हाईकोर्ट : क्या सरकार के पास सिर्फ मूर्तियां बनाने के लिए पैसे हैं, स्वास्थ्य विभाग के लिए निधि का अभाव

High Court: Does government have money to only make sculptures
हाईकोर्ट : क्या सरकार के पास सिर्फ मूर्तियां बनाने के लिए पैसे हैं, स्वास्थ्य विभाग के लिए निधि का अभाव
हाईकोर्ट : क्या सरकार के पास सिर्फ मूर्तियां बनाने के लिए पैसे हैं, स्वास्थ्य विभाग के लिए निधि का अभाव

डिजिटल डेस्क, मुंबई। क्या सरकार के पास सिर्फ मूर्तिया बनाने के लिए पैसे हैं पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए निधि नहीं है। सरकार की ओर से इंदु मिल में बनने वाले स्मारक के लिए डा बाबा साहेब आंबेडकर की प्रतिमा की उंचाई सौ फुट और बढाने के संदर्भ में लिए गए निर्णय पर हाईकोर्ट ने कहा कि क्या सरकार को लगता है कि डा आंबेडकर की बडी मूर्ति को देखने के बाद गरीबों की भूख मिट और उनका सब कुछ ठीक हो जाएगा या फिर सरकार डा आंबेडकर के मूर्ति की उंचाई बढाकर गुजरात में  बनाए गए सरदार पटेल की प्रतिमा की उंचाई से प्रतिस्पर्धा करना चाहती है। अदालत ने कहा कि वास्तव में लोगों को मेडिकल  सुविधाओं जरुरत है मूर्तियों की नहीं।  

गुरुवार को हाईकोर्ट ने मुंबई के वाडिया मैटरनिटी और बच्चों के 800 बिस्तर वाले अस्पताल के कर्मचारियों के वेतन व दवाओं की आपूर्ति बंद किए जाने के मुद्दे को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह तल्ख टिप्पणी की है। इस अस्पताल को राज्य सरकार व मुंबई महानगरपालिका की ओर से अनुदान दिया जाता है। अदालत ने कहा कि संविधान के शिल्पकार डा आंबेडकर ने जिस वर्ग के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया सरकार उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं दने की बजाय सिर्फ उनकी प्रतिमा दिखाना चाहती है। हम हैरान हैं कि मुख्यमंत्री ऐसे पुल के उद्धाटन में व्यस्त हैं जो पुल बन कर तैयार भी नहीं हुआ है। सरकार के मंत्रियों के पास अन्य घोषणाओं के लिए वक्त है। लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे को देखने के लिए समय नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि महाराष्ट्र सरकार ने पिछले साल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ,राजस्थान व गुजरात में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के चलते हुई बच्चों की मौत की घटनाओं से कुछ नहीं सीखा है। देश के आर्थिक राजधानी मुंबई में स्थित अस्पताल की यह स्थिति हैरानी भरी है। एसोसिएशन फार एडिंग जस्टिस नामक गैर सरकारी संस्था ने इस विषय पर याचिका दायर की है। 

न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने कहा कि यह कैसी विसंगति हैं कि राज्य में डाक्टर अपने स्टायपेंड (प्रशिक्षू भत्ता) के लिए कोर्ट में आते हैं। उन्हें पढाने वाले शिक्षकों को भी वेतन के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। और अंत में मरीज उपचार उपलब्ध के लिए भी कोर्ट का रुख करते हैं। आखिर महाराष्ट्र में यह कैसे हालत पैदा हो गए हैं जैसे लगता है कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों से हाथ उठाना चाहती है।

आंख में धूल झोक रही सरकार

खंडपीठ ने कहा कि यदि सरकार के पास निधि नहीं है तो वह अपनी हिस्सेदारी को बाजार में बेचने व आउटसोर्सिंग के विकल्प पर विचार करे। क्योंकि मुंबई में गरीब तबके के वे लोग वाडिया अस्पताल में उपचार के लिए जाते हैं जो पांच सितारा होटल में उपचार का खर्च वहन नहीं कर सकते। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीष गोडबोले ने कहा कि सरकार आकस्मिक निधि से 24 करोड़ रुपए की निधि जारी करने को तैयार है। इसको लेकर उन्होंने खंडपीठ के सामने एक दस्तावेज पेश किया। जिसमें लिखी गई बातों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कड़ी फटकार लगाई। 

खंडपीठ ने कहा कि अभी तक सिर्फ यह निधि मंजूर की गई है। मंत्रालय में इससे जुड़ी फाइल कई टेबलों से होकर गुजरेगी जिसमें काफी समय लगेगा। तब तक अस्पताल में बच्चे परेशानी झेलते रहेंगे और मरने के बाद उनका सिर्फ पोस्टमार्टम किया जाएगा। सरकार की ओर से पेश किया गया दस्तावेज आंखों में धूल झोकने जैसा है। सरकार जल्द से जल्द रकम अस्पताल के खाते में स्थनांतरित करे अन्यथा हम मामले से जुड़े सभी अधिकारियों की कोर्ट में परेड कराएंगे। खंडपीठ ने शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई रखी है।                

गौरतलब है कि सरकार इंदु मिल की जमीन पर डाक्टर बाबा साहेब आंबेडकर का स्मारक बना रही है। जहां  पहले 250 फुट उंची आंबेडकर की प्रतिमा बनाने का निर्णय किया गया था लेकिन बुधवार को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में ठाकरे सरकार ने डा आंबेडकर की प्रतिमा की उंचाई और सौ फिट  बढाने का फैसला किया है। 

Created On :   16 Jan 2020 6:39 PM IST

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