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फीस माफी योजना को भूल रहा यूनिवर्सिटी, विद्यार्थियों को नहीं मिल रहा लाभ
डिजिटल डेस्क, नागपुर। होनहार बच्चों को उच्च शिक्षा देने के लिए सरकार अनेक योजनाएँ चलाती है लेकिन कई बार सरकारी विभाग की अनदेखी से गरीब बच्चों को ऐसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता । नागपुर यूनिवर्सिटी में भी ऐसा ही कुछ नजर आ रहा है। यूनिवर्सिटी ने यहां पढ़ने वाले आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं शुरू कर रखी है।
इनमें से ही एक योजना गरीब विद्यार्थियों के लिए परीक्षा शुल्क माफी की है, लेकिन योजना के प्रचार-प्रसार की कमी के चलते अनेक जरूरतमंद विद्यार्थी इस योजना से वंचित हैं। आलम तो यह है कि, स्वयं विश्वविद्यालय के कई कर्मचारी भी इस योजना को भूल चुके हैं। तब ही विवि के परीक्षा विभाग में या कैंपस में कहीं भी इस योजना की जानकारी देने के लिए सूचना फलक या अन्य प्रयास नहीं नजर आते।
फीस के लिए जद्दोजहद
विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग का आए दिन ऐसे विद्यार्थियों से सामना होता है, जो परीक्षा फीस भरने की स्थिति में नहीं होते। बीते दिनों ऐसी ही एक निर्धन छात्रा की परीक्षा फीस विभाग के कर्मचारियों ने चंदा जमा करके भरी थी। हांलाकि, सभी जरूरतमंद विद्यार्थी इतने भाग्यशाली नहीं होते, कई बार बड़ी मशक्कत करने के बाद वे परीक्षा फीस भर पाते हैं।
वर्ष 2008 में शुरू हुई थी योजना
नागपुर विश्वविद्यालय से नागपुर, वर्धा, गोंदिया, भंडारा, चंद्रपुर के कई कॉलेज सम्बद्ध हैं। विश्वविद्यालय से बड़ी संख्या में गरीब विद्यार्थी शिक्षा लेते हैं। कई बार तो विद्यार्थियों की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर होती है कि, वे परीक्षा शुल्क का खर्च तक वहन नहीं कर सकते। ऐसे विद्यार्थियों के हित को ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय ने ऐसे विद्यार्थियों के लिए परीक्षा शुल्क रिफंड की योजना शुरू की थी।
इस योजना के तहत विद्यार्थियों को परीक्षा फॉर्म के साथ अपनी आर्थिक स्थिति बता कर जरूरी दस्तावेजों के साथ रिफंड का फॉर्म भी भरना जरूरी था। योजना शुरू होने के पहले वर्ष 8 और अगले वर्ष महज 10 फॉर्म ही विश्वविद्यालय को मिले। अब आलम यह है कि, परीक्षा फीस रिफंड के लिए एक भी फॉर्म विश्वविद्यालय को नहीं मिलते हैं।
रिफंड का प्रावधान
विश्वविद्यालय ने वर्ष 2008 से आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के लिए एक योजना शुरू की है, जिसके तहत जरूरतमंद विद्यार्थियों की परीक्षा फीस रिफंड का प्रावधान है, लेकिन अब हमारे पास ऐसे कोई आवेदन ही नहीं आते। कॉलेजों को विद्यार्थियों को इसके प्रति जागरूक करना चाहिए।
-डॉ. प्रमोद येवले, प्रो-कुलगुरु, नागपुर विश्वविद्यालय
Created On :   30 Oct 2017 2:36 PM GMT