बीजेपी ने कहा - शिवसेना के कारण राज्य में नहीं बन सकी सरकार, जानिए राष्ट्रपति शासन पर कानूनविदों की क्या है राय

Government could not be formed in the state due to Shiv Sena - BJP
बीजेपी ने कहा - शिवसेना के कारण राज्य में नहीं बन सकी सरकार, जानिए राष्ट्रपति शासन पर कानूनविदों की क्या है राय
बीजेपी ने कहा - शिवसेना के कारण राज्य में नहीं बन सकी सरकार, जानिए राष्ट्रपति शासन पर कानूनविदों की क्या है राय

डिजिटल डेस्क, मुंबई। भाजपा ने प्रदेश की राजनीतिक अस्थिरता के लिए शिवसेना को जिम्मेदार ठहराया है। मंगलवार को प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता माधव भंडारी ने कहा कि शिवसेना के कारण प्रदेश में सरकार नहीं बन पाई। मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में भंडारी ने कहा कि प्रदेश के मतदाताओं ने महायुति को बहुमत दिया है। महायुति के पास 180 विधायकों का संख्याबल था। इसके बावजूद शिवसेना की ओर से कहा गया कि सरकार बनाने के लिए हमारे पास विकल्प खुले हैं। इसके बाद शिवसेना ने महायुति से बाहर निकलने का फैसला किया। मुख्यमंत्री पद के बंटवारे के सवाल पर भंडारी ने कहा कि सरकार बनाने के लिए भाजपा की ओर से नरम रूख अपनाने का सवाल ही पैदा नहीं उठाता है क्योंकि शिवसेना ने सरकार बनाने के लिए चर्चा ही शुरू नहीं की। शिवसेना ने चर्चा के दरवाजे बंद कर दिए। भंडारी ने कहा कि शिवसेना का यह आरोप पुरी तरह से हास्यास्पद है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सरकार बनाने के लिए भाजपा को दूसरे दलों की अपेक्षा ज्यादा समय दिया। भंडारी ने कहा कि हमने राज्यपाल की ओर से मिला हुआ पूरा समय भी इस्तेमाल नहीं किया। शिवसेना की ओर से 175 विधायकों के समर्थन का दावा किया गया था। शिवसेना के पास भरपुर समय था। विधायकों के हस्ताक्षर के लिए उके पास काफी समय था। इस दौरान शिवसेना विधायकों के समर्थन के लिए उनका हस्ताक्षर क्यों नहीं जुटा पाई। 

इस लिए गए सुप्रीम कोर्टः परब

वहीं शिवसेना के प्रवक्ता अनिल परब ने कहा कि सभी विधायकों के समर्थन की चिट्ठी देने के लिए तीन दिन का समय देने की मांग व्यवहारिक थी। हमने पार्टी के 56 और 8 समर्थक विधायकों के समर्थन का दावा राज्यपाल से किया था। लेकिन राज्यपाल ने शिवसेना को और समय नहीं दिया। जिसके बाद हमने सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया। 

कम या ज्यादा समय देना राज्यपाल का विशेषाधिकार

महाराष्ट्र में सरकार न बनने पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा राष्ट्रपति शासन की सिफारिश के बाद राज्य की राजनीति गरमा गई है। विपक्षी दलों के नेता राज्यपाल के इस कदम को अनुचित बता रहे हैं, जबकि कानून के जानकारों का इस पर भिन्न-भिन्न मत हैं। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति अभय थिप्से का कहना है कि राष्ट्रपति शासन अपने आप लागू नहीं होता है। इसके लिए राज्यपाल को तर्कसंगत व संविधान के अनुरुप निर्णय लेना पड़ता है। ऐसे मामलों में अदालते मुख्य रुप से यह देखती हैं कि राष्ट्रपति शासन से जुड़ा निर्णय संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत अथवा विरोधाभासी तो नहीं है। राज्यपाल के पास राजनीतिक दलों को उपयुक्त समय देने का अधिकार होता है। उपयुक्त समय कितना होगा यह तय करना राज्यपाल का विशेषाधिकार है। इसके साथ ही राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर राज्यपाल का निर्णय उद्देश्यात्मक होना चाहिए। 

कांग्रेस को अलग से आमंत्रण की जरुरत नहीं

कानून के जानकार वरिष्ठ अधिवक्ता राम आप्टे के मुताबिक राष्ट्रपति शासन की सिफारिस करने से पहले राज्यपाल को सरकार गठन से जुड़ी सभी संभावनाओं को तलाशना पड़ता है। बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल को किस दल को किनता वक्त देना है इसकी संविधान में स्पष्ट व्याख्या नहीं है। यह राज्यपाल का विशेषाधिकारी है कि वह किसे कितना समय देते हैं। चूंकी राज्यपाल ने सबसे बड़ा दल होने के नाते पहले भारतीय जनता पार्टी को सरकार गठन का अवसर दिया। इसके बाद दूसरे बड़े दल शिवसेना को फिर तीसरे क्रमांक पर आनेवाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को बहुमत साबित करने के लिए अवसर दिया। चूंकी राष्ट्रवादी कांग्रेस व कांग्रेस पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा था और उनका गठबंधन कायम है। इसलिए कांग्रेस को अलग से सरकार गठन का निमंत्रण देने की जरुरत नहीं है। संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति में राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकता है। 

राष्ट्रपति शासन के खिलाफ नहीं कर सकते अपील

वहीं राज्य के पूर्व महाधिवक्ता श्रीहरि अणे का कहना है कि किसी भी राजनीतिक दल के बहुमत साबित न कर पाने  व संवैधानिक व्यवस्था की विफलता की स्थिति में राष्ट्रपति शासन की संभावना पैदा होती है। इस स्थिति में ही राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। जबकि इस बारे में बांबे हाईकोर्ट के जाने-माने अधिवक्ता डाक्टर उदय वारुंनजेकर का कहना है कि राष्ट्रपति शासन से जुड़े के निर्णय को लेकर कोई अपील नहीं हो सकती है, ऐसे निर्णय की सिर्फ न्यायिक समीक्षा का प्रावधान है। अदालत ऐसे मामलों में मुख्य रुप से यह देखती है कि राष्ट्रपति के निर्णय को लेकर संविधान द्वारा निर्धारित की गई प्रक्रिया का पालन किया गया है अथवा नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति शासन लागू  होने से सरकार गठन के विकल्प का समाप्त नहीं हो जाता। पर सरकार गठन के लिए राजनीतिक दलों को बहुमत के लिए जरुरी आंकड़े का लिखित समर्थन पत्र राज्यपाल को सौपना होता है। तभी सरकार गठन का अवसर दिया जाता है। अधिवक्ता अनिल साखरे का कहना है कि संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही राष्ट्रपति शासन को लागू किया जा सकता है। राष्ट्रपति शासन से पहले राज्यपाल को इस बात पर पूरी तरह संतुष्ट होना पड़ता है कि संवैधानिक तरीके से अब सरकार गठन की कोई संभावना नहीं है। 
 

Created On :   12 Nov 2019 2:41 PM GMT

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