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हाईकोर्ट : समय पर दाखिला न लेनेवाले छात्र को राहत नहीं, पार्किंग नियमों के उल्लंघन पर भी सख्त
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कालेज में सीट आवंटित किए जाने के बाद तय समय पर इंजीनियरिंग के कोर्स में दाखिला न लेनेवाले छात्र को राहत देने से इंकार कर दिया है। छात्र ने याचिका में दावा किया था कि उसे सीट आवंटन के बारे में देरी से जानकारी मिली थी। उसका घर कालेज से काफी दूर था। इसके साथ ही बीच में कई छुटि्टयां होने के चलते वह पाठ्यक्रम की एक लाख रुपए की फीस का इंतजाम नहीं कर पाया था। इसलिए उसे अब कालेज को दाखिला देने का निर्देश दिया जाए। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि तकनीकि शिक्षा महानिदेशालय की ओर से दाखिले को लेकर बनाई गई केंद्रीयकृत व्यवस्था (कैप) के तहत वेबसाइट में 21 अगस्त को छात्र को कालेज में अांविटत सीट की सूचना दी गई थी और उसे 1 सितंबर 2019 तक एडमिशन लेने के लिए कहा गया था। लेकिन छात्र ने बेहतर कालेज पाने की आशा में कैप के तीसरे राउंड का इंतजार किया। लेकिन तीसरे राउंड में भाग्य ने छात्र का साथ नहीं दिया। तब तक वक्त बीत गया। इसलिए जिस कालेज में छात्र को सीट आवंटित की गई थी उसने उसे दाखिला देने से मना कर दिया। खंडपीठ ने कहा कि छात्र गरीब था जिसकी वजह से वह फीस की रकम का इंतजाम नहीं कर पाया और प्रवेश लेने में उसे देरी हुई है छात्र ने याचिका में यह वजह नहीं बताई है। खंडपीठ ने कहा कि छात्र को समय पर वेबसाइट में सीट के आवंटन जानकारी लेनी चाहिए थी। यह कहते हुए खंडपीठ ने छात्र की याचिका को खारिज कर दिया।
पार्किंग से जुड़े नियमों का उल्लंघन करनेवालों पर सख्त कार्रवाई जरुरी
बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि पार्किंग से जुड़े नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जरुरत है और इससे जुड़े कानून को कड़ाई से लागू किए जाने की आवश्यक्ता है। हाईकोर्ट ने रेलवे स्टेशनों के बाहर कही पर भी वाहन खड़े किए जाने, व्यस्ततम सड़कों पर गाड़ी किए जाने व कहीं पर भी पिकअप प्वाइंट बनाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। सामाजिक कार्यकर्ता टेकचंद खानचंदानी ने इस विषय पर जनहित याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि व्यस्ततम सड़कों में गाड़ी पार्क कर दी जाती है। जहां पार्किंग की अनुमति नहीं है वहां पर भी वाहन पार्क किए जाते है। लावरिस वाहन भी सड़कों पर खड़े रहते है। जिससे ट्रैफिक जाम की समस्या पैदा होती है। इस बारे में शिकायत देने के बाद भी नियमों का उल्लंघन करनेवाले व कानून को तोड़नेवाले लोगों के खिलाफ पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने कहा कि हम मुंबई पुलिस व मुंबई महानगरपालिका से जानना चाहते है कि रात व दिन के समय व्यस्ततम सड़कों पर वाहन न पार्क किए जाए इसको लेकर क्या कदम उठाए गए है। क्योंकि व्यस्ततम सड़कों पर पार्किंग से ट्रैफिक जाम की समस्या पैदा होती है। खंडपीठ ने कहा कि हम यह भी जानना चाहते है कि सीएसटी व चर्चगेट जैसे रेलवे स्टेशन के बाहर टैक्सी चलानेवाले ड्राइवरों को अनुशासित करने के लिए क्या कदम उठाए गए है। खंडपीठ ने कहा कि हमने देखा है कि चर्चगेट के पास टैक्सी के लिए जगह दी गई है फिर भी एसियाटिक स्टोर के पास टैक्सी खड़ी रहती है। यहां पर पार्किंग की अनुमति नहीं है। इस दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि मैं इस विषय को लेकर हलफनामा दायर करना चाहता हूं। इसके बाद खं़डपीठ ने मामले की सुनवाई 10 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी।
बच्चे खरीदनेवाले अभिभावकों को हाईकोर्ट ने बच्चों को सौपने से किया इंकार
बांबे हाईकोर्ट ने किसी और के बच्चों को पैसे देकर खरीदनेवाले अभिभावकों को बच्चे सौपने से इंकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि फिलहाल हम इन अभिभावकों को सिर्फ बच्चों से मिलने की अनुमति प्रदान कर सकते है। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति साधना जाधव की खंडपीठ ने यह निर्देश बच्चे खरीदनेवाले अभिभावकों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। याचिका में पाया कि इस मामले से आठ महीने,एक साल,दो साल,तीन साल,चार साल व सात साल के बच्चे जुड़े है। जिन्हें याचिका दायर करनेवाले अभिभावकों ने आरोपियों से खरीदा है। ये बच्चे फिलहाल बाल कल्याण कमेटी की निगरानी में है इनमे से जो बच्चे स्कूल जाने की स्थिति में है उन्हें स्कूल भेजा जा रहा है। इस दौरान अतिरिक्त सरकारी वकील अरुणा पई ने कहा कि इस मामले में मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने 15 लोगों को आरोपी बनाया है। मानखुर्द पुलिस स्टेशन ने इस प्रकरण को लेकर कार्रवाई की है। हमने बच्चों की जैविक मां के खिलाफ कोई मामला नहीं दर्ज किया है। इस प्रकरण में पैसे देकर बच्चे खरीदे गए है। पुलिस इस मामले में अभी भी जांच कर रही है। इस प्रकरण में हम बच्चों के हित को सर्वोपरी मान रहे है। हम बच्चों को खरीदनेवाले अभिभावकों के बच्चों के साथ जुड़े उनके भावनात्मक लगाव को समझते है। इसलिए इस मामले में बेहतर होगा कि याचिकाकर्ताओं को बच्चों को गोद लेने के लिए नियमानुसार आवेदन करने के लिए कहा जाए। यदि याचिकाकर्ता बच्चों को गोद लेने के लिए पात्र पाए जाते है तो उन्हें बच्चों को सौप दिया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि सीधे याचिकाकर्ताओं को बच्चों को सौपना उचित नहीं है। क्योंकि यदि किसी भी कारणवश याचिकाकर्ताओं को बच्चों को गोद लेने के लिए अपात्र पाया जाता है तो यह बच्चों के हित में नहीं होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि पुलिस इस मामले में बच्चों के तस्करी से जुड़े पहलू व आरोपियों के आशय की भी जांच कर रही है। उन्होंने कहा कि खरीदे गए बच्चे अविवाहित महिलाओं के है। एक महिला ने मामले से जुड़ा बच्चे को अपना बताया था लेकिन डीएनए जांच में इस महिला का दावा झूठा पाया गया है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि फिलहाल हम याचिकाकर्ताओं को बच्चों से मिलने की अनुमति प्रदान करते है और सरकार को मामले से जुड़े आरोपियों की पृष्ठभूमि की पड़ताल करने का निर्देश देते है। खंडपीठ ने मामले से जुड़े दो बच्चों को दिल्ली ले जाने को कहा है। क्योंकि इनके अभिभावक(याचिकाकर्ता) दिल्ली के है। खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 25 नवंबर को रखी है।
Created On :   14 Nov 2019 7:35 PM IST