7.5 करोड़ जमा नहीं किया तो टूटेगा मानसरोवर कॉम्पलेक्स का अवैध हिस्सा : हाईकोर्ट

7.5 करोड़ जमा नहीं किया तो टूटेगा मानसरोवर कॉम्पलेक्स का अवैध हिस्सा : हाईकोर्ट
7.5 करोड़ जमा नहीं किया तो टूटेगा मानसरोवर कॉम्पलेक्स का अवैध हिस्सा : हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क जबलपुर । हाईकोर्ट ने बुधवार को सड़क परिवहन निगम को कहा है कि भोपाल के एमपी नगर में बने मानसरोवर कॉम्पलैक्स के अवैध निर्माण के लिए वो 6 माह के भीतर नगर निगम को जुर्माने के रूप में साढ़े 7 करोड़ रुपए दे। चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने कहा है कि उक्त राशि से नगर निगम पार्किंग का वैकल्पिक इंतजाम करें, ताकि वहां पर ट्रैफिक जाम की समस्या से निजात पाया जा सके। हालांकि युगलपीठ ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि तय समय में भुगतान नहीं किया जाता तो नगर निगम अवैध निर्माण को तोडऩे स्वतंत्र होगा। इस निर्देश के साथ युगलपीठ ने दायर जनहित याचिका का निराकरण कर दिया।
यह याचिका कंज्यूमर एण्ड ह्यूमन राईट्स प्रोटेक्शन समिति भोपाल के अध्यक्ष सतीश नायक की ओर से दायर की गई थी। आवेदक का कहना था कि एमपी नगर में सड़क परिवहन निगम की जमीन पर में. राज डेवलपर्स द्वारा मानसरोवर कॉम्पलैक्स बनाया गया है। याचिका में आरोप था कि कॉम्पलैक्स का निर्माण बिल्डिंग का पालन किए हुआ और उसमें पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं छोड़ी गई। इसके कारण कॉम्पलैक्स में आने वाले लोग सड़क पर ही अपने वाहन खड़े करने लगे जिससे वहां पर घण्टों तक जाम लगने लगा। लोगों को हो रही मुसीबत के कारण एक प्रश्न विधानसभा में भी उठा और वहां पर 3 इंजीनियरों की एक जांच समिति गठित की गई। समिति ने विधानसभा में रिपोर्ट देकर कहा कि टीएनसीपी के प्रावधानों के मुताबिक पार्किंग की जगह कॉम्पलैक्स में नहीं छोड़ी गई। इस बारे में नगर निगम को कार्रवाई करना थी, लेकिन कोई कार्रवाई न किए जाने पर यह याचिका वर्ष 2011 में दायर की गई थी।
मामले पर बुधवार को अपना सुरक्षित रखा फैसला सुनाते हुए युगलपीठ ने कहा- च्मानसरोवर कॉम्पलैक्स में 5027 वर्गमीटर अतिरिक्त निर्माण हुआ, जो कंपाउण्डेवल नहीं है। अब चूंकि निर्माण नियमों के खिलाफ है, तो हमारे सामने दो ही विकल्प हैं। या तो अतिरिक्त निर्माण को ढहा दिया जाए या फिर नगर निगम द्वारा तय की गई राशि को दोगुना करके सड़क परिवहन निगम से जुर्माने की राशि वसूली जाए। पहला विकल्प इसलिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इमारत का निर्माण हो चुका और वह अलग-अलग लोगों को बेची या आवंटित हो चुकी है। जुर्माने का विकल्प इसलिए उपयुक्त है, क्योंकि इस राशि से नगर निगम द्वारा वहां पर पार्किंग का वैकल्पिक इंतजाम किया जा सकेगा।ज् इस मत के साथ युगलपीठ ने 6 माह के भीतर नगर निगम को साढ़े सात करोड़ रुपए देने के निर्देश सड़क परिवहन निगम को देकर याचिका का निराकरण कर दिया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अदालत मित्र के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता राजेन्द्र तिवारी, अधिवक्ता एनके तिवारी व पवन कुमार सक्सेना ने पैरवी की।

Created On :   7 March 2018 7:17 PM IST

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