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बाल कल्याण समिति ने सिविल सर्जन को लिखी चिठ्ठी, मांगा गायब हुए 5 बच्चों का हिसाब

डिजिटल डेस्क, सतना। तो क्या वाकई जिला अस्पताल ऐसा कोई रैकेट सक्रिय है जो नाजायज बच्चों की खरीद-फरोख्त कर रहा है। कम से कम जिला बाल कल्याण समिति की चिट्ठी एक ऐसे ही घिनौने मगर हैरतअंगेज मामले का खुलासा कर रही है। चिट्ठी का मजमून भले ही ऐसा न हो मगर यह अंदाजा लगाना जरा भी मुश्किल नहीं कि इसको लेकर एक्सीलेंस हॉस्पिटल में सबकुछ सामान्य नहीं चल रहा है। दरअसल, समिति ने सिविल सर्जन डॉ. एसबी सिंह से उन 5 बच्चों का हिसाब मांगा है जिन्हें या तो दुष्कर्म पीड़िताओं के हैं या फिर जिनके मां-बाप का पता नहीं है।
क्या है नियम
नियम है कि दुष्कर्म पीड़िता या फिर जिनके मां-बाप का पता नहीं है की सुपुर्दगी चाइल्ड लाइन के जरिए मातृ छाया को करना चाहिए। हालांकि कागजी प्रक्रिया गर्भवती किशोरी या युवती के जिला अस्पताल में भर्ती होने के साथ ही शुरू हो जाना चाहिए। ऐसे बच्चों के लिए बाल कल्याण समिति दावा-आपत्तियां आमंत्रित करता है उसके लिए कुछ दिनों का वक्त मुकर्रर किया जाता है। अगर कोई आपत्तियां नहीं आती तो नवजात को मातृ छाया के हवाले कर दिया जाता है।
हर दिन औसतन 25 बच्चों का जन्म
जिला स्वास्थ्य समिति की एक रिपोर्ट के हवाले से जिला अस्पताल में औसतन हर रोज 25 बच्चों का जन्म होता है। पिछले वित्तीय वर्ष में 8 हजार 8 सौ 74 प्रसव दर्ज किए गए थे। जबकि जिले भर के सरकारी अस्पतालों में 15 हजार 7 सौ 11 बच्चे जन्मे। अब जिला अस्पताल में कब दुष्कर्म पीड़िता का प्रसव हुआ या फिर कब कोई अविवाहित युवती मां बन गई इसकी जानकारी पैरामेडिकल स्टाफ अपने प्रबंधन को मुहैया नहीं कराता।
5 बच्चों का चाहिए हिसाब
जिला बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष शैला तिवारी ने जिला अस्पताल के सिविल सर्जन को कड़ी चिट्ठी लिखकर 5 नवजात शिशुओं का हिसाब मांगा है। उन्होंने लिखा कि बीते सप्ताह जिला अस्पताल में 5 बालक/बालिकाओं का जन्म हुआ। ये सभी दुष्कर्म पीड़िता अथवा अवैध थे जिन्हें नियमानुसार चाइल्ड लाइन अथवा मातृ छाया को भेजा जाना चाहिए थे। मगर अस्पताल प्रबंधन ने ऐसा नहीं किया और सभी बच्चे गायब हो गए। उन्होंने सीएस को लिखा कि इसकी शीघ्र जांच कराकर प्रतिवेदन प्रस्तुत करें ताकि उचित कार्यवाही की जा सके।
इधर, 1 साल में 88 किशोरियों का एबॉर्शन
इधर, राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के आंकड़े कहते हैं कि 1 साल के दरमियान जिले में 88 नाबालिग लड़कियों का एबॉर्शन कराया गया है। यह आंकड़ा उन एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिगनेंसी) सेंटरों के हैं। जहां काउंसलिंग के बाद सुरक्षित गर्भपात कराने की सुविधा उपलब्ध है। इसमें निजी नर्सिंग होम्स के आंकड़े शामिल नहीं है। 1 अप्रैल 2017 से अप्रैल 2018 के जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार सर्वाधिक नाबालिग लड़कियों के गर्भपात मझगवां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के एमटीपी सेंटर में हुए हैं।
इनका कहना है
हां यह सही है कि जिला अस्पताल में एक हफ्ते के भीतर दुष्कर्म पीड़ितों या फिर जिनके मां-बाप का पता नहीं हैं, को चाइल्ड लाइन को नहीं सौंपा गया है। हमने इसका ब्योरा सिविल सर्जन से मांगा है।
शैला तिवारी, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति
मुझे यह कहने में तनिक भी गुरेज नहीं कि जिला अस्पताल में ऐसा कोई रैकेट सक्रिय है जो ऐसे बच्चों की खरीद-फरोख्त कर रहा है। इस साजिश में वहां का पैरामेडिकल स्टाफ भी शामिल है। क्योंकि ऐसे बच्चे मातृछाया तक नहीं पहुंच पाते।
प्रदीप सक्सेना, अध्यक्ष, सेवा भारती
Created On :   10 Aug 2018 2:05 PM IST