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पूर्वी विदर्भ में और बढ़ सकता है मानव-वन्यजीव संघर्ष
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य में बाघों की सबसे बड़ी आबादी के निवास स्थान पूर्वी विदर्भ यानी इस्टर्न विदर्भ लैंडस्केप में भविष्य में मानव-बाघ संघर्ष के मामलों में और वृद्धि हो सकती है। खासकर संरक्षित क्षेत्र के बाहर। देहरादून स्थित वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की ओर से छह वर्ष के अध्ययन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट में आगाह किया गया है। अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में ताडोबा अंधारी टाइगर रिर्जव( टीएटीआर), ब्रह्मपुरी, उमरेड कांडला और नवेगांव नागझिरा के बीच स्थित टाइगर कॉरिडोर को भी विधिमान्य ठहराया गया है और वहां बाघों के संरक्षण उपायों को लागू किए जाने के लिए उपयुक्त बताया गया है।
अध्ययन के अनुसार पूर्वी विदर्भ के 37 फीसदी भाग यानी 22,508 वर्ग किमी इलाका वनाछादित है और यहां 200 बाघ रहते हैं। ये बाघ संरक्षित इलाकों के साथ-साथ उसके बाहर भी रहते हैं। इस इलाके में जनसंख्या 1.45 करोड़ है। महाराष्ट्र वन विभाग के आकड़ाें के अनुसार राज्य में बाघों की कुल संख्या 235 से 240 के बीच है। रिपोर्ट को संरक्षित क्षेत्र के बाहर बाघों के संरक्षण के लिए अहम बताते हुए नीतिन काकोदर, प्रिंसीपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट(वाइल्डलाइफ) महाराष्ट्र कह चुके हैं कि इसमें बताए गए सुझावों काे अपना कर संक्षरित क्षेत्र के बाहर मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में मदद मिल सकती है।
संरक्षित क्षेत्र के बाहर नई टेरेटरी की खोज
अध्ययन के अनुसार संरक्षित क्षेत्र के बाहर रहने वाले बाघ अपने लिए नई टेरेटरी की खोज में रात में लगभग आठ घंटे विचरण करते हैं। खास बात यह है कि वे ऐसे क्षेत्रों में होते हैं, जहां मानव बस्तियां हैं। अध्ययन में शामिल रहे डब्ल्यूआईआई के विशेषज्ञ बिलाल हबीब के अनुसार संरक्षित क्षेत्र की तुलना में बाहर बाघ लगभग दोगुणा सफर करते हैं। इसलिए उन्हें अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। यहां शिकार की उपलब्धता भी अपेक्षाकृत कम होती है। इसके सीधा संकेत है कि आने वाले समय में मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं बढ़ने वाली हैं।
राज्य में सबसे अधिक हमले
पिछले वर्ष महाराष्ट्र में बाघ के हमलों में मानव मौत के सबसे अधिक मामले दर्ज हुए थे। देश भर में बाघ के हमले में हुई मौतों में से 45 फीसदी मामले राज्य में हुए थे। लगातार चौथे वर्ष राज्य इस मामले में सबसे ऊपर बना हुआ है। पूर्वी विदर्भ में नेशलन हाइवे, स्टेट हाइवे, डिस्ट्रीट रोड व गांवाें के सड़क के कारण संरक्षित क्षेत्राें के बाहर ऐसे 517 छोटे-छोटे पैच बन गए हैं, जहां बाघों का निवास है।
बाघों के मूवमेंट पर नजर
गिरीश वशिष्ठ, डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर(एडवाइजरी) और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की ओर से हुए अध्ययन में नागपुर इनचार्ज के अनुसार क्षेत्र के बाघों के मुवमेंट पर नजर रखने के लिए उन्हें रेडियो कॉलर लगाया जा रहा है। इस वर्ष अब तक चार बाघों को कॉलर लगाया गया है। इनमें से दो टिपेश्वर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और दो ब्रह्मपुरी में है। चार और बाघों को कॉलर लगाया जाना बाकी है। इनमें तीन ताडोबा और एक बह्मपुरी में है।
Created On :   16 May 2019 4:12 PM IST