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हाईकोर्ट ने कहा - डॉक्टरों की सुरक्षा समय की जरुरत, 10वीं परीक्षा रद्द करने के खिलाफ दायर याचिका
डिजिटल डेस्क, मुंबई। डॉक्टरों की सुरक्षा समय की जरुरत है। यह बात कहते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि मरीजों के परिजनों द्वारा डॉक्टर व मेडिकल स्टाफ पर किए गए हमले व हिंसा को लेकर राज्य भर में कितनी एफआईआर दर्ज की गई है। गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने डॉक्टर राजीव जोशी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद उपरोक्त जानकारी मंगाई। याचिका में डॉक्टरों को हिंसा से बचाने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र में स्वास्थ्यकर्मियों पर हिंसा के सर्वाधिक मामले होते हैं। फिर भी सरकार की ओर से डॉक्टरों की सुरक्षा से जुड़े साल 2010 व मौजूदा कानून के प्रावधानों को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में डॉक्टर 24 घंटे कड़ी मेहनत व तनाव में काम कर रहे हैं। ऐसे यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह डॉक्टरों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें। यदि सरकार डॉक्टरों को सुरक्षा नहीं प्रदान करती है तो यह उसकी अपनी ड्यूटी में विफलता होगी। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि सरकार ने डॉक्टरों के मुद्दे को देखने के लिए एक कमेटी गठित की है, जो डॉक्टरों की सुरक्षा से संबंधित विषय को देख रही है। खंडपीठ ने राज्य सरकार को साल 2016 में डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर पूर्व मुख्य न्यायाधीश मंजूला चिल्लूर की ओर से जारी आदेश सहित कोर्ट के अन्य पुराने आदेशों को देखने को कहा। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई अगले सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी है।
10वीं की परीक्षा रद्द करने के खिलाफ दायर हुई याचिका
उधर कोरोना संकट के चलते राज्य सरकार की ओर से कक्षा 10 वीं की परीक्षा रद्द किए जाने के निर्णय को याचिका दायर कर बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई गई है। याचिका में मांग की गई है कि सरकार को कक्षा दसवीं की परीक्षा एक निश्चित समय सीमा के भीतर आयोजित करने का निर्देश दिया जाए। याचिका पर सोमवार को सुनवाई हो सकती हैं। अधिवक्ता उदय वरुनजेकर के मार्फत याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षा मंडल की ओर से ली जाने वाली कक्षा दसवीं की परीक्षा में 16 लाख विद्यार्थी शामिल होने वाले थे। जबकि 12 वीं की परीक्षा में 14 लाख विद्यार्थी बैठेंगे। सरकार ने कहा है कि 12 वीं की परीक्षा आयोजित की जाएगी। ऐसे में परीक्षा के आयोजन को लेकर जो व्यवस्था 14 लाख बच्चों के लिए हो सकती हैं। वह व्यवस्था 16 लाख विद्यार्थियों के लिए क्यो नहीं कि जा सकती। याचिकाकर्ता ने कहा है कि उन्हें पता चला है कि सरकार कक्षा 11 वी में प्रवेश के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा (सीईटी) आयोजित करने वाली है। इस स्थिति में जब सीईटी हो सकती है तो दसवीं की परीक्षा को रद्द करना कहा तक न्याय संगत है। याचिका में सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड द्वारा कक्षा दसवीं की परीक्षा न लेने पर भी सवाल उठाया गया है। क्योंकि इन्होंने भी परीक्षा न लेने का निर्णय किया है। याचिका में कहा गया है कि ये बोर्ड अलग-अलग तरीके से निर्णय ले रहे है। इसलिए समन्वय के लिए केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करने को कहा जाए। यह याचिका पुणे निवासी धनंजय कुलकर्णी ने दायर की है।
परीक्षा रद्द होने से प्रभावित होंगे इंजिनियरिंग के एडमिशन
याचिका में दावा किया गया है कि दसवीं की परीक्षा न होने से इसका असर इंजीनियरिंग व फार्मेसी के डिप्लोमा कोर्स के एडमिशन पर असर पड़ेगा। इसलिए दसवीं की परीक्षा न लेने के राज्य सरकार के निर्णय को रद्द किया जाए और सरकार को एक तय समय सीमा के भीतर दसवीं परीक्षा के बारे में निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए। गुरुवार को न्यायमूर्ति के के तातेड़ व न्यायमूर्ति अभय आहूजा की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। लेकिन एक न्यायमूर्ति ने इस याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया। इसलिए अब सोमवार को अन्य खंडपीठ सामने याचिका पर सुनवाई होगी।
Created On :   13 May 2021 6:23 PM IST