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महाराष्ट्र में कहीं पर न हो मैला ढोने का काम, मृत मजदूरों के परिजन को 10-10 लाख रुपए देने का निर्देश
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि हाथ से मैला ढोने की शर्मनाक प्रथा राज्य में कही पर भी न हो। सरकार महाराष्ट्र में पूरी तरह से इस प्रथा का खात्मा करे। इसके साथ ही कोर्ट ने मुंबई के उपनगर जिलाधिकारी को महानगर की एक निजी हाउसिंग सोसायटी की सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मौत का शिकार होनेवाले तीन मजदुरों के परिजनों दस-दस लाख रुपए मुआवजे के रुप में देने का निर्देश दिया है। अदालत ने जिलाधिकारी को कहा है कि वे मुआवजे की यह रकम उस निजी ईकाई से वसूले जो मजदूरों की मौत के लिए जिम्मेंदार है।
न्यायमूर्ति उज्जल भूयान व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि क्या उसने सिर पर मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने से जुडा कानून साल 2013 में बनाने के बाद उससे जुड़ा कोई सर्वेक्षण किया है कि जिससे इसका पता लगाया जा सके कि कही पर भी सिर पर मैला ढोने का काम तो नहीं हो रहा है। खंडपीठ ने सरकार को बताने को कहा है कि क्या उसकी ओर से मैला ढोने के कार्य से जुड़े लोगों के पुनर्वास को लेकर कोई कदम उठाए गए हैं। इसके अलावा 1993 से अब तक कार्य के दौरान सिर पर मैला ढोनेवाले कितने मजदूरों की मौत कार्य के दौरान हुई है और क्या सरकार की ओर से इन्हें कोई मुआवजा दिया गया है।
खंडपीठ के सामने अधिवक्ता ईशा सिंह के माध्यम से उन तीन महिलाओं की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है, जिनके पति सिर पर मैला ढोने के कार्य से जुड़े थे और मुंबई के गोवंडी इलाके में स्थिति एक निजी हाउसिंग सोसायटी के सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दिसंबर 2019 में उनकी मौत हो गई थी। तीनों महिलाओं ने सरकार की ओर से प्रोहिबिशन आफ इम्पालॉयमेंट मैन्युअल एक्साकावेंजिंग एंड रिहैबिलिटेशन अधिनियम 2013 के तहत मुआवजे की मांग की है।
याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने मुंबई के उपनगर जिलाधिकारी को हादसे में जान गंवानेवाले मजदूरों के परिजनों को दस-दस लाख रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया। इससे पहले सरकारी वकील ने कहा कि मजदूरों को काम पर लगानेवाले बिल्डर ने हर मजदूर के नाम पर मुआवजे के रुप में एक लाख 25 हजार रुपए का चेक दिया था। किंतु खंडपीठ ने कहा कि सरकार का यह दायित्व है कि वह सिर पर मैला ढोने की प्रथा का खात्मा करे। सरकार की ओर से इस विषय में कानून बनाए जाने के बाद भी यह शर्मनाक प्रथा जारी है। जो की हैरानीपूर्ण है। खंडपीठ ने सरकार को मामले को लेकर मंगाई गई सारी जानकारी 18 अक्टूबर 2021 तक देने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने इस मामले को लेकर गोवंडी पुलिस की ओर से दर्ज की एफआईआर की स्थिति को लेकर भी जानकारी देने का निर्देश दिया है।
Created On :   17 Sept 2021 9:30 PM IST