बेटियों से न मिलने देने के आधार पर रद्द नहीं हो सकता गुजारा भत्ता, HC में 30 साल बाद दुर्घटना मुआवजा मामले की सुनवाई

HC rejected husbands application demanded to return alimony given to wife
बेटियों से न मिलने देने के आधार पर रद्द नहीं हो सकता गुजारा भत्ता, HC में 30 साल बाद दुर्घटना मुआवजा मामले की सुनवाई
बेटियों से न मिलने देने के आधार पर रद्द नहीं हो सकता गुजारा भत्ता, HC में 30 साल बाद दुर्घटना मुआवजा मामले की सुनवाई

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने एक पति के उस आवेदन को खारिज कर दिया है जिसमें उसने बेटियों से न मिलने देने पर पत्नी को दिए गए गुजारे भत्ते को वापस करने की मांग की थी। पारिवारिक अदालत ने पति को अपनी दो बेटियों और पत्नी के लिए कुल 15 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। जिसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान पत्नी के वकील ने दावा किया कि उनके मुवक्किल का पति पेशे से इंजीनियर है। जिसका महीने का वेतन एक लाख रुपए है। पति के पास कोई दूसरी जिम्मेदारी भी नहीं है। पति के माता-पिता सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं। जिन्हें संतोषजनक पेंशन मिलती है। इसके अलावा उनके पास काफी अचल संपत्ति है। जबकि मेरे मुवक्किल की महीने की आय 26 हजार रुपए है। वह पेशे से फिजियोथेरपिस्ट है। इसके अलावा मेरे मुवक्किल की एक बेटी इस साल कक्षा दसवीं में जाने वाली है और दूसरी बेटी कक्षा 12 वीं में पढ़ रही है।  इसलिए मेरे मुवक्किल को बेटियों की पढाई का खर्च अकेले वहन करना काफी मुश्किल हो रहा है। इसलिए गुजारेभत्ते की रकम को बढाया जाए। वहीं पति के वकील ने दावा किया कि मेरे मुवक्किल की पत्नी ने अपनी कमाई की सही जानकारी नहीं दी है। मेरे मुवक्किल के पास अपने बुजुर्ग माता-पिता की जिम्मेदारी है। पारिवारिक न्यायालय के आदेश के बाद भी मेरे मुवक्किल को  बेटियों से मिलने नहीं दिया गया है। इसलिए पत्नी को दिए गए गुजारा भत्ते की रकम को वापस करने का निर्देश दिया जाए। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि कोई भी ऐसा कानून नहीं है जो पिता को  अपने बच्चों की जिम्मेदारी से मुक्त करता है। बेटियां पिता से नहीं मिलती है सिर्फ इसलिए वह गुजारा भत्ता देने की अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है। यह कहते हुए खंडपीठ ने पति को अपनी पत्नी व दो बेटियों के लिए 35 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया और उसके आवेदन को खारिज कर दिया है। 

हाउसिंग सोसाईटी की जमीन बेचने के मामले को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका 

इसके अलावा म्हाडा के अधिकारियों की मिलीभगत से एक हाउसिंग सोसायाटी के नाम पर मिले भूखंड को व्यवसायिक इस्तेमाल वाली भूमि में तब्दील कर उसे बेचने के मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता छगन भुजबल के बेटे पंकज व भतीजे समीर भुजबल की मुश्किल बढ़ सकती है। इस संबंध में बांबे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण वाटेगांवकर ने दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि भूखंड का स्वरुप बदलने के लिए राज्य सरकार से जरुरी अनुमति नहीं ली गई है। याचिका में मांग की गई है कि अविलंब इस पूरे प्रकरण की जांच कराने का निर्देश दिया जाए। याचिका के अनुसार जमीन से जुड़ी यह गड़बड़ी साल 2002 से 2011 के बीच की गई है। जिसमें म्हाडा के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्यामसुंदर शिंदे व एक अन्य अधिकारी भी शामिल थे। याचिका के मुताबिक राज्य सरकार ने म्हाडा के मार्फत तुलसी को-आपरेटिव हाउसिंग सोसायटी को एक भूखंड आवंटित किया था। इस भूखंड पर निर्माण कार्य की जिम्मेदारी भावेश कंस्ट्रक्शन कंपनी को सौपा गया था। पंकज भुजबल व समीर भुजबल इस कंपनी के निदेशक हैं। साल 2011 में इस भूखंड को लेकर की गई गड़बड़ी का खुलासा हुआ था। इसके बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने मामले की जांच शुरु की थी। जिसमें म्हाडा अधिकारियों, हाउसिंग सोसायटी व भावेश कंस्ट्रक्शन कंपनी के निदेशकों की संदिग्ध भूमिका सामने आयी थी। जांच पूरी होने के बाद एसीबी ने इस प्रकरण को लेकर 12 अगस्त 2017  को मामला दर्ज किया था। याचिका में कहा गया है कि मामला दर्ज होने के बाद म्हाडा के दो अधिकारियों ने अपना नाम एफआईआर से हटाने के आग्रह को लेकर राज्य के गृहनिर्माण विभाग को पत्र लिखा। पत्र में कहा गया था कि उन्होंने अपने अधिकार के तहत हाउसिंग सोसायटी के भूखंड को व्यावसायिक स्वरुप में बदला है। याचिका के अनुसार म्हाडा अधिकारियों को सिर्फ 150 वर्ग मीटर भूखंड के स्वरुप को बदलने की इजाजत है। लेकिन तुलसी को-आपरेटिव हाउसिंग सोसाईटी को दिए गए भूखंड का क्षेत्र 802 वर्ग मीटर है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार इस प्रकरण से जुड़ी एक फाइल विधि व न्याय विभाग के पास भी प्रलंबित है। याचिका में मांग की गई है कि एसीबी को इस मामले की जांच पूरा कर जरुरी कदम उठाने का निर्देश दिया जाए। वाटेगावंकर ने न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने याचिका का उल्लेख किया है। खंडपीठ ने याचिका पर  सुनवाई गर्मियों की छुटि्टयों के बाद रखी है। 

