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हाईकोर्ट : आपराधिक मामलों की जानकारी न देने पर नौकरी से हटाना सही, दो अलग-अलग मामलों में दी जमानत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने नियुक्ति के समय अपने आपराधिक मामलों की जानकारी न देनेवाले कर्मचारी को नौकरी से हटाने के निर्णय को सही ठहराया है। भाभा एटोमेकि रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) ने अपने यहां पर हास्पिटल असिस्टेंट पद के लिए विज्ञापन जारी किया था। जिसमें साफ किया गया था कि नौकरी के लिए चयनित उम्मीदवार को बताना होगा कि उनके खिलाफ कोई एफआईआर तो दर्ज नहीं है। किसी मामले में वह गिरफ्तार तो नहीं हुआ है या किसी मामले में उसे दोषी तो नहीं पाया गया है। वह किसी मामले से बरी तो नहीं हुआ है । उसके खिलाफ कोई मुकदमा तो प्रलंबित नहीं है। इस विषय में उम्मीदवार द्वारा दी गई जानकारी को यदि भविष्य में गलत पाया जाता है तो उसे नौकरी बर्खास्त कर दिया जाएगा। पद को लेकर हुई परीक्षा व नौकरी से जुड़ी सारी औपचारिकताओं को पूरा किए जाने के बाद स्वप्निल परब की बीएआरसी ने हास्पिटल असिस्टेंट पद पर नियुक्ति की थी। इस दौरान उसने लिखित रुप से सूचना दी थी की उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। लेकिन कुछ समय बाद बीएआरसी को पता चला की परब के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 324, 504 व 34 के तहत आपराधिक मामला प्रलंबित था। फिर भी उसने नियुक्ति के समय अपने इस मामले की जानकारी नहीं दी। इस बात को जानने के बाद बीएआरसी ने परब को अक्टूबर 2016 में कारण बताओ नोटिस जारी किया। जवाब में परब ने कहा कि उसे पहले से पता था कि उसने कोई अपराध नहीं किया है। कोर्ट ने उसे इस मामले में बरी कर दिया है। इसलिए उसने अपने आपराधिक मामले की जानकारी नहीं दी थी। परब के जवाब से असंतुष्ट बीएआरसी ने उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया। बीएआरसी के फैसले के खिलाफ परब ने केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण (कैट) में आवेदन दायर किया। कैट ने परब के आवेदन को खारिज कर दिया। जिसके खिलाफ परब ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाला की खंडपीठ के सामने परब की याचिका पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि नियमों के तहत उम्मीदवार को नियुक्ति के समय अपने आपराधिक मामले की जानकारी देना अनिवार्य किया गया था। याचिकाकर्ता (परब) को खुद के खिलाफ प्रलंबित मामले की जानकारी थी फिर भी उसने गलत जानकारी दी। ऐसे में वह यह कह कर अपनी इस करतूत को नहीं छुपा सकता कि उसे पता था कि वह बेगुनाह था। जहां तक बात याचिकाकर्ता के आपराधिक मामले से बरी किए जाने की है तो मामले से जुड़े सारे गवाह आपसी समझौते के तहत अपने बयान से मुकर गए हैं। इसलिए याचिकाकर्ता को कोर्ट ने बरी किया था। इसे मामले से सम्मानजनक रिहाई नहीं माना जा सकता है। यह प्रकरण से तकनिकी रिहाई है। इस लिहाज से हमे कैट के आदेश में कोई खामी नजर नहीं आती। यह कहते हुए खंडपीठ ने परब की याचिका को खारिज कर दिया।
पुलिस कांस्टेबल के साथ दुष्कर्म के आरोपी पीएसआई को मिली जमानत
