लैब सहायक को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत

Hiding the information of third child, lab assistant did not get relief from the High Court
लैब सहायक को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत
तीसरे बच्चे की जानकारी छुपाई लैब सहायक को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। छोटे परिवार जुड़े नियम की अवहेलना करनेवाले एक सरकारी कर्मचारी को अब अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। मामला लैबोरेटरी सहायक के रुप में नियुक्त हुए एक कर्मचारी से जुड़ा है। तीन बच्चों के पिता होने के नाते सरकार ने वर्ष 2016 में इनकी सेवा समाप्त कर दी थी। सरकारी कर्मचारी ने अपनी बर्खास्तगी के आदेश को महाराष्ट्र प्रशासकीय न्यायाधिकरण(मैट) में चुनौती दी थी। किंतु मैट ने सरकारी कर्मचारी को राहत देने से इंकार कर दिया था। इसलिए उसने मैट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। छोटे परिवार से अभिप्राय पति-पत्नी व दो बच्चों से हैं। 

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने सरकारी कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता सरकारी कर्मचारी ने साल 2013 में लैबोटेरटी सहायक के पद के लिए आवेदन किया था। इस पद को लेकर जारी विज्ञापन में कहा गया था कि नौकरी के लिए आवेदन करनेवाले शख्स को छोटे परिवार का प्रमाणपत्र जमा करना होगा। विज्ञापन में परिवार के बारे में गलत जानकारी देने की स्थिति में परिणाम के बारे में सूचना दी गई थी। नियमों के तहत जिसके दो बच्चे थे वहीं नौकरी के लिए आवेदन कर सकते थे। शुरुआत से ही याचिकाकर्ता को यह बात पता थी कि उसके तीन बच्चे हैं। इस लिहाज से वह सरकारी नौकरी के लिए पात्र नहीं था। फिर भी याचिकाकर्ता ने इस बात को छुपाया। इस लिहाज से देखा जाए तो याचिकाकर्ता की नियुक्ति ही अवैध थी। क्योंकि जब याचिकाकर्ता की नियुक्ति की गई थी उसके तीन बच्चे थे। इस लिहाज से याचिकाकर्ता नौकरी के लिए पात्र नजर नहीं आ रहा है। इस लिहाज से उसकी सेवा समाप्त करने का फैसला सहीं नजर आ रहा है। इस तरह से खंडपीठ ने मैट के आदेश को कायम रखा। 

सरकारी वकील भुपेश सामंत ने इस विषय पर सरकार की ओर से साल 2005 में बनाए गए नियमों की जानकारी भी खंडपीठ को दी। लेकिन याचिकाकर्ता ने साल 2006 में जन्में अपने बच्चे की जानकारी अपने आवेदन में छुपाई। सामंत ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता के पक्ष को सुना गया है लेकिन वह असंतोषजनक पाया गया है। इसलिए याचिकाकर्ता की सेवा को समाप्त किया गया है। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता वीएम थोरात ने कहा कि छोटे परिवार की कट ऑफ डेट संसोधन के बाद साल 2007 हो गई थी। इस मामले में किसी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। किंतु सुनवाई के दौरान श्री थोरात ऐसा कोई संसोधन पत्र नहीं दिखा पाए। इसलिए खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता जैसे शिक्षिति व्यक्ति से ऐसी अपेक्षा नहीं है कि वह आवेदन करते समय अपने बच्चों के बारे जानकारी लिखने में गलती करे।  
 

Created On :   17 Aug 2021 7:11 PM IST

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