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पारंपरिक पहलवानी में कोरोना का असर, सूने पड़े अखाड़े बंद हुए दंगल
डिजिटल डेस्क पन्ना। नाग पंचमी का नाम जुबां पर आते ही एक और सपेरों की बीन और फ न उठाए नागो के करतब तो दूसरी ओर ढोल नगाड़ों की थाप और पहलवानों के ताल की आवाज कानों में गूंजने से बदन में सिंहरन उठने लगती थी, ऐसे में लोग खुद को अखाड़े की ओर जाने से नहीं रोक पाते थे। भारत देश का यह पारंपरिक खेल विश्व भर में प्रसिद्ध है जो विगत वर्ष से कोविड-19 वैश्विक आपदा के कारण रुक सा गया है। पन्ना जिले में पहले गांव गांव दंगल हुआ करते थे जिसमें बच्चे और युवा जोर आजमाइश करते थे जो धीरे धीरे लगभग दर्जनभर दंगलों और इतने ही कुछ अखाड़ों तक सीमित रह गया। विगत 2 वर्ष पूर्व तक पन्ना नगर के रानीगंज में छत्रसाल अखाड़ा और इंद्रपुरी कॉलोनी के दहलान ताल का बजरंग अखाड़ा में बारिश प्रारंभ होते ही बच्चों एवं युवाओं द्वारा यहां व्यायाम और कुश्ती की प्रैक्टिस शुरू कर दी जाती थी। दो दशक पूर्व पन्ना में लगभग एक दर्जन अखाड़े हुआ करते थे, जिनमें इन दो अखाड़ों के साथ साथ धाम मोहल्ला में पल पल बाबा का अखाड़ा, बेनी सागर तालाब में बीच के बगीचा का अखाड़ा, खेजरा मंदिर के पीछे गूदर का अखाड़ा, किलकिला नदी के किनारे का अखाड़ा जैसे दर्जनभर अखाड़े हुआ करते थे जो धीरे धीरे बंद हो गए।
बड़े शहरों की ओर रवाना हुआ गांव का खेल-
वर्तमान की स्थिति में देखा जाए तो गांव का यह खेल शहरों की ओर पहुंच चुका है गांव की मिट्टी के अखाड़ों से युवाओं का मोह भंग हो रहा है तथा शहरों में मैट में होने वाली कुश्ती आकर्षित कर रही है। पहले लोग गाय भैंस पालते थे जिनका दूध पीकर बच्चे और युवा शक्तिशाली बनते थे आज के जमाने में धूम्रपान और मिलावटी दूध, घी एवं अन्य खाद्य सामग्री की वजह से बच्चों की शक्ति क्षीण हो रही है जिससे मेहनत कड़ी मेहनत के इस खेल से मोह भंग हो रहा है।
नही बचें जिले में लगने वाले दंगल-
पन्ना जिले में विगत दो दशक पूर्व तक लगभग सैकड़ा भर दंगल लगते थे जो कुछ समय से लगभग दर्जनभर ही बचे हैं जिनमें पन्ना के छत्रसाल पार्क के पास लगने वाला दंगल, धरमपुर के परमहंस अखाड़ा का दंगल, खोरा का दंगल, पहाड़ीखेरा का दंगल, रमखिरिया का दंगल, पिष्टा का दंगल, मड़ला का दंगल, बनहरी का दंगल, बरकोला का दंगल ऐसे दर्जनभर दंगल आयोजित होते हैं जो कोरोना काल से बंद चल रहें।
पन्ना के नामचीन पहलवान-
पहले पन्ना के कई ऐसे पहलवान हुये है जो पन्ना जिले का झंडा प्रदेश से बाहर भी गाड़ चुके हैं जिनमें हरि पहलवान रानीगंज अखाड़ा के कोच अभी भी बच्चों एवं युवाओं को कुश्ती का हुनर सिखाते हैं। इसी प्रकार बजरंग अखाड़ा में उस्ताद प्यार बाबू पहलवान रेफ री, संतोष लखेरा पहलवान और राजू पहलवान बच्चों को कुश्ती सिखाते थे। अब तक के सबसे बलशाली पहलवानों में भग्गी यादव का नाम आता है जिन्होंने पन्ना के दंगल में आने वाले बड़े बड़े पहलवानों को परास्त किया जिसे पन्ना के तत्कालीन नरेश महाराजा नरेंद्र सिंह जूदेव द्वारा विशेष रुप से सम्मानित किया गया। इनके द्वारा लाए गए भारी पत्थर नगर के कई मंदिरों में लगे हुए हैं और कई जगह उनकी लाई गई करी रखी हुई हैं जो आज के 10 लोग भी उठाने में नाकाम हो रहे हैं।
कोरोना का संटर कुश्ती पर भी-
कोविड-19 संकटकाल से पहले तक के दंगलों में देखा जाए तो पन्ना जिले के युवा पहलवानों में राकेश भट्ट, वीरेंद्र यादव, हफ ीज खान, सुरेश यादव, फू लचंद यादव, मुकेश सिंह, गोपाल सिंह आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में बढ़ चढ़कर भाग लेते रहे। इसी प्रकार विद्यालय और महाविद्यालय की ओर से होने वाली प्रतियोगिताओं में वीरेंद्र रैकवार, हरेंद्र यादव भी प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे जो कोविड-19 संकटकाल से लगभग पूरी तरह से बंद चल रहा है। कुल मिलाकर कोविड-19 संकटकाल का असर केवल व्यापार पर ही नहीं बल्कि खेलों पर भी पड़ा है जो सबसे ज्यादा कुश्ती में देखा जा रहा है। पहलवानों की बातों को मानें तो वर्तमान में पक्षपात और राजनीति की वजह से कुश्ती पन्ना जिले से गायब हो रही। कुछ पहलवान राजनीति में जाने के बाद कुश्ती को ही सस्ती लोकप्रियता के रूप में इस्तेमाल करने लगते हैं और जिले की युवाओं के साथ पक्षपात पूर्ण व्यवहार भी कुश्ती की कमर तोडऩे के लिए जिम्मेदार माना गया है। युवाओं का कहना है कि कुश्ती को फि र से जीवंत करने हेतु आधुनिकीकरण जरूरी है जैसा कि हर खेल में हो चुका है हर जिले में कुश्ती के लिए मैट की व्यवस्था होनी चाहिए और बाकायदा बाहरी कोच भी होने चाहिए तब कहीं जाकर कुश्ती अपने पुराने अस्तित्व पर आ सकेगी और फि र से पहलवानों की थाप सुनने और दांवपेच देखने गांव गांव में मिलेगें।
Created On :   13 Aug 2021 12:05 AM IST