कर्मचारी को नौकरी से निकालना एक तरह का आर्थिक मृत्युदंड

Firing an employee is a kind of financial death penalty - High Court
कर्मचारी को नौकरी से निकालना एक तरह का आर्थिक मृत्युदंड
हाईकोर्ट कर्मचारी को नौकरी से निकालना एक तरह का आर्थिक मृत्युदंड

डिजिटल डेस्क, मुंबई। कर्मचारी को नौकरी से निकालना काफी कठोर सजा है। यह एक तरह से आर्थिक मृत्युदंड है। यह बात कहते हुए बांबे हाईकोर्ट ने चार साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म व पाक्सों कानून की धाराओं के तहत लगे आरोपों के चलते सेंट्रल इंडस्ट्रीयल सिक्योरिटी फोर्स(सीआईएसएफ) में कार्यरत उदय टिर्के को दोबारा नौकरी में रखने का निर्देश दिया है। टिर्के पर अपने सहकर्मी की चार साल की बेटी के साथ दुष्कर्म के आरोप में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। बर्खास्तगी के आदेश के खिलाफ टिर्के ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 

न्यायमूर्ति पीबी वैराले व न्यायमूर्ति अनिल किल्लोर की खंडपीठ के सामने टिर्के की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान टिर्के के वकील ने कहा कि इस मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई है। मेरे मुवक्किल के खिलाफ दुर्भावना के तहत कार्रवाई की गई है। मेरे मुवक्किल के खिलाफ विभागीय जांच के बिना ही सेवा से बर्खास्त कर दिया दिया गया है। वहीं सीआईएसएफ के महानिदेशक की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि इस मामले में विभागीय जांच करने से स्थानीय लोगों की भावानाओं को ठेस लग सकती थी। इसका सीआईएसएफ दल के दूसरे लोगों के मन पर विपरीत असर पड़ सकता था।  विभागीय जांच में पीड़िता से पूछताछ करके उसे और पीड़ा नहीं पहुंचायी जा सकती थी। इसके अलावा याचिकाकर्ता पर काफी जधन्य अपराध का आरोप है। आरोपी इस मामले में गिरफ्तार हो चुका है और लंबे समय तक हिरासत में था। इसलिए आरोपी के खिलाफ विभागीय जांच नहीं की गई है। लेकिन सीआईएएसएफ ने मामले की जांच के बाद ही याचिकाकर्ता को नौकरी से बर्खास्त करने का आदेश जारी किया है। 

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि कर्मचारी को नौकरी से निकालना काफी कड़ी सजा है। सेवा से बर्खास्तगी एक तरह से आर्थिक मृत्युदंड है। सीआईएसएफ इस मामले में विभागीय व अथवा अनुशासनात्मक जांच की प्रक्रिया को दरकिनार नहीं कर सकता है। इस तरह से खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करते हुए उसे दोबारा नौकरी में रखने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने कहा कि सीआईएसएफ इस मामले में आरोपी के खिलाफ विभागीय जांच करने के लिए स्वतंत्र है। और वह आरोपी के खिलाफ कार्रवाई भी कर सकता है।  
 

Created On :   14 Jan 2022 9:17 PM IST

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