अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दूसरे के अधिकारों के अतिक्रमण का लाईसेंस नहीं : हाईकोर्ट

Freedom of expression is not a license to violate the rights of others: High Court
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दूसरे के अधिकारों के अतिक्रमण का लाईसेंस नहीं : हाईकोर्ट
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दूसरे के अधिकारों के अतिक्रमण का लाईसेंस नहीं : हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि लोकतंत्र में लोगों को अपना मत व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन यह हक दूसरे के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का लाइसेंस नहीं देता है। बोलने की स्वतंत्रता दूसरों के अधिकारों से ऊपर नहीं है। आलोचना निष्पक्ष होगी तो सार्वजनिक पद पर बैठा व्यक्ति भी स्वीकार करेगा। हाईकोर्ट ने कहा कि आज कल सोशल मीडिया में किसी की भी आलोचना करना बेहद आसान हो गया है। लोग सोचते है कि यदि वह प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के खिलाफ पोस्ट डालेंगे, तो उन्हें लोकप्रियता व प्रचार मिलेगा। लेकिन आलोचना ऐसी हो जिससे सार्वजनिक कार्यालय की गरिमा बनी रहे और यह अनुचित न हो। 

न्यायमूर्ति एस एस शिंदे व न्यायमूर्ति एम एस कर्णिक की खंडपीठ ने यह बात नागपुर निवासी समित ठक्कर नामक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। ठक्कर पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे व उनके बेटे तथा राज्य के पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे पर आपत्तिजनक ट्वीट करने का आरोप है। वीपी मार्ग पुलिस स्टेशन ने ठक्कर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है। जिसे रद्द किए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। 

गुरुवार को खंडपीठ के सामने ठक्कर की ओर से पैरवी कर रहे वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिकों के पास सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की आलोचना का अधिकार है। फिर चाहे इस पद पर प्रधानमंत्री ही क्यों न हो। अभद्र व अपमानजनक भाषा का अर्थ जरूरी नहीं कि अश्लीलता अथवा बेहूदापन हो। आम तौर पर सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को इन छोटी चीजों को नजरअंदाज करना चाहिए। मेरे मुवक्किल के मामले में मुख्यमंत्री की मानहानि होने का दावा है पर शिकायत उन्होंने (सीएम) नहीं, निजी व्यक्ति ने की है। 

इससे असहमत खंडपीठ ने कहा कि बोलने की स्वतंत्रता अपने आप मे पूर्ण व असीमित अधिकार नहीं है। यह अधिकार दूसरे के अधिकार के उल्लंघन का लाइसेंस नहीं देता है। कई बार हमें भी आलोचना का सामान करना पड़ता है। लेकिन हम इसे नजरअंदाज करते हैं। लेकिन हर किसी से इसकी अपेक्षा नहीं कर सकते। कई बार सार्वजनिक पद पर बैठा व्यक्ति बेहद संवेदनशील होता है। यदि आलोचना निष्पक्ष होगीx तो हर कोई स्वीकार करेगा। आलोचना उचित व निष्पक्ष होनी चाहिए न कि अनुचित व अपमानजनक। 

इस दौरान सरकारी वकील ने कहा कि हमने आरोपी को बयान दर्ज करने के लिए बुलाया है। इस पर चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि पुलिस मेरे मुवक्किल को गिरफ्तार न करें, तो वे पुलिस स्टेशन जाने को तैयार हैं। खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को पांच अक्टूबर को पुलिस स्टेशन जाने को कहा है और मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। 
 

Created On :   1 Oct 2020 7:08 PM IST

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