर की गई थी।
मामले पर हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता विवेकरंजन पांडे ने पक्ष रखा। सुनवाई के बाद युगलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देकर कहा कि जिस अवधि का बकाया वेतनमान कर्मचारी द्वारा मांगा जा रहा, उस दौरान वो एक अपराध में संलिप्त पाया गया था। बाद में वह दोषमुक्त साबित हुआ तो वह नौकरी में बहाल हो गया। ऐसे में बर्खास्तगी से बहाली के बीच की अवधि का वेतन पाने का हकदार नहीं है। इस मत के साथ युगलपीठ ने एकलपीठ द्वारा दिए गया आदेश खारिज कर दिया।
अपील से बाहर के मुद्दे पर नहीं दे सकते दखल-
अपने फैसले में युगलपीठ ने हैड कांस्टेबल की ओर से दी गई उस दलील का भी जिक्र किया, जिसमें बर्खास्तगी के दौरान अपनाए गए भेदभावपूर्ण रवैये का जिक्र किया गया था। आवेदक की ओर से कहा गया कि बर्खास्तगी के मुद्दे में उसके साथ काफी जल्दबाजी बरती गई, जबकि कई और ऐसे कर्मचारी हैं, जिन्हें सजा तो हुई लेकिन फिर भी नौकरी में बने हुए हैं। युगलपीठ ने कहा कि यह मुद्दा अपील में शामिल नहीं है, इसलिए उस पर विचार नहीं किया जा सकता।
Created On :   4 Jan 2020 1:05 PM IST