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सौ के पार संक्रमित - मेडिकल में 80 मरीज, बिस्तरों की संख्या बढ़ाई, दो दिन में दोगुना बढ़ा ब्लैक फंगस
कोरोना के बाद एक और चुनौती - लेजर एंडोस्कोपी के बिना डिस्चार्ज नहीं होंगे कोरोना के मरीज
डिजिटल डेस्क जबलपुर । कोरोना के बाद अब म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगल इंफेक्शन की नई चुनौती के रूप में सामने आ रहा है। यह बीमारी तेजी से कोरोना पीडि़तों और इससे ठीक हो चुके मरीजों को अपनी पकड़ में ले रही है। 2 दिन में ही मेडिकल कॉलेज में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। वर्तमान में यहाँ 80 मरीजों का उपचार चल रहा है, वहीं शहर में निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या 50 के आसपास पहुँच चुकी है। राजस्थान में जहाँ ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया गया है, वहीं मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य विभाग धीरे-धीरे जाग रहा है। दो दिन पहले तक जहाँ मरीजों के आँकड़ों को लेकर संजीदगी नहीं दिख रही थी, वहीं इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने मुस्तैदी दिखानी शुरू की है। शहर में ब्लैक फंगस के कितने मरीज हैं, आँकड़े जुटाए जा रहे हैं। इससे जुड़ी दवाओं की कालाबाजारी रोकने अधिकृत विक्रेताओं के यहाँ अधिकारी तैनात किए जा रहे हैं।
मेडिकल की तैयारी, अब पहले से ज्यादा बेड संख्या
प्रदेश में म्यूकोरमाइसिस के लिए विशेष वार्ड बनाने की शुरूआत जबलपुर और भोपाल के मेडिकल कॉलेजों से हुई थी। इस बात को हफ्ते भर भी नहीं हुआ है और जबलपुर मेडिकल कॉलेज में बुधवार तक ब्लैक फंगस के 80 मरीज भर्ती हो चुके थे। 15 बिस्तरों से शुरू हुआ वार्ड अब 80 बिस्तरों तक पहुँच चुका है। मेडिकल में वार्ड नंबर 20 को इसके के लिए डेडिकेटेड वार्ड बनाया गया है। मेडिकल कॉलेज में बुधवार को 15 नए ब्लैक फंगस के मरीज वार्ड में शिफ्ट किए गए, वहीं 4 सर्जरी की गईं।
अब तक 18 ऑपरेशन फिलहाल डिस्चार्ज नहीं
मेडिकल कॉलेज ईएनटी विभागाध्यक्ष एवं वार्ड प्रभारी डॉ. कविता सचदेवा ने बताया कि ब्लैक फंगस के मरीजों के उपचार को लेकर पूरी टीम तत्परता से जुटी है। अभी तक 18 ऑपरेशन हो चुके हैं, हालाँकि अभी तक किसी भी मरीज को डिस्चार्ज नहीं किया गया है। सभी मरीजों के ऑब्जर्व किया जा रहा है। फंगल ट्रीटमेंट चलने तक उन्हें यहीं रखा जाएगा।
3 निजी अस्पतालों में 45 मरीज
स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार शहर में 3 निजी अस्पतालों में ब्लैक फंगस के मरीजों का उपचार चल रहा है। मंगलवार तक इन तीनों को मिलाकर कुल 45 मरीज उपचार ले रहे थे।
किन्हें सबसे ज्यादा खतरा
जानकार बताते हैं कि ब्लैक फंगस का ट्रीटमेंट 1 महीने से 1.5 महीने तक इलाज चल सकता है। कई मामलों में इसका इलाज कोविड से 3 गुना तक महँगा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना से ठीक हो चुके या ठीक हो रहे मरीजों में म्यूकोरमाइकोसिस होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। एक मरीज को 60 से 100 इंजेक्शन तक लग सकते हैं।
बढ़ गई डिमांड, तो हो गई कमी
शहर में एम्फोटिसिरीन इंजेक्शन के महीने में 5 से 10 बॉयल ही बिका करते थे। डिमांड बढऩे के बाद शॉर्टेज है। इसके अलावा पोसाकोनाजोल, लिपोजोमल जैसी दवाओं और इंजेक्शन्स को भी परिजन ढूँढ रहे हैं। बताया जाता है कि पूर्व में डिमांड न होने के कारण इन दवाइयों का प्रोडक्शन बेहद सीमित था, अचानक डिमांड बढऩे के बाद किल्लत आई गई।
रखी जा रही है नजर
* ब्लैक फंगस की पहचान शुरू में ही करने के लिए सतत नजर रखी जा रही है। कहाँ-कितने मरीज भर्ती हैं, आँकड़े जुटाए जा रहे हैं। संभावित लक्षणों वाले मरीजों को लेजर एंडोस्कोपी कराने के निर्देश दिए गए हैं।
डॉ. रत्नेश कुररिया, सीएमएचओ
Created On :   20 May 2021 2:29 PM IST