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नामांकन पत्र में गड़बड़ी के आधार पर रद्द नहीं कर सकते चुनाव - राज्य चुनाव आयोग का फैसला रद्द

डिजिटल डेस्क, मुंबई। अनुचित तरीके से उम्मीदवारों के नामांकन फार्म को स्वीकार और अस्वीकार करने अथवा नामांकन फार्म में गड़बड़ी के आरोप चुनाव रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है। राज्य चुनाव आयोग इस आधार पर पुरी चुनाव प्रक्रिया नहीं रद्द कर सकता। बांबे हाईकोर्ट ने सोलापुर जिले की महोल तहसील में स्थित खुनेस्वर ग्राम पंचायत के चुनाव को रद्द करने निर्णय को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति आरवी बोर्डे व न्यायमूर्ति एनएम जमादार की खंडपीठ ने साफ किया है कि चुनाव के दौरान आरोप लगना आम बात है। यदि नामांकन फार्म स्वीकार करने की कथित गडबड़ी के आरोपों के आधार पर पूरे चुनाव को रद्द किया जाएगा तो इस तरह कोई चुनाव कभी नतीजे तक नहीं पहुंचेगा। नामांकन फार्म में गड़बड़ी व गलत जानकारी के आधार पर चुनावी याचिका दायर करने का कानून में प्रावधान है। यदि किसी उम्मीदवार को किसी के नामांकन फार्म में खामी नजर आती है तो उसके अधार पर विजयी उम्मीदवार का निर्वाचन रद्द करने की मांग की जा सकती है। लेकिन उम्मीदवारों के नामांकन फार्म में गड़बड़ी व इसे अनुचित तरीके से स्वीकार किए जाने का आरोप चुनाव रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है।
खंडपीठ ने पाया कि निर्वाचन अधिकारी ने 15 उम्मीदवारों के नामांकन फार्म इसलिए रद्द कर दिए क्योंकि उन्होंने अपने घर के शौचालय के नियमित इस्तेमाल का प्रमाणपत्र नहीं दिया था। जबकि जिनके नामांकन फार्म रद्द किए गए थे उन्होंने दावा किया था कि उनके घर में शौचालय है। नामांकन फार्म रद्द होनेवाले उम्मीदवारों के मुताबिक ग्रामसेवक ने ऐसे लोगों को शौचालय होने का प्रमाणपत्र जारी किया है जिनके घर में शौचालय बना ही नहीं है। और जिनके घर में है उन्हें यह प्रमाणपत्र नहीं दिया गया है। जिन उम्मीदवारों के नामांकन रद्द हुए थे उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की लेकिन हाईकोर्ट ने चुनावी प्रक्रिया अंतिम पडाव पर होने के आधार पर चुनाव में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था और कहा था कि चुनावी नतीजे अदालत की अनुमति के बिना न घोषित किए जाए।
इस बीच विवाद को देखते हुए स्थानीय खंड विकास अधिकारी ने मामले की जांच की तो पाया कि ग्रामसेवक ने शौचालय के संबंध में गलत प्रमाणपत्र जारी किए हैं। इसके बाद ग्राम सेवक को निलंबित कर दिया गया। खंड विकास अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर राज्य चुनाव आयोग ने पारदर्शी व निष्पक्ष चुनाव करने के लिए 1 नवंबर 2015 को होनेवाले ग्रामपंचायत चुनाव को रद्द कर दिया। उस वक्त चुनाव रद्द करने के चुनाव आयोग के फैसले को हाईकोर्ट ने काफी कड़ा बताते हुए कहा था कि चुनाव आयोग के आदेश की वैधता को परखना जरुरी है। तब तक सरकार वहां पर प्रशासक नियुक्त करे।
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा कि उसने निष्पक्ष व पारदर्शी चुनाव कराने के उद्देश्य से नए सिरे से पूरा चुनाव कराने का आदेश जारी किया था। उसे हाईकोर्ट के आदेश के बारे में जानकारी नहीं थी। जबकि उम्मीदवारों का कहना था नामांकन फार्म में गलत जानकारी चुनावी अपात्रता से जुड़ा मुद्दा है। इस विषय पर चुनावी याचिका दायर हो सकती है। ऐसे में पूरा चुनाव रद्द करने का आदेश मनमानीपूर्ण नजर आ रहा है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि चुनाव रद्द करने का चुनाव आयोग का फैसला मनमानीपूर्ण नजर आ रहा है। इसलिए इसे रद्द किया जाता है। महज नामांकन फार्म में गड़बड़ी के आरोप पूरा चुनाव रद्द किए जाने का आधार नहीं हो सकता है। खंडपीठ ने कहा कि संबंधित ग्राम पंचायत में साल 2015 में चुनाव हुआ था। लेकिन उसके नतीजे नहीं घोषित हुए। अब पुराने मतदान के आधार पर उम्मीदवारों का चयन ठीक नहीं है। इसलिए चुनाव आयोग नए सिरे से सोलापुर के महोल तहसील में स्थित खुनेश्वर ग्रामपंचायत के सदस्यों का नए सिरे से चुनाव कराए।
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ध्यान रखें की प्रॉपर्टी RERA अप्रूव्ड हो
कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि वो भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री के रेगुलेटर RERA से अप्रूव्ड हो। रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद प्रॉपर्टी खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को किया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।