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गुप्तकाल में समृद्ध नगरी थी सिंगरौली, पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण में पता लगा प्राचीन इतिहास

डिजिटल डेस्क, सिंगरौली (वैढ़न)। आज ऊर्जाधानी के नाम से मशहूर सिंगरौली का इतिहास सिर्फ काला पानी तक सीमित नहीं, बल्कि सिंगरौली का इतिहास तो 6वीं-7वीं शताब्दी में एक समृद्ध क्षेत्र के रूप में रहा है। उस समय यह क्षेत्र गुप्तकाल और कल्चुरी वंशजों के साम्राज्य का अहम हिस्सा रहा करता था। हिस्सा भी ऐसा जो उस समय वाणिज्य के मामले में एक बड़े स्पाट के रूप में था। उस समय दक्षिण भारत से पूर्वी भारत और वर्मा, जावा, सुमात्रा आदि देशों को जाने वाले व्यापारी इसी मार्ग से गुजरते थे। वैसे सुनने में सिंगरौली का यह इतिहास चौंकाने वाला जरूर लग रहा होगा, लेकिन असलियत यही है। क्योंकि यह सत्यता सामने आयी है भारतीय पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण में। जो यहां पिछले सालभर से चल रहा है।
यहां पुरातत्व की टीम को माड़ा से लेकर बरगवां के तेन्दुआ क्षेत्र के आगे तक के एरिया में एक ऐसे प्राचीन रूट के साक्ष्य मिले हैं। जिसका उपयोग 6वीं-7वीं सेन्चुरी और उसके पूर्व में व्यापारिक मार्ग के रूप में किया जाता रहा होगा। इस रूट का उपयोग जबलपुर और दक्षिण तरफ के तीर्थयात्री प्रयाग, काशी जाने के लिए करने में करते थे। साथ ही यह रूट पाटिलपुत्र (पटना) जाने का भी एक अहम पहुंच मार्ग हुआ करता था।
हैबिटेशन के मिले तमाम साक्ष्य
भारत सरकार के निर्देश में यहां सर्वेक्षण कर रही भारतीय पुरातत्व विभाग की टीम की सुप्रीटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. मधुलिका समानता खुद बताती हैं कि सालभर के सर्वेक्षण में इस पूरे हिल रेंज में व्यापारिक मार्ग के साक्ष्य उनकी टीम को पहले ही अलग-अलग स्थानों पर मिल चुके थे। इन साक्ष्यों में बड़ी तादात में हैबिटेशन (बस्ती या शहर) होने के साक्ष्य गुप्त और कल्चुरी वंश के समय के मिले हैं।
डॉ. मधुलिका बताती हैं कि समुद्रगुप्त के लेख प्रयास प्रशस्ति से भी पता चलता है, यह क्षेत्र में उस समय के साम्राज्यों का व्यापारिक बसाहट वाला हिस्सा था और यहां से उन्हें धन प्राप्त होता था। इससे यह निश्चित होता है कि यह क्षेत्र गुप्त साम्राज्य का अहम हिस्सा था।
तेन्दुआ में भी मिले गुप्तकालीन साक्ष्य
डॉ. मधुलिका बताती हैं कि प्राचीन युग में सिंगरौली के गुप्त साम्राज्य के अहम हिस्सा होने का एक और साक्ष्य भी है। वह साक्ष्य है, यहां बरगवां के पास तेन्दुआ नाम की जगह के पास मिले 14 प्राचीन स्तूप। इसमें 11 स्तूप तेन्दुआ, भटभेदी में दो और देवरी में एक समेत कुल 14 प्राचीन स्तूप मिले हैं। इन स्तूप के ऊपरी हिस्सों को स्वास्तिक जैसी संरचना से सजाया गया है। उन्होंने बताया ये स्तूप गुप्त साम्राज्य काल के समय या उसके खत्म होने के बाद के लग रहे हैं। इस दौरान 6वीं-7वीं सेन्चुरी का दौर रहा होगा।
हैरिटेज की खोज में अहम कड़ी बना नगवां
डॉ. मधुलिका बताती हैं कि उनकी टीम की सालभर की खोज में गुप्तकाल और कल्चुरी साम्राज्य के कई मंदिर और मॉनेट्री (मौद्रिक) मिले थे। जिससे यह प्रतीत होता था कि यहां बड़ी तादात में बसाहट रही होगी। लेकिन ये लोग रहते कहां थे, खाते-पीते कहां थे और पूजा-पाठ कहां करते रहे होंगे, ये सवाल सर्वेक्षण में खड़ा हो गया था। लगातार के सर्वेक्षण में बसाहट का कोई सुराग नहीं मिल रहा था। ऐसे में हालही में नगवां गांव में भगवान विष्णु की चतुर्भुज आकार की जो मूर्ति मिली है उससे बाद वहां सर्वे करने पर बसाहट (प्राचीन शहर) के होने की तलाश पूरी हो गई।
नगवां में मिले प्राचीन साक्ष्यों को लेकर वह हर्ष व्यक्त करते हुए बताती हैं कि माड़ा-बरगवां के तेंदुआ वाले व्यापारिक रूट में नगवां में बड़ी बसाहट रही थी, इसके साक्ष्य मिले हैं और अब नगवां हेरिटेज की खोज में सर्वेक्षण को नई दिशा दे दिया है।
अगर, माइनिंग में नष्ट न हुए हों तो
प्राचीन काल का शहर सिर्फ नगवां तक ही सीमित नहीं था। डॉ. मधुलिका के अनुसार इसी क्रम में आगे और भी कई छोटे-बड़े शहर यहां बसे रहे होंगे। अभी तक के सर्वेक्षण में जितना कुछ सामने आया है, उसके मद्देनजर ऐसे अन्य शहरों के रहे होने के साक्ष्य मिल सकते हैं। अगर वह यहां की माइनिंग में नष्ट न हुए हो तो। डॉ. मधुलिका के अनुसार नगवां में भी जहां मूर्ति निकली है वहां आसपास काफी डिस्टर्बेन्स होने से कई साक्ष्य नष्ट हो गए हैं, जो सर्वेक्षण में मुश्किलें पैदा करने वाले रहते हैं। लेकिन इतने में सर्वेक्षण खत्म नहीं होता है, वह चलता रहेगा।
कुषाण काल के स्प्रिंकलर से मिला नया इतिहास
एक खास बात यह भी है कि इस सर्वे में भारतीय पुरातत्व की टीम को नगवां में एक स्प्रिंकलर यानी परफ्यूम रखने वाला बर्तन भी मिला है। जिसकी बनवाट आदि से यह कुषाण वंशजों के समय का लगता है। इसे लेकर डॉ. मधुलिका बताती हैं कि शायद यह अपवाद भी हो सकता है। लेकिन ऐसी संभावना कम ही है और वाकई अगर ऐसा हुआ तो सिंगरौली का इतिहास 1500 वर्ष से काफी पहले वाला होना माना जा सकता है, जिसका अलग से सर्वेक्षण भी हो सकता है। बताया जाता है कुषाण वंशज प्राचीन भारत के राजवंशों में से एक हैं और इनके शासनकाल के दौरान दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का समय रहा होगा।
Created On :   9 Aug 2018 2:04 PM IST