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राज्यपाल मनोनित 12 सीटों के मामले में केंद्र के महाधिवक्ता को जारी नोटिस
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने विधानपरिषद की 12 सीटों के मनोनय से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 171(3-ई) की वैधानिकता को चुनौती देनेवाली याचिका पर केंद्र सरकार के महाधिवक्ता (अटार्नी जनरल आफ इंडिया) को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने यह नोटिस सामाजिक कार्यकर्ता शिवाजी पाटील व दीपकराव आगले की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया है। मंगलवार को न्यायमूर्ति आरडी धानुका व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश तलेकर ने दावा किया कि इस अनुच्छेद के तहत विधानपरिषद के 12 सदस्यों को कैसे मनोनीत किया जाए, इसको लेकर किसी प्रक्रिया व व्यवस्था का उल्लेख नहीं है। इस अनुच्छेद के तहत राज्यपाल अथवा मंत्रिमंडल को असीमित, अनियंत्रित व निरंकुश अधिकार दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि अक्सर इस अनुच्छेद का दुरुपयोग किया जाता है या यू कहे कि सत्ताधारी दल इसके जरिए अपने करीबियों का पुनर्वसन करता है। इसके साथ ही यह अनुच्छेद अधिकारों के विभाजन से जुड़े मूलभूत सिद्धांतो का भी उल्लंघन करता है। इस दौरान राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी व एडिशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह ने याचिका को लेकर कई आपात्तियां व्यक्त की और दावा किया कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिका में संविधान के अनुच्छेद की वैधानिकता को लेकर ठोस प्रश्न उपस्थित किया गया है। इसलिए अटार्नी जनरल को नोटिस जारी किया जाता है। इसके साथ ही अटार्नी जनरल अगली सुनवाई के दौरान 171 (3-ई) को लेकर अपना पक्ष रखे। खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई 14 जनवरी 2021 को रखी है।
कोरोना संक्रमण से निपटने में हाईकोर्ट ने भी दिखाई सख्ती
उधर नागपुर हाईकोर्ट ने कोरोना और लॉकडाउन से जुड़े नीतिगत फैसले, प्रवासी मजदूरों और अन्य पहलुओं पर अपनी नजर बनाए रखी। समय-समय पर व्यवस्था को सुधारने के लिए आदेश जारी किए। देश के सभी बड़े शहरों की ही तरह नागपुर में भी कोरोना संक्रमण तेजी से फैला। कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए सरकार, प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस के साथ-साथ न्यायपालिका की भी अहम भूमिका रही। लॉकडाउन के बाद बने हालातों में न्यायपालिका ने न सिर्फ बहुत कम समय में अपने आपको नए सांचे में ढाला बल्कि समय-समय पर व्यवस्था को सुधारने के लिए आदेश जारी किए।
गोवारी समाज से जुड़ा फैसला पलटा
साल के आखिरी माह दिसंबर में देश की सर्वोच्च न्यायालय ने नागपुर खंडपीठ के फैसले को पलट दिया। देश की सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि, "गोवारी" जाति और "गोंड-गोवारी" जाति एक नहीं, बल्कि अलग-अलग हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ द्वारा इन दोनों जातियों को समान मानना गलत निर्णय था। सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि "गोवारी" जाति आदिवासी नहीं है, उन्हें अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग में नहीं रखा जा सकता।
लॉकडाउन में तंगहाल वकीलों की आर्थिक मदद
मो. आरिफ शेख दाऊद द्वारा दायर जनहित याचिका में 10 साल से कम वकालत वाले आर्थिक रूप से कमजोर वकीलों को 10 हजार रुपए आर्थिक मदद की मांग उठाई गई है। इसके बाद बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र व गोवा ने एडवायजरी जारी करके लॉकडाउन के कारण आर्थिक संकट में फंसे वकीलों की मदद करने की घोषणा की।
कोरोना पर सू-मोटो जनहित याचिका दायर की
नागपुर में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमीं का मुद्दा स्थानीय समाचारपत्रों में प्रकाशित हुआ। हाईकोर्ट ने इस पर सू-मोटो जनहित याचिका दायर करके मनपा, जिला प्रशासन और राज्य सरकार को विविध आदेश दिए। इसका असर हुआ कि अस्पतालों में कोरोना और अन्य मरीजों के लिए बेड की संख्या बढ़ी। सरकारी निधि बढ़ाई गई। अस्पतालों में नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया। शहर के कस्तूरचंद पार्क और जीरो माइल स्मारक के संवर्धन के लिए हाईकोर्ट ने सू-मोटो जनहित याचिका दायर की। कस्तूरचंद पार्क से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन जज स्वयं मौके पर गए और वास्तविकता जानी। प्रशासन को मैदान समतल करने, यहां अतिक्रमण रोकने और अन्य जरूरी आदेश दिए गए। इसी तरह शहर के जीरो माइल के रखरखाव से ना-नुकुर करने वाली नागपुर मेट्रो से परिसर खाली करवाया गया। हाईकोर्ट के आदेश के बाद जीरो माइल की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी विभाग को सौंपी गई। मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है।
नए कलेवर में ढला कोर्ट
प्रदेश में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए सतर्कता बरतने की दृष्टि से बॉम्बे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने नागपुर सहित प्रदेश भर के सभी न्यायालयों के लिए एडवाइजरी जारी की। जिसमें कहा गया कि जब तक बहुत जरूरी न हो तब तक वकील और पक्षकार कोर्ट आने से बचें। जब भी कोर्ट आना हो, तो सारी सावधानियां बरतें। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य कर दिया गया। प्रत्यक्ष सुनवाई की जगह ऑनलाइन सुनवाई शुरू हुई। करीब 9 माह बाद 1 दिसंबर से हाईकोर्ट में प्रत्यक्ष सुनवाई शुरू हुई।
Created On :   23 Dec 2020 2:56 PM IST