मरीजों को एक अदद पलंग भी नसीब नहीं, बेहाल हुआ एक्सीलेंस जिला चिकित्सालय 

Heavy irregularities are found in the district hospital of Satna
मरीजों को एक अदद पलंग भी नसीब नहीं, बेहाल हुआ एक्सीलेंस जिला चिकित्सालय 
मरीजों को एक अदद पलंग भी नसीब नहीं, बेहाल हुआ एक्सीलेंस जिला चिकित्सालय 

डिजिटल डेस्क, सतना। ओवरलोड की मार झेल रहे जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में मरीजों को एक अदद पलंग भी नसीब नहीं पा रहा है। दिलचस्प पहलू यह है कि जिला अस्पताल को कायाकल्प अभियान के तहत 4 मर्तबा एक्सीलेंस अवार्ड मिल चुका है। बावजूद इसके यहां अव्यवस्था का आलम बना ही रहता है। मरीजों को कभी स्ट्रेचर नहीं मिलता तो कभी पूरी दवाइयां उपलब्ध नहीं हो पाती। अब मरीजों को पलंग नसीब नहीं हो रहे हैं। रोते-बिलखते बीमार बच्चों को जमीन पर बिछे गद्दे पर लेटा देखकर आपका मन भी कांप उठेगा मगर अस्पताल प्रबंधन का दिल नहीं पसीजता।

पूरा ध्यान मेटरनिटी पर
दरअसल, शिशु-मातृ स्वास्थ्य को लेकर लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग बेहद संवेदनशील है। यही वजह है कि लक्ष्य कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसव के समय गुणवत्तापूर्ण सेवाएं तथा सम्मानजनक तरीके से प्रसव कराने के संबंध में गतिविधियां संचालित कर लेबर रूम और ऑपरेशन थियटर को नेशनल क्वॉलिटी एश्योरेंस स्टैण्डर्ड के अनुरूप उन्नत करने के मकसद से हाल ही में भारत सरकार की एक टीम ने मुआयना भी किया था। जिसमें अस्पताल प्रबंधन को फर्स्ट प्राइज मिला। 

400 बिस्तरों का अस्पताल हमेशा फुल
गौरतलब है कि वर्ष 1955 में जिला अस्पताल की बुनियाद पड़ी थी। पलंग बढ़ाने की क्षमता 3 हिस्सों में बढ़ाई गई। नवजात शिशु विशेष चिकित्सा इकाई, जिला पोषण पुनर्वास केन्द्र को मिलाकर मौजूदा समय पर जिला अस्पताल 400 बिस्तरों का है। सर्वाधिक 80 पलंग मेटरनिटी विंग में हैं। एसएनसीयू के आउट बॉर्न, इन बॉर्न यूनिट के 20, एनआरसी के 20 बेड मिलाकर कुल 400 बेड हैं। शुक्रवार को मरीजों के खाने की आई डिमाण्ड के अनुसार पूरे वार्डों को मिलाकर 351 मरीज भर्ती हैं। इसमें टीबी और आई वार्ड में मरीजों की संख्या क्रमश: 3 और 5 है जबकि शेष वार्ड ओवरलोड हैं। जिला अस्पताल के भीतर मौजूद पीएनसी वार्ड को छोड़कर बाकी करीब-करीब 24-24 बेडों के हैं, मगर सबके सब ओवरलोड।

जिले के बाहर के भी मरीज
जिला अस्पताल में जिस रफ्तार से स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ी उसी तेजी के साथ मरीजों का लोड भी बढ़ा। सतना के अलावा सीमाई जिला बांदा, कर्वी और पन्ना के मरीज भी उपचार के लिए इसी सरकारी अस्पताल पर भरोसा करते हैं। ग्रामीण अंचल के मरीजों का एकमात्र सहारा है सरदार वल्लभ भाई पटेल शासकीय जिला चिकित्सालय। 

हर रोज औसतन 165 मरीज भर्ती
जिला अस्पताल के 9 माह के आंकड़े कहते हैं कि यहां हर रोज औसतन 165 मरीज भर्ती हुए। यानि महीने में लगभग 44 हजार 442 मरीज। ओपीडी तक पहुंचने वाले मरीजों की तादाद भर्ती होने वाले मरीजों की तुलना में 6 गुना से भी ज्यादा है। अप्रैल 2018 से दिसम्बर 2018 के बीच 2 लाख 77 हजार 2 सौ 93 मरीज जिला अस्पताल पहुंचे और डॉक्टरों से अपना चेकअप कराया। 2 हजार 9 सौ 90 मरीजों की मेजर सर्जरी हुई तो इस दौरान 3 लाख 55 हजार 491 मरीजों की पैथालॉजी में जांच की गई। 

65 लाख का इनाम भी काम न आया
तमाम व्यवस्थाएं होने के बाद भी जिला अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाएं बेपटरी हो जाती हैं। मरीजों को मुहैया कराने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं के एवज में ही अस्पताल प्रबंधन बीते 4 सालों में कायाकल्प अभियान के तहत 65 लाख रुपए का इनाम जीत चुका है। मगर इस राशि का उपयोग साजो सामान पर तो खर्च हुआ मगर मेटरनिटी विंग की पीएनसी वार्ड को छोड़कर अन्य वार्डों की बेड क्षमता को नहीं बढ़ाया जा सका। कह सकते हैं कि इस दिशा में यह भारी-भरकम राशि भी काम नहीं आई। 

Created On :   23 April 2019 1:40 PM IST

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