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रामायण और महाभारत में नजर आती है इकानॉमिक्स और पॉलिटिक्स
डिजिटल डेस्क जबलपुर। माइथोलॉजी विषय थोड़ा मुश्किल और विश्वास से जुड़ा विषय है। जबकि गणित और विज्ञान के साथ ऐसा नहीं है। विश्वास और विज्ञान, दोनों विषयों को पढऩे-पढ़ाने में फर्क है। मैं जब माइथोलॉजी पढ़ता था तो समझ आता था कि इसमें तो बिजनेस के बारे में बातें हो रही हैं। मैं जब रामायण और महाभारत को पढ़ता हूँ तो मुझे इकानॉमिक्स, पॉलिटिक्स और फिलासफी दिखाई देती है। कुछ भी सीखने के लिए व्यक्ति में जिज्ञासा होना जरूरी है। मैंने जो कुछ भी सीखा है हमारे शास्त्रों से सीखा है। यह कहना है प्रख्यात पौराणिक कथाकार और लेखक डॉ. देवदत्त पटनायक का। शहर में आयोजित एमपी-सीजी न्यूरोकॉन में हिस्सा लेने शहर आए श्री पटनायक ने दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में माइथोलॉजी और अपने लेखन से जुड़े विषय पर बात की। उन्होंने बताया कि वे पहली बार जबलपुर आए हैं और चौंसठ योगिनी मंदिर देखने जरूर जाएँगे।
राइटिंग, रीडिंग और रीसर्च में इंट्रस्ट
मैंने एमबीबीएस की पढ़ाई की, लेकिन मुझे यह पता था कि मैं क्लीनिकल मेडिसिन फील्ड में नहीं जाऊँगा। मैं 15 साल फार्मा इंडस्ट्री में भी रहा। यूपीएससी की तैयारी भी की। पौराणिक कथाओं पर बातें करना, लिखना यह मेरी हॉबी थी। कॉलेज की मैगजीन में भी कार्य करता था। मुझे राइटिंग, रीडिंग और रीसर्च में इंट्रस्ट था। फार्मा इंडस्ट्री में काम करने के दौरान ऐसे मौके मिले, जिसमें मरीजों, चिकित्सकों के लिए बनने वाले लिटरेचर पर काम किया। इसके बाद वहाँ से बिजनेस-कंसल्टिंग फील्ड में आ गया। मैंने कभी नहीं सोचा कि बुक लिखूँगा, लेकिन यह बात भी सच है कि पानी बनाआगे तो प्यासे खुद आएँगे।
एजुकेशन में माइथोलॉजी पर कोई कोर्स नहीं
माइथोलॉजी के बारे में कोई बात नहीं करता था, जब मैंने बात करनी शुरू की तो लोगों में भी रुचि आई। आज लोग हिस्ट्री पढ़ते हैं, लेकिन एजुकेशन में भी माइथोलॉजी पर कोई कोर्स नहीं है, कोई पढ़ाई नहीं होती। जबकि दोनों ही विषय 19वीं सदी में अस्तित्व में आए। मेरा मानना है कि विज्ञान के प्रेमी, सरस्वती प्रेमी नहीं होते। सरस्वती विश्वास का विषय है। सरस्वती को जानना है तो विज्ञान की तरफ जाना होगा। साइंस शंका से शुरू होती है। यही विज्ञान की नींव है।
मरीज और चिकित्सक के बीच संवाद जरूरी
क्लीनिक प्रैक्टिस में माइथोलॉजी को लेकर डॉ. पटनायक कहते हैं कि जब दो लोग साथ में बैठते हैं तो दोनों के अलग-अगल विचार होते हें। अगर हमें संबंध बनाना है तो संवाद करना होगा। संवाद नहीं होगा तो वाद-विवाद होगा। क्लीनिक प्रैक्टिस में भी आज यही हो रहा है। डॉक्टर विज्ञान की दृष्टिकोण से बात करते हैं, पेशेंट गूगल से सीख कर रहे हैं। ऐसे में दोनों एक दूसरे को चैलेंज कर रहे हैं।
Created On :   5 Dec 2021 9:56 PM IST