30 साल बाद शुरु होगी दुर्घटना मुआवजा मामले की सुनवाई

एक मामले में बांबे हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सायकिल यात्रा के दौरान दुर्घटना का शिकार हुई एक महिला के मुआवजे से जुड़े दावे पर तीन दशक बाद सुनवाई होगी। हाईकोर्ट ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (कोल्हापुर) को निर्देश दिया है कि वह 1 मार्च 1988 को दुर्घटना का शिकार हुई ज्योति शेट्टी के मुआवजे से जुड़े आवेदन पर सुनवाई करे। शेट्टी 1988 में सामाजिक जागरुकता से जुड़े अभियान के लिए मुंबई से बैंगलोर की सायकिल यात्रा पर निकली थी। इससे पहले मुआवजे के लिए देरी से आवेदन दायर करने के लिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल ने महिला के आवेदन को 1996 खारिज कर दिया था। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा था कि शेट्टी ने दुर्घटना के 12 महीने बाद आवेदन दायर किया, जो नियमों के विपरीत है। हम आवेदन दायर करने में हुई देरी को माफ नहीं कर सकते।  मुंबई पोर्ट ट्रस्ट में कार्यरत शेट्टी सामाजिक जागरुकता के लिए मुंबई से बैंगलोर के बीच साइकिल यात्रा के दौरान कोल्हापुर शहर में एक तेज रफ्तार टैक्टर की चपेट में आ गई थी। कुछ दिनों के इलाज के बाद शेट्टी मुंबई के बीपीटी अस्पताल में इलाज के लिए आयी। यहां पता चला कि इस दुर्घटना के चलते उनके शरीर में 15 प्रतिशत विकलांगता आ गई है। पूरी तरह ठीक होने के बाद शेट्टी ने ट्रिब्यूनल में मुआवजे के लिए आवेदन दायर किया। आवेदन में शेट्टी ने कहा था कि इलाज के बाद डाक्टर ने उसे लंबी यात्राएं करने से रोका था। इसके अलावा वह स्थायी रुप से मुंबई में रहती हैं। इसलिए उसे आवेदन करने में हुई देरी हुई है।   लेकिन ट्रिब्यूनल ने  देरी को नजरअंदाज करने से इंकार कर दिया। लिहाजा उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। न्यायमूर्ति एनजे जमादार के सामने सुनवाई। शेट्टी की वकील अंजलि हेलिकर ने दावा किया कि मोटर वेहिकल कानून में किए गए संसोधन के बाद आवेदन दायर करने की सीमा का कोई औचित्य नहीं है। युक्तिसंगत कारण देने पर मुआवजे के आवेदन दायर करने में होनेवाली देरी को माफ किया जा सकता है। इन दलीलों व विधायिका द्वारा कानून में किए संसोधन व सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने इस मामले में बेहद तकनीकीपूर्ण रुख अपनाया है। यह बात कहते हुए न्यायमूर्ति ने ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज कर दिया और उसे शेट्टी के मुआवजे से जुड़े आवेदन पर सुनवाई करने का आदेश दिया। 

 

Created On :   17 April 2019 8:04 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story