खुलासा : सिर्फ 6 फीसदी अदालती मामलों में ही हो सका फैसला, 64% की जांच नहीं कर सकी मुंबई पुलिस

Exposed : Only 6% cases could be decided, Mumbai police could not investigate 64%
खुलासा : सिर्फ 6 फीसदी अदालती मामलों में ही हो सका फैसला, 64% की जांच नहीं कर सकी मुंबई पुलिस
खुलासा : सिर्फ 6 फीसदी अदालती मामलों में ही हो सका फैसला, 64% की जांच नहीं कर सकी मुंबई पुलिस

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पुलिस के आधुनिकीकरण के तमाम दावों के बावजूद काम के बोझ तले दबी पुलिस और न्यायप्रणाली लगातार चरमरा रही है। साल 2019 में मुंबई महानगर की अदालतों में करीब ढाई लाख मामलों की सुनवाई हुई, लेकिन फैसला इनमें से सिर्फ छह फीसदी मामलों में ही आ सका। इसके अलावा 18 फीसदी रिक्तियों से जूझ रही मुंबई पुलिस साल 2019 के अंत तक आईपीसी के तहत दर्ज मामलों में से 64 फीसदी की जांच तक पूरी नहीं कर पाई थी। प्रजा फाउंडेशन के प्रबंधक ट्रस्टी निताई मेहता ने गुरूवार को इससे जुड़े आंकड़े जारी करते हुए कहा कि हालात में सुधार के लिए तुरंत कई अहम कदम उठाए जाने की जरूरत है।

मेहता ने बताया पुलिसबल और न्यायपालिका में रिक्त पदों के चलते मामलों की सुनवाई बेहद धीमी गति से हो रही है। मुंबई में लोक/सार्वजनिक अभियोजकों के 28 फीसदी पद रिक्त हैं। सत्र न्यायालय के न्यायधीशों के भी 14 फीसदी पद रिक्त हैं। साल 2019 में आईपीसी के तहत अदालतों में चल रहे 2 लाख 49 हजार 922 मामलों में से सिर्फ छह फीसदी मामलों में फैसले सुनाए जा सके। 

11 महीनों में दायर हो रहे आरोप पत्र

साल 2013 से 2017 के बीच के मामलों के अध्ययन से पता चलता है कि एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपपत्र दायर करने के लिए 90 दिन की अवधि दी जाती है लेकिन मुंबई पुलिस को आरोपपत्र दायर करने में औसत 11.1 महीने लगते हैं। इसके अलावा मामले में पहली सुनवाई से फैसले तक औसत दो से चार महीने का समय लगता है। यही इस दौरान पुलिस सिर्फ 24 फीसदी मामलों में ही आरोपियों को दोषी साबित कर सजा दिलवा पाई। 

दुष्कर्म के मामले में सजा का प्रमाण सिर्फ 18 फीसदी 

डकैती के मामलों में दोषसिद्धि में सबसे ज्यादा समय लगता है। आंकड़ों के मुताबिक डकैती के मामलों में फैसला आने में औसत 5 लाख 8 महीने का समय लगता है। विशेष न्यायालयों के जरिए कम समय में मामलों की सुनवाई खत्म करने की कोशिशें भी ज्यादा सफल नहीं हुईं हैं। पाक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों में एक साल के भीतर सुनवाई खत्म करने का प्रावधान था लेकिन आंकड़े बताते हैं कि साल 2019 में सिर्फ 20 फीसदी मामलों की सुनवाई एक साल के भीतर खत्म हो सकी। साल 2013 से 2017 के बीच के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि बलात्कार के मामले में दोषसिद्धि सिर्फ 18 फीसदी है और औसत 42 सुनवाई और 3 साल 2 महीने के बाद ही फैसले आ पाते हैं।    

Created On :   26 Nov 2020 7:45 PM IST

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