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भूतिया दरवाजा : दिन में तैयार करते थे गेट, शाम को टूट जाता था
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राजे रघुजी भोसले प्रथम ने 1735 के पहले महल क्षेत्र में भव्य गेट बनाना चाहा, लेकिन गेट बनने के बाद टूट जाता था। यह गेट पूरा नहीं बन सका और आज तक गेट का चबूतरा (फाउंडेशन) ही यहां मौजूद है। कहा जाता है कि, बंगाल में युद्ध जीतने के बाद राजे रघुजी के भतीजे खंडोजी राजे के पास काला जादू जानने वाले कई लोगों ने समर्पण किया था। काला जादू जानने वालों ने इस गेट के पास भूत का पहरा लगाने की बात कही थी। भूतों के पहरे से संकट व हमले से बचने की बात राजे से कही थी। इसी गेट के समीप भुता देव मंदिर की स्थापना की गई थी। तभी से इसे ‘भूतिया दरवाजा’ कहा जाता है। राजे रघुजी भोसले प्रथम ने 1735 के पहले महल क्षेत्र में भव्य गेट बनाना चाहा। गेट बनाने के बाद शाम को टूट जाता था। यह कवायद कई बार हुई, लेकिन भव्य गेट नहीं बन सका। राजे रघुजी के भतीजे खंडोजी राजे ने बंगाल में जाकर 6 बार युद्ध लड़ा। 1755 से 1760 के बीच युद्ध का समय बताया गया। उस वक्त बंगाल में काला जादू चरम पर था। बंगाल जाते ही काले जादू के प्रभाव से लोगों को खून की उल्टियां तक होने लगती थी। खंडोजी राजे ने बंगाल में युद्ध जीता और उसके बाद उन्हें चिमना बापू नाम मिला। कहा जाता है कि, खंडोजी को यह नाम बंगाल के लोगों से ही मिला था। युद्ध जीतने के बाद काला जादू जानने वाले कई लोगों ने समर्पण कर दिया। खंडोजी राजे इन्हें लेकर नागपुर आए। काला जादू अक्सर अपना प्रभाव दिखाते रहता है, इसलिए काला जादू को खत्म कर समाज हित में इसका इस्तेमाल करने को कहा गया था।
महल क्षेत्र में गेट था, जिसका केवल चबूतरा (फाउंडेशन) ही था। उसी जगह काला जादू जानने वाले तैनात किए गए। काला जादू जानने वालों ने गेट के पास भूत का पहरा लगाने की बात कही। ऐसी मान्यता है कि, इसके बाद राजे परिवार पर कोई हमला नहीं हुआ। राजे परिवार पर आने वाला बड़ा संकट टलने में इस गेट का योगदान होने की भी मान्यता है। महल दसरा रोड पर यह चबूतरा है आैर इसे आज भी भूतिया दरवाजा के नाम से ही पहचाना जाता है।
राजे रघुजी भोसले के वंशज मुधोजी भोसले ने बताया कि, बंगाल में युद्ध जीतने के बाद काला जादू जानने वाले कई लोगों ने समर्पण किया था। खंडोजी राजे ने इन्हें काला जादू समाप्त करने को कहा था। काला जादू जानने वालों ने किसी का अहित नहीं करने का वादा किया था। काला जादू जानने वालों ने इस गेट के पास भूत का पहरा लगाने की बात कही थी। गेट की जगह यहां चबूतरा ही मौजूद है। भूत का पहरा लगाने से कोई संकट या हमला नहीं होने की मान्यता है। उसके बाद कोई हमला भी नहीं हुआ। गेट के समीप ही मंदिर बनाया था। राज परिवार के सदस्य की मृत्यु होने पर इसी गेट से होकर राजघाट तक पहुंचते है।
Created On :   14 Dec 2019 6:20 PM IST