बांबे हाईकोर्ट ने अपने महिला पुलिस सहकर्मी के साथ दुष्कर्म करने वाले पुलिस उपनिरीक्षक अमित शेलार को अग्रिम जमानत प्रदान की है। न्यायमूर्ति इंद्रजीत महंती व न्यायमूर्ति एएम बदर की खंडपीठ ने कहा कि पीडिता व आरोपी ने आपसी रजामंदी से संबंध बनाए थे। इसलिए आरोपी पुलिस निरीक्षक शेलार को अग्रिम जमानत प्रदान किया जाता है। इससे पहले सत्र न्यायालय ने शेलार को जमानत देने से इंकार कर दिया था। लिहाजा उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। नई मुंबई पुलिस की अपराध शाखा से जुड़ी महिला कांस्टेबल ने शेलार के खिलाफ नवंबर 2018 में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में पुलिस कांस्टेबल ने दावा किया था कि आरोपी ने उसे शीतल पेय में कुछ मिलाकर पहले पिलाया था फिर उसके साथ दुष्कर्म किया था।
मजबूरी में बेटे की हत्या करने वाली मां को हाईकोर्ट ने दी जमानत
मजबूरी में अपने 6 महीने के बेटे का गला घोटकर हत्या करने के आरोप में एक साल से जेल में बंद महिला को बांबे हाईकोर्ट ने जमानत प्रदान की है। हाईकोर्ट ने कहा कि एक महिला अपने बेटे की हत्या करना बेहद अप्राकृतिक व पीड़ादायक है। इस दुर्भाग्यपूर्ण मामले में महिला ने मजबूरी में बच्चे की हत्या की है लिहाजा इस नरम रुख अपनाते हुए उसे 25 हजार रुपए के मुचलके पर जमानत प्रदान की जाती है। दरअसल महिला विवाह के बाद जल्द ही गर्भवती हो गई थी। इस लिए उसके ससुराल वाले व उसका पति महिला के चरित्र पर संदेह करते थे। जब उसने बच्चे को जन्म दिया तो उसकी ससुराल वाले उसे अस्पताल में देखने तक नहीं गए। महिला जब अस्पताल से अपने ससुराल पहुंची तो घरवाले उसे बच्चे को लेकर ताने मारने लगे। यहां तक उसे कहा जाने लगा कि वह खुद अपने बच्चे को मार दे नहीं तो वे (ससुरालवाले) उसे मार देंगे। इस दौरान महिला को बच्चे की वजह से शारीरिक यातना भी दी जाने लगी। इसे यह भय सताने लगा कि उसका पति उसे भी मार देगा और बच्चे की भी जान ले लेगा। इसके चलते महिला ने बच्चे की गला दबाकर हत्या कर दी। बच्चे की मौत के बाद पुलिस को इस घटना की जानकारी दी गई। जांच के दौरान पुलिस ने बच्चे के गले में अंगुलियों के निशान देखा। इसके बाद पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल ने पाया कि पुलिस ने मामले को लेकर आरोपपत्र दायर कर दिया है। आरोपी महिला एक साल से जेल में है। मामले से जुड़ी परिस्थितियां दर्शाती है कि महिला ने मजबूरी में अपने बच्चे की हत्या की है। इसलिए इस मामले में हम नरम रुख अपनाते हुए महिला को जमानत प्रदान करते है।
पायल तडवी आत्महत्या : आरोपी डाक्टरों की जमानत याचिका पर सुनवाई एक सप्ताह टली
बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई के नायर अस्पताल की डाक्टर पायल तडवी की हत्या के मामले में आरोपी तीन महिला डाक्टरों के जमानत आवेदन पर सुनवाई एक सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी है। मंगलवार को न्यायमूर्ति डी नायडू के सामने आरोपी डाक्टरों के जमानत आवेदन पर सुनवाई हुई। इस दौरान आरोपी डाक्टरों के वकील ने कहा कि मामले को लेकर मराठी में आरोपपत्र दायर किया गया है लिहाजा उन्हें इसे समझने के लिए समय दिया जाए। वहीं तडवी के परिजनों कि ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता सदाव्रते गुणरत्ने ने कहा कि आरोपी के वकील अपने पसंद के न्यायाधीश के बेंच की तलाश करना चाहते हैं। न्यायमूर्ति ने फिलहाल मामले की सुनवाई एक सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी है। मामले की पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इस मामले की वीडियो रिकार्डिंग का निर्देश दिया था। इस मामले में पुलिस ने डा हेमा अहूजा, डा अंकिता खंडेलवाल व डा भक्ति मेहरे को आरोपी बनाया है।
Created On :   30 July 2019 8:25 PM IST