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कैसे निखर पाएगी आदिवासी बच्चों की खेल प्रतिभा ?

डिजिटल डेस्क,शहडोल। आदिवासी बच्चों की खेल प्रतिभा निखारकर उन्हें स्टेट व नेशनल लेबल तक पहुंचाने के उद्देश्य से जिले में संचालित एक मात्र क्रीड़ा परिसर में नए एडमिशन पर रोक लगा दी गई है। आदिवासी विकास विभाग मप्र के उपायुक्त ने आदेश जारी किया है । अब बच्चों की खेल प्रतिभा कैसे निखर पाएगी इसे लेकर सवाल खड़ा हो गया है।
दरअसल प्रदेश स्तर से जारी आदेश के मुताबिक इंदौर, खरगौन, झाबुआ, श्योपुर, धार, डिंडौरी के साथ ही शहडोल के धुरवार में संचालित बालक आदिवासी क्रीड़ा परिसर में नवीन सत्र से विद्यार्थियों को प्रवेश दिए जाने पर रोक लगा दी गई है। आदेश में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि परिसर में पहले से प्रवेशित बच्चों का क्या होगा। उन्हें खेल गतिविधियों कहां और कैसे सिखाई जाएगी। परिसर में वर्तमान में 67 बच्चे दर्ज हैं, जिन्हें विभिन्न खेलों की बारीकियां सिखाई जा रही हैं। क्रीड़ा परिसर में नवीन प्रवेश पर रोक तो लगाई गई है लेकिन वहां दर्ज बच्चों को कहां शिफ्ट किया जाएगा, इसको लेकर कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं। वहीं लोगों का कहना है कि क्रीड़ा परिसर में रॉक क्लाइम्बिका एवं पहाड़ों व नदियों पर चढ़ना उतरना जैसे खेल सिखाया जाएगा। जानकारों का कहना है कि नई विधाओं से आदिवासी बच्चों को अवगत कराना ठीक है लेकिन ऐसे खेलों का क्या औचित्य जो न तो स्कूल की खेल गतिविधियों में शामिल हैं और न ही राज्य व राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शामिल हैं।
खेल चुके हैं नेशनल
आदिवासी विकास विभाग साल 2014 से संचालित क्रीड़ा परिसर में आदिवासी बच्चों को खेल की बेहतर ट्रेनिंग दे रहा है। अभी तक 10 बच्चे नेशनल लेबल की प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन कर जिले का नाम रोशन कर चुके हैं। वहीं 40 से अधिक बच्चे कबड्डी, खो-खो, क्रिकेट व कराते जैसी स्टेट लेबल प्रतियोगिताओं में शामिल हो चुके हैं।
वहीं मामले में आदिवासी विकास उपायुक्त जेपी सर्वेटे का कहना है कि क्रीड़ा परिसर में नवीन खेल गतिविधियां संचालित होंगी। पूर्व से प्रवेशित बच्चो को विभिन्न हॉस्टलों में दाखिल कराने की प्रक्रिया की जाएगी। आदिवासी बच्चों की खेल प्रतिभा निखारने पूर्ववत प्रयास जारी रहेंगे।
Created On :   9 Aug 2017 12:17 PM IST