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हाईकोर्ट ने कहा - मीडिया ट्रायल से न्याय प्रशासन में पैदा होती है रुकावट, न्यूज चैनलों को संयम बरतने की सलाह
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि मीडिया हाउस आत्महत्या जैसे मामलों से जुड़ी रिपोर्टिंग करते समय संयम दिखाए। क्योंकि मीडिया ट्रायल न्याय प्रशासन में रुकावट व हस्तक्षेप पैदा करता है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने इलेक्ट्रानिक खबरिया चैनलों द्वारा फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले को लेकर मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है।
हाईकोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद 6 नवंबर 2020 को इस मामले से संबंधित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिसे खंडपीठ ने सोमवार को सुनाया है। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले को लेकर रिपब्लिक टीवी व ‘टाइम्स नाऊ’ द्वारा दिखाई गई खबरे प्रथम दृष्टया अवमाननापरक नजर आयी है। हालंकि अभी हम इन दोनों चैनलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे है। फैसला सुनाते समय खंडपीठ ने कहा कि कोई भी रिपोर्टिंग पत्रकारिता के तय मानक व मूल्यों के अनुरुप होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो मीडिया हाउस को कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि रिपोर्टिंग के समय भारतीय प्रेस परिषद(पीसीआई) की ओर से जारी किए गए दिशा-निर्देशों का पालन होना चाहिए। खास तौर से आत्महत्या से जुड़े मामले की रिपोर्टिंग करते समय इस बाद का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे मामले की रिपोर्टिंग के समय किसी का चरित्र हनन न हो। कोई पूर्वाग्रह तैयार न हो और गवाहों की सुरक्षा प्रभावित न हो। इसके अलावा जब मामले की जांच जारी हो तो मीडिया को पीड़ित की तस्वीरे दिखाने व व घटना को अपने तरीके से गढने से बचना चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि जब तक इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए दिशा-निर्देश तैयार नहीं हो जाते है तब तक पीसीआई के दिशा-निर्देश चैनलों पर भी लागू होगे।
खंडपीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी भी मीडिया संस्थान द्वारा मामले की जांच के जारी रहते की जानेवाली रिर्पोटिंग न सिर्फ जांच में रुकावट पैदा करती है बल्कि यह न्याय प्रशासन में भी अवरोध पैदा करती है। लिहाजा ऐसी रिपोर्टिंग न्यायालय की अवमानना है। केबल टीवी नेटवर्क नियमन कानून के अंतर्गत भी मीडिया ट्रायल प्रोग्राम संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन है।
मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे एडीशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह ने दावा किया था कि मीडिया पर नियंत्रण को लेकर पहले से पर्याप्त वैधानिक व्यवस्था मौजूद है। वैसे मीडिया चैनलों व अखबारों से रिपोर्टिंग के समय आत्म अनुशासन से जुड़े नियम का पालन अपेक्षित है। इस मामले को लेकर पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त एमएन सिंह सहित कई सेवा निवृत्त आईपीएस अधिकारियों,गैर सरकारी संस्थाओं सहित अन्य लोगों ने जनहित याचिका दायर की थी।
Created On :   18 Jan 2021 5:59 PM IST