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निजी कोचिंग क्लासेस को लेकर हाईकोर्ट की स्कूली शिक्षा विभाग को सलाह

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य के स्कूली शिक्षा विभाग को महाराष्ट्र सेल्फ फाइनेंस स्कूल एक्ट 2012 के तहत अदालत के अगले आदेश तक निजी कोचिंग क्लासेस को जूनियर कालेज शुरु करने की अनुमति न देने के निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार पहले 2012 के कानून के तहत नियमावली अधिसूचित करे और राज्य व जिला स्तरीय कमेटी गठित करे। जिससे सेल्फ फाइनेंस स्कूल एक्ट के तहत जूनियर कालेज शुरु करने की अनुमति मांगनेवाले संस्थानों की जगह का मुआयना किया जा सके व जरुरी मंजूरियों को परखा जा सके।
मंगलवार को न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता मंजू जैसवाल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया। याचिका में दावा किया गया था कि बड़े-बड़े शापिंग माल की इमारत की पहली व दूसरी मंजिल के कुछ कमरों में कोचिंग क्लास चलानेवालों को जूनियर कालेज शुरु करने की इजाजत दी जा रही है। नियमानुसार कालेज अथवा स्कूल शुरु करने के लिए एक भूखंड होना चाहिए। कालेज में प्रयोगशाला व लाइब्रेरी की सुविधा होनी चाहिए। संस्थान के पास फायर ब्रिगेड सहित दूसरी कई मंजूरिया होनी चाहिए। लेकिन राज्य का स्कूली शिक्षा विभाग महाराष्ट्र सेल्फ फाइनेंस स्कूल एक्ट 2012 के प्रावधानों का पालन न करनेवालों को भी कोचिंग क्लासेस में जूनियर कालेज शुरु करने की अनुमति प्रदान कर रहा है। मुंबई में बड़े पैमाने पर नियमों के विपरीत निजी कोचिंग क्लासेस को जूनियर कालेज शुरु करने की अनुमति प्रदान की गई है।
मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद व राज्य के स्कूली शिक्षा विभाग के सचिव की ओर से दायर किए गए हलफनामे पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि सरकार ने अब तक कानून के तहत नियमावली नहीं अधिसूचित की है और अनुमति मांगनेवाले संस्थानों का निरीक्षण करने के लिए कमेटी भी गठित नहीं की है। आखिर किस आधार पर अनुमति दी जा रही है। निजी कोचिंग क्लासेस अब तो शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक पहुंच गए है। लेकिन उनके पास कालेज शुरु करने के लिए नियमों के तहत जरुरी जगह है कि नहीं इसे देखनेवाला कोई नहीं है। वहां योग्य शिक्षक पढाते है कि नहीं? क्या इन कोचिंग क्लासेस का किसी के कालेज प्रबंधन के साथ गठजोड़ है? नियमों का उल्लंघन करनेवाले निजी कोचिंग क्लासे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस दौरान अतिरिक्त सरकारी वकील गीता शास्त्री ने कहा कि सरकार जल्द ही इस मामले में उचित कदम उठाएगी। उन्होंने कहा कि परीक्षण कमेटी न होने के चलते कई संस्थानों का मुआयना नहीं हो पाया है। उन्होंने बताया कि उपशिक्षा निदेशक की टीम ने मुंबई में कई संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई की है।
इस पर याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल साखरे ने कहा जब तक सरकार महाराष्ट्र सेल्फ फाइनेंस स्कूल एक्ट 2012 के तहत अपनी वैधानिक व्यवस्था नहीं बना लेती है तब तक इस कानून के तहत निजी कोचिंग क्लासेस को नए जूनियर कालेज शुुरु करने की इजाजत न दी जाए। श्री साखरे के इस आग्रह के तहत खंडपीठ ने राज्य के स्कूली शिक्षा व खेल विभाग को जूनियर कालेज शुुरु करने की अनुमति मांगनेवाले निची कोचिंग क्लासेस के प्रलंबिक व नए आवेदन पर विचार न करने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 4 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी है।
बोलने की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा की तुलना में बड़ी-हाईकोर्ट
वहीं एक मामले में बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि बोलने की स्वतंत्रता को हमेशा प्रतिष्ठा की तुलना में वरियता दी गई है। हाईकोर्ट ने यह बात सोशल मीडिया में प्रभाव रखनेवाले अभिजीत भंसाली की ओर से दायर की गई अपील पर सुनवाई के दौरान कही। भंसाली व मरिको लिमिटेड कंपनी के बीच विवाद चल रहा है। भंसाली ने नारियल के तेल पैराशूट को लेकर आलोचनात्क वीडियो यू ट्यूब में डाला है। जिसमें भंसाली ने पैरशूट तेल न लेने की सिफारिस की है। इससे पहले हाईकोर्ट के एकल न्यायमूर्ति ने भंसाली को यू ट्यूब से नारियल के तेल की आलोचना करनेवाले वीडियो को हटाने का आदेश दिया था। एकल न्यायमूर्ति के इस आदेश के खिलाफ भंसाली ने अपील की है। मंगलवार को भंसाली की अपील मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मानहानि से संबंधित मौजूदा कानून के मुताबिक तथ्यों को लेकर कोई भी गलत बयान नहीं दे सकता है। कोई भी राय तथ्य का स्थान नहीं ले सकती है। राय तथ्य को नष्ट नहीं कर सकती है। वैसे बोलने की स्वतंत्रा को हमेशा प्रतिष्ठा की तुलना ज्यादा वरियता मिली है। खंडपीठ ने कहा कि बोलने की स्वतंत्रा और प्रतिष्ठ दोनों मौलिक अधिकार से जुड़े विषय है। इसलिए हम अपील को विचारार्थ मंजूर करते है। खंडपीठ ने मामले से जुड़े पक्षकारों के वकीलों को इस मामले को सुलझाने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने कहा कि सोशल मीडिया में प्रभाव रखनेवाले लोगों के महत्तव को आधुनिक समाज में नाकारा नहीं जा सकता है। सर्वेक्षण दर्शाते है कि लोग सोशल मीडिया में प्रभाव रखनेवाले लोगों के मतों से प्रभावित होते है। खंडपीठ ने कहा कि यदि समाज सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोगों की बातों पर भरोसा जताता है तो यह भरोसा जिम्मेदारी के साथ आना चाहिए। खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 5 फरवरी को रखी है।
Created On :   28 Jan 2020 8:26 PM IST