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न्याय प्रशासन की रुकावट है क्या मीडिया की अत्याधिक रिपोर्टिंग- हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
डिजिटल डेस्क, मुंबई। किसी भी मामले की जारी जांच की मीडिया की हद से अधिक अथवा अत्याधिक रिपोर्टिंग क्या न्ययालय की अवमानना कानून के तहत न्याय प्राशासन में रुकावट पैदा करता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को इस विषय पर अपना रुख़ स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने यह सुशांत मामले की मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। खंडपीठ ने कहा कि किस कानून के में ऐसा प्रावधान है कि जांच के दौरान इकट्ठा किए जाने वाले सबूतों को सार्वजनिक किया जाए। क्या जांच अधिकारी ऐसा करने के लिए बाध्य है।
खंडपीठ ने कहा कि इसकी क्या गारंटी है कि मीडिया द्वारा दिखाई जानेवाली रिपोर्ट जांच अधिकारी के मन को प्रभावित नहीं करेगी। मीडिया रिपोर्ट जांच अधिकारी का ध्यान भटका सकती है। जिससे बेगुन्हा व्यक्ति की गिरफ्तारी हो सकती है। उसकी प्रतिष्ठा खत्म हो सकती है। मीडिया की रिपोर्टिंग से कई बार आरोपियों को फ़रार होने व सबूतों को नष्ट करना भी आसान हो जाता है। इससे गवाहों के लिए भी खतरा पैदा होता है। इस बीच कोर्ट में दलील दी गई कि मीडिया कोई न्यायाधीश नहीं है जो बताए की किसकी जांच की जाए।
खंडपीठ ने कहा कि अक्सर इस तरह की रिपोर्टिंग का बचाव खोजी पत्रकारिता की आड़ में किया जाता है जबकि खोजी पत्रकारिता का काम सच को सामने लाना है। इसलिए हम केन्द्र सरकार से जानना चाहते है कि क्या मीडिया की अत्याधिक रिपोर्टिंग न्याय प्रशासन में रुकावट बनती है। ऐसी परिस्थिति में क्यो न अदालत दिशा निर्देश बनाए। खंडपीठ ने कहा कि यह आवश्यक है कि हम अपनी सीमा में रहे और मीडिया अपनी हद में। खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि आखिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट मीडिया तक कैसे पहुचती है। यदि मीडिया के पास ऐसी कोई सूचना है जो जांच में मददगार साबित हो सकती है तो वह इसे नियमानुसार पुलिस से साझा करें। खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 6 नवंबर 2020 को रखी है।
Created On :   29 Oct 2020 6:15 PM IST