दस साल में 3.92 रुपए प्रति यूनिट से बढ़कर 6.55 तक पहुँच गई बिजली

Electricity rises from Rs 3.92 per unit to 6.55 in ten years
दस साल में 3.92 रुपए प्रति यूनिट से बढ़कर 6.55 तक पहुँच गई बिजली
दस साल में 3.92 रुपए प्रति यूनिट से बढ़कर 6.55 तक पहुँच गई बिजली

हर बार घाटा बताकर बढ़ा रहे दाम, अभी तीन माह के लिए बढ़े दाम, अब 6 से 7 फीसदी और बढ़ाने की तैयारी
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
जब कभी बिजली के दाम बढ़ाने की बात आती है तो बिजली कंपनियों की ओर से लगातार हो रहे घाटे का तर्क दिया जाता है। हर साल हानि बताकर बिजली कंपनियाँ दाम बढ़ाकर उपभोक्ताओं पर बोझ डाल रही हैं। अभी पिछले माह ही दो फीसदी दर की वृद्धि की गई है। विगत दस वर्षों के आँकड़े देखें इन दस सालों में बिजली के दाम 3.92 रुपए प्रति यूनिट से बढ़कर 6.55 तक पहुँच गए और इसके बाद भी अप्रैल माह से 6 फीसदी दाम बढ़ाने की तैयारी है, जिसको लेकर मप्र नियामक आयोग के समक्ष याचिका दायर की गई है। हर साल बढ़ रहे बिजली के दाम से हर कोई परेशान और लुटा-पिटा महसूस कर रहा है। आने वाले समय में आयकरदाताओं की सब्सिडी भी बंद कर दी जाएगी। इन सबके बावजूद न तो सत्तापक्ष और न ही विपक्ष के जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई आवाज उठाई जा रही है। 
चुनाव थे तो नहीं बढ़ाए दाम
चुनावी समर के दौरान बिजली कंपनियों द्वारा रेट बढ़ाने प्रस्ताव दिए जाने के बाद भी वर्ष 2020 में दाम बढ़ाने का विचार नहीं किया गया। हालाँकि इससे पहले वर्ष 2008-09 में चुनाव के चलते मात्र तीन पैसे की बढ़ोत्तरी की गई थी। जानकारों की मानें तो वर्ष 2010-11 में दर 3.92 पैसे प्रति यूनिट थी वहीं दस साल बाद यानी  पिछले माह 1.98 फीसदी दाम बढ़कर 6.55 प्रतिशत तक पहुँच गई है। 2012-13 में औसत बिजली की कीमत 4.66 पैसे प्रति यूनिट थी, वह घटकर 2013-14 में 4.35 पैसे प्रति यूनिट हो गई। 
इन दस सालों में दोगुने हुए दाम 
 पॉवर सिस्टम से जुड़े लोगों की मानें तो इन दस सालों में बिजली के दाम दोगुना बढ़े हैं। जिस वक्त प्रति यूनिट की दर 3 रुपए 91 पैसे थी उस दौरान सामान्य स्लेब 2 सौ यूनिट खपत का बिल फिक्स चार्ज जोड़कर 8 सौ रुपए के करीब आता था। वहीं बिल अब औसत 1590 रुपए तक आ रहा है। वर्तमान समय में की गई वृद्धि में फिक्स चार्ज की राशि में प्रति यूनिट 55 रुपए तक की वृद्धि की गई है।
जनप्रतिनिधियों को जनता की पीड़ा से सरोकार नहीं
पिछले 10-12 सालों से लगातार बिजली के दाम बढ़ रहे हैं। इस बीच जब-जब चुनाव आते हैं तो दर बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया जाता है। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि सब कुछ सरकार के इशारे पर ही होता है। इन सबके बावजूद रेट बढऩे के खिलाफ आज तक किसी भी पार्टी के जनप्रतिनिधि या संगठन के नेताओं ने कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया है। आश्चर्य की बात है कि जनप्रतिनिधियों को जनता की पीड़ा से कोई सरोकार नहीं है।  
 

Created On :   23 Jan 2021 9:05 AM GMT